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गो. जीवकाण्डे अनंतरं सम्यक्त्वमाग्र्गणयोळ जीवसंख्येयं गाथात्रयदिदं पेळ्दपं
वासपुधत्ते खइया संखेज्जा जइ हवंति सोहम्मे ।
तो संखपल्लठिदिए केवडिया एवमणुपादे ॥६५७॥
वर्षपृथक्त्वे क्षायिकाः संख्येया भवंति सौधर्मे। तहि संख्यपल्यस्थितिके कियन्त एव५ मनुपाते ॥
वर्षपृथक्त्वदोळ क्षायिकसम्यग्दृष्टिगळु संख्यातप्रमितरु सौधर्मकल्पद्वयवोळु पुटुवरंतादोर्ड संख्यातपल्यस्थितिकनोळु एनिबरु क्षायिकसम्यग्दृष्टिगळप्परेदितनुपातत्रैराशिकर्म माडुत्तिरलु प्रवर्ष ७ फ।क्षा= ७।३।१७। बंद लब्धर्मनितक्कुम दोडे :
संखावलिहिदपल्ला खड्या तत्तो य वेदगुवसमया।
आवलि असंखगुणिदा असंखगुणहीणया कमसो ॥६५८॥ संख्यातावलिहतपल्याः क्षायिकाः ततश्च वेदकोपशमकाः । आवल्यसंख्यगुणिताः असंख्यगुणहीनकाः क्रमशः॥
संख्यातावलिळिदं भागिसल्पट्ट पल्यप्रमितरु क्षायिकसम्यग्दृष्टिगळप्पर प मा क्षायिक
सम्यग्दृष्टिगळं नोडलु वेदकसम्यग्दृष्टिगळुमुपशमसम्यग्दृष्टिगळं क्रमदिवमावल्यसंख्यातगुणित१५ प्रमाणरुमसंख्यातगुणहीनरुमप्पर वे ५० उ-प
२१.२१
यदि वर्षपृथक्त्वे क्षायिकसम्यग्दृष्टयः संख्याताः सौधर्मद्वये उत्पद्यन्ते तहि संख्यातपल्यस्थितिके कति इत्यनुपाते त्रैराशिके कृते त्रवर्ष ७ फ क्षा - १ । इ प १ लब्धाः ॥६५७।।
संख्यातावलिभक्तपल्यमात्रकाः क्षायिकसम्यग्दृष्टयो भवन्ति प । तेभ्यः वेदकोपशमसम्यग्दृष्टयः क्रमेण
आवल्यसंख्यातगुणितासंख्यातगुणहीना भवन्ति । दे= प उ = प॥६५८
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सम्यक्त्वमार्गणामें जीवोंकी संख्या तीन गाथाओंसे कहते हैं
यदि वर्षपृथक्त्व कालमें सौधर्मयुगलमें क्षायिक सम्यग्दृष्टि संख्यात उत्पन्न होते हैं, तो संख्यात पल्यकी स्थितिमें कितने उत्पन्न होते हैं। ऐसा त्रैराशिक करनेपर प्रमाणराशि वर्षपृथक्त्व, फलराशि संख्यात जीव और इच्छाराशि संख्यात पल्य । सो फलराशिसे इच्छा. राशिको गुणा करके उसमें प्रमाणराशिसे भाग देनेपर जो लब्ध आया,वह कहते हैं ॥६५७॥
संख्यातआवलीसे भाजित पल्यप्रमाण क्षायिकसम्यग्दृष्टि होते हैं । क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंकी संख्याको आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणा करनेपर वेदकसम्यग्दृष्टियों की संख्या होती है। तथा क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे असंख्यातगुणे हीन उपशमसम्यग्दृष्टि होते हैं ॥६५८॥
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