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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका . ५२७ पोसतप्प विशेषमरियल्पडुगुमदावुदे दोडे पर्याय ब प्रथमश्र तज्ञानं तु मत्ते सूक्ष्मनिगोदलब्ध्यपर्याप्तकन संबंधि सर्वजघन्यश्रु तज्ञानमक्कुं। पुनः मत्ते पर्यायज्ञानावरणमु तदनंतरज्ञान भेददोनंतभागवृद्धियुक्तपीयसमासज्ञानप्रथमभेददोळक्कुमदते दोडे उदयागतपर्यायज्ञानावरणसमजबहुदानिकदनुभागंगळ सर्वघातिस्पर्द्धकंग दयाभावलक्षणक्षयमुमवक्केये सत्वस्थालक्षणोपशाल देशघातिस्पर्द्धकंगजुदयाभुटागुत्तिरलुमंतप्यावरणोदयदिदं पविसमासप्रथमलाननेयावरणिसल्पडुगुं। तुपत्ते पर्यायज्ञानमावरणिसल्पडदेके दोडे तदावरणदोलु जीवगुणमप्प ज्ञानक्कभावनागुत्तिरलु गुणियप्पजीवक्कयुमभावासंगमनप्पुररिवं। अनुभागरचनयं स्यापिसल्पट्टल्लि सिद्धानंतैकभागमात्रद्रव्यानुभागक्रमहानिवृद्धियुक्तनानागुणहानिस्पर्द्धकवर्गणात्मकमप्प श्रु तज्ञानावरणद्रवदल्लि सर्गतःस्तोकमप्प सर्वपश्चिमप्रक्षीणोदयानुभागसर्वघातिस्पर्द्धकद्रव्यक्कयो पर्यायज्ञानावरणत्वदिदं तावन्मात्रावरणद्रव्यक्क सर्वकालदोळ- . मुदयाभावमप्दरिदं। नवीनं विशेष जानीहि, सः कः ? पर्यायज्ञान-पर्यायाख्यं प्रथमं श्रु तज्ञानं, तु-पुनः, सूक्ष्मनिगोदलब्ध्यपर्याप्तकस्य संबन्धि सर्वजघन्यं श्रुतज्ञानं भवति । पुनः-पश्चात् पर्यायज्ञानस्य आवरणं तदनन्तरज्ञानभेदे अनन्तभागवृद्धियुक्ते पर्याधसमासज्ञानप्रथमभेदे भवति, तद्यथा-उदयागतपर्यायज्ञानावरणसमयप्रबद्धोदयनिषेकस्यानुभागानां सर्ववातिस्पर्धकानामुदयाभाव लक्षणः क्षयः, तेषामेव सदवस्थालक्षण उपशमः, देशघातिस्पर्ध- १५ कानामुदये सति तदावरणोदयेन पर्यायसमासप्रथमज्ञानमेव आवियते न तु पर्यायज्ञानम् । तदावरणे जीवगुणस्य ज्ञानस्याभावे गुगिनो जीवस्याप्यभावप्रसंगात् । अनुभागरचनायां विन्यस्ते सिद्धानन्तकभागमात्रे द्रव्यानभागक्रमहानिवृद्वियुक्ते नानागुणहानिस्पर्धकवर्गणात्मके श्रु तज्ञानावरणद्रव्ये सर्वतः स्तोकस्य सर्वपश्चिमप्रक्षोणोदयानुभागसर्वघातिस्पर्धकद्रव्यस्यैव पर्यायज्ञानावरणत्वात् । तावतः आवरणद्रव्यस्य सर्वकालेऽप्युदयाभावात् ॥३१९॥ यह विशेष जानना कि पर्याय नामक प्रथम श्रुतज्ञान सूक्ष्म निगोदिया लब्ध्यपर्याप्तकका २० सबसे जघन्य श्रुतज्ञान होता है। किन्तु पर्यायज्ञानका आवरण उसके अनन्तर जो ज्ञानका भेद है, जो उससे अनन्तभागवृद्धिको लिये हुए है; उस पर्याय समास ज्ञानके प्रथम भेदपर होता है । जो इस प्रकार है-उदयप्राप्त पर्याय ज्ञानावरणके समयप्रबद्धका जो निषेक उदयमें आया है, उसके अनुभागके सर्वधाती स्पद्धकोंके उदयका अभाव ही क्षय है तथा जो अगले निषेक सम्बन्धी सर्वघाती स्पर्द्धक सत्तामें वर्तमान है उनका उपशम है और देशघाती २५ स्पर्धकोंका उदय है। ऐसी क्षयोपशम पर्याय ज्ञानावरणकी सदा रहती है। अतः पर्याय ज्ञानावरणके उदयसे पर्याय समास ज्ञानका प्रथम भेद ही आवृत होता है; पर्यायज्ञान नहीं। यदि उसका भी आवरण हो जाये,तो जीवके गुण ज्ञानका अभाव होनेपर गुणी जीवके भी अभावका प्रसंग आता है। तथा अनुभाग रचनामें स्थापित किया सिद्ध राशिका अनन्तवाँ भागमात्र जो श्रुतज्ञानावरणका द्रव्य अर्थात् परमाणुसमूह है, वह क्रम हानि और वृद्धिसे ३० संयुक्त है, नाना गुणहानि स्पर्धक वर्गणात्मक है, उस श्रुतज्ञानावरणके द्रव्यमें जिसका उदयरूप अनुभाग क्षीण हो गया है और जो सबसे थोड़ा तथा सबसे अन्तिम सर्वघाति स्पर्धक है, उसीका नाम पर्यायज्ञानावरण है। इतने आवरणका कभी भी उदय नहीं होता। इसलिए भी पर्यायज्ञान निरावरण है ॥३१९।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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