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गो० जीवकाण्डे
स्थानावसानमाद गुणस्थानत्रयदोळ आवुदोंदु सासावनर हारमदं नोडलु मुंबल्लेतेडेयोळं असंयतमिश्रर हारंगळु संख्यातगुणितक्रमंगळ सासादनर हारंगळु संख्यातगुणंगळप्पुवु । सप्तमपृथ्विय गुणस्थानत्रयपय्यं तमे बी व्याप्तियं पेदपं :
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सोहम्मसाणहारमसंखेण य संखरूव संगुणिदे |
उवरि असंजद मिस्स सासणसम्माण अवहारा ॥ ६३६ ॥ सौधर्म्मसासादनहारम संख्येन च संख्यरूपसंगुणिते । उपसंयतमिश्रसासादनसम्यग्दृष्टीनामवहाराः ॥
सौधर्मकल्पद्वयदसासादन सम्यग्दृष्टिगळ भागहारम
a - १० - १
शब्ददिदं मत्तमसंख्यातदिदं संख्यातरूपुर्गाळदं गुणितं माडुत्तिरलु यथासंख्यमागि मेले सानत्कु१० मारद्वयदोळऽसंयतादि अधस्तनगुणस्थानत्रयद हारंगळप्पुवु । सानत्कुमारद्वयद असंयतहारंगळु
सासादनर हारंगळु
aaaaa मिश्रहारंगळु ४ a
a - १० - १
a - १० - १
अनंतरमी गुणितक्रमदव्याप्तियं पेळदपं :
मिश्रसासादनानां भागहारा भवन्ति
aaaa
a–१, a–१
तत्सौधर्मद्वयसासादनभागहारे aaaa ४ असंख्यातेन a-१-a-१
aaa
–१, ३-१
१५ गुणिते यथासंख्यमुपरि सानत्कुमारद्वये
aaaa Yaa a-१-१
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४ निदनसंख्यातदिदं च
aaaaraa४ a - १० - १
aayaa
a-१, a-१
चशब्दात् पुनरसंख्यातेन संख्यातरूपैश्च
असंख्यात मिश्रसासादनहारा भवन्ति । aaaa४a a-१-१ aaaara४ ॥ ६३६ ॥ अथास्य गुणितक्रमस्य व्याप्तिमाहa-१-३-१
असंख्यात और एक बार संख्यातरूप भागहार कहा था । उसको एक कम आवलीके असंख्यातवें भागसे भाग देनेसे जो प्रमाण आवे, उतना उतना उनमें मिलानेपर देवगतिमें मिश्र तथा सासादनगुणस्थानवालोंका प्रमाण लानेके लिए भागहार होता है । देवगति में २० असंयत मिश्र और सासादनके लिए जो-जो भागहारका प्रमाण कहा, उसे एक कम आवलीके असंख्यातर्वे भागसे भाग देनेपर जो प्रमाण आवे, उतना उतना उन उन भागहारों में मिलाने से सौधर्म-ऐशान स्वर्ग में अविरत मिश्र और सासादनसम्बन्धी भागहार होता है ||६३४-६३५||
सौधर्म और ऐशान में सासादनका जो भागहार है, उससे असंख्यातगुणा भागहार सानत्कुमार, माहेन्द्र स्वर्ग में असंयतसम्बन्धी है । 'च' शब्दसे इस असंयतके भागहारसे २५ असंख्यात गुणा मिश्रगुण सम्बन्धी भागहार है और उससे संख्यातगुणा सासादनसम्बन्धी भागहार है ||६३६|
आगे इस गुणितक्रमकी व्याप्ति कहते हैं
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