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________________ ५ गो० जीवकाण्डे स्थानावसानमाद गुणस्थानत्रयदोळ आवुदोंदु सासावनर हारमदं नोडलु मुंबल्लेतेडेयोळं असंयतमिश्रर हारंगळु संख्यातगुणितक्रमंगळ सासादनर हारंगळु संख्यातगुणंगळप्पुवु । सप्तमपृथ्विय गुणस्थानत्रयपय्यं तमे बी व्याप्तियं पेदपं : ८७२ सोहम्मसाणहारमसंखेण य संखरूव संगुणिदे | उवरि असंजद मिस्स सासणसम्माण अवहारा ॥ ६३६ ॥ सौधर्म्मसासादनहारम संख्येन च संख्यरूपसंगुणिते । उपसंयतमिश्रसासादनसम्यग्दृष्टीनामवहाराः ॥ सौधर्मकल्पद्वयदसासादन सम्यग्दृष्टिगळ भागहारम a - १० - १ शब्ददिदं मत्तमसंख्यातदिदं संख्यातरूपुर्गाळदं गुणितं माडुत्तिरलु यथासंख्यमागि मेले सानत्कु१० मारद्वयदोळऽसंयतादि अधस्तनगुणस्थानत्रयद हारंगळप्पुवु । सानत्कुमारद्वयद असंयतहारंगळु सासादनर हारंगळु aaaaa मिश्रहारंगळु ४ a a - १० - १ a - १० - १ अनंतरमी गुणितक्रमदव्याप्तियं पेळदपं : मिश्रसासादनानां भागहारा भवन्ति aaaa a–१, a–१ तत्सौधर्मद्वयसासादनभागहारे aaaa ४ असंख्यातेन a-१-a-१ aaa –१, ३-१ १५ गुणिते यथासंख्यमुपरि सानत्कुमारद्वये aaaa Yaa a-१-१ Jain Education International ४ निदनसंख्यातदिदं च aaaaraa४ a - १० - १ aayaa a-१, a-१ चशब्दात् पुनरसंख्यातेन संख्यातरूपैश्च असंख्यात मिश्रसासादनहारा भवन्ति । aaaa४a a-१-१ aaaara४ ॥ ६३६ ॥ अथास्य गुणितक्रमस्य व्याप्तिमाहa-१-३-१ असंख्यात और एक बार संख्यातरूप भागहार कहा था । उसको एक कम आवलीके असंख्यातवें भागसे भाग देनेसे जो प्रमाण आवे, उतना उतना उनमें मिलानेपर देवगतिमें मिश्र तथा सासादनगुणस्थानवालोंका प्रमाण लानेके लिए भागहार होता है । देवगति में २० असंयत मिश्र और सासादनके लिए जो-जो भागहारका प्रमाण कहा, उसे एक कम आवलीके असंख्यातर्वे भागसे भाग देनेपर जो प्रमाण आवे, उतना उतना उन उन भागहारों में मिलाने से सौधर्म-ऐशान स्वर्ग में अविरत मिश्र और सासादनसम्बन्धी भागहार होता है ||६३४-६३५|| सौधर्म और ऐशान में सासादनका जो भागहार है, उससे असंख्यातगुणा भागहार सानत्कुमार, माहेन्द्र स्वर्ग में असंयतसम्बन्धी है । 'च' शब्दसे इस असंयतके भागहारसे २५ असंख्यात गुणा मिश्रगुण सम्बन्धी भागहार है और उससे संख्यातगुणा सासादनसम्बन्धी भागहार है ||६३६| आगे इस गुणितक्रमकी व्याप्ति कहते हैं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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