SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 416
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९०२ गो० जीवकाण्डे ज्ञानोपयोगयुक्तरुगळ परिमाणं ज्ञानमार्गणयोळु पेन्दतयक्कुं। दर्शनोपयोगिगळ परिमाणं दर्शनमार्गणेयो पेळ्द क्रममेयक्कुमदेते दोडे कुमतिज्ञानिगळु किंचिदून संसारिराशिप्रमाणमक्कुं। १३-कुश्रुतज्ञानिगळुमनिबरेयकुं ।१३-॥ विभंगज्ञानिगळ =मतिज्ञानिगळु प श्रुतज्ञा ___ ४।६५ निगनु प अवधिज्ञानिगछु ५० मनःपर्य्ययज्ञानिगलु १ केवलज्ञानिगनु : तियंचविभंग५ ज्ञानिगळु-६५ मनुष्यविभंगज्ञानिगळु । १। नारकविभंगज्ञानिगळु -२- देवविभंगज्ञानिगळु ३ = १ शक्ति चक्षुदर्शनिगर्छ । प्र। बि । ति । च ।प। ४ । फ। ४ इ च । ६।२। लब्ध प्रस४।६५-2 ज्ञानोपयोगिप्रमाणं ज्ञानमार्गणावत् । दर्शनोपयोगिप्रमाणं दर्शनमार्गणावत् भवेत् । तद्यथा-कुमतिज्ञानिनः कुश्रतज्ञानिनश्च किंचिदूनसंसारिराशिः १३- विभङ्गज्ञानिनः = । मतिज्ञानिनः प श्रुतज्ञानिनः प a अवधिज्ञानिनः Ha मनःपर्ययज्ञानिनः १ केवलज्ञानिनः १ तिर्यग्विभङ्गज्ञानिनः - ६५ मनुष्यविभङ्गज्ञानिनः aa १० १ नरकविभङ्गज्ञानिनः - २ - देवविभङ्गज्ञानिनः = १ । शक्तिचक्षुर्दर्शनिनः प्र-वि । ति । च । पं । ____ ज्ञानोपयोगवाले जीवोंका प्रमाण ज्ञानमार्गणाके समान है और दर्शनोपयोगवाले जीवोंका प्रमाण दर्शनमार्गणाके समान है। जो इस प्रकार है-कुमतिज्ञानी और कुश्रुतज्ञानियोंका प्रमाण कुछ कम संसारीराशि है। विभंगज्ञानी पूर्ववत् जानना। मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी प्रत्येक पल्यके असंख्यातवें भाग हैं। अवधिज्ञानी पूर्ववत् जानना । मनःपर्ययज्ञानी १५ संख्यात हैं। केवलज्ञानी सिद्धराशिसे अधिक हैं। तिथंच विभंगज्ञानी पल्यके असंख्यातवें भागसे गुणित घनांगुलसे जगतश्रेणिको गुणा करनेपर जो प्रमाण आवे,उतने हैं। विभंगज्ञानी मनुष्य संख्यात हैं। विभंगज्ञानी नारकी धनांगुलके दूसरे वर्गमूलसे जगतश्रेणिको गुणा करनेपर जो प्रमाण आवे, उतने हैं। देवविभंगज्ञानी सम्यग्दष्टियोंकी संख्यासे हीन ज्योतिष्कदेवोंसे अधिक हैं। शक्तिरूप और व्यक्तिरूप चक्षुदर्शनीका परिमाण गाथा २० १. म मनिबरेयक्कुं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy