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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
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गुणस्थानदोळपेद असंयतसम्यग्दृष्टि सम्यग्मिथ्यादृष्टि सासादनसम्यग्दृष्टिगळे बी मूरुं गुणस्थानंगळ आgg केलवु पल्यक्के पोक्क भागहारंगळ अ
वरूपोनावल्यसंख्यातदिदं
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सा aa४
a-१ । भागिसि भागिसि तंतम्म हारदोळे कूडल्पटुवादोडे देवोघदोळु तंतम्म भागहारंगळप्पुवु । अ aa मत्तमी देवसामान्यगुणस्थानत्रयभागहारंगळं रूपोनावल्यसंख्यातदिदं भागिि
a-१ मिaaa a-१
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a-१
भागिसिदेकभागमं तं तम्म हारंगळोळ प्रक्षेपित्तं विरलु सौधम्र्मेज्ञानकल्पद्वयद असंयत मिश्रसासा- ५ दनरुगळ भागहा रंगळवु । सौधर्म्मकल्पद्वयद असंयतन भागहारंगळु प मिश्र भागहारंगळु
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a-१०-१
सासादनर भागहारंगळु प
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a-१
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एतेषु रूपोनावल्यसंख्यातेन - १
गुणस्थानोक्ताः असंयतसम्यग्मिथ्यादृष्टिसासादनानां ये पल्यासंख्यातप्रविष्टभागहारा: अ a
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अनंतरमी सौधर्मकल्पद्वयासंयतादि सासादनगुण
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a - १० - १
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a-१०-१
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सा a а ४
भक्त्वा एतेष्वेव निक्षितेषु देवौघे स्वस्वभागहारा भवन्ति । एतान् पुनः रूपोनावल्यसंख्यातेन भक्त्वा एकैकभागे स्वस्वहारे प्रक्षिप्ते सौधर्मेशाना संयत
१०
a-१ साaaya
a-१
गुणस्थानों में जीवोंकी संख्या कहते हुए पूर्व में जो असंयत, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और सासादन पल्के भागहार कहे हैं, उनमें एक कम आवलीके असंख्यातवें भागसे भाग देनेसे जो प्रमाण आवे, उन्हें उन्हीं भागद्दारोंमें मिलानेसे देवगतिमें अपना-अपना भागहार होता है । इन भागद्दारोंको पुनः एक कम आवलीके असंख्यातव भागसे भाग देकर एक-एक १५ भाग अपने-अपने भागहार में मिलानेपर सौधर्म और ऐशान स्वर्ग में असंयत मिश्र और सासादनोंके भागहार होते हैं ।
विशेषार्थ - पहले असंयतगुणस्थानमें भागहारका प्रमाण एक बार असंख्यात कहा था । उसे एक कम आवलीके असंख्यातवें भागसे भाग देनेसे जो प्रमाण आवे, उसे उस भागहार में मिलानेपर जो प्रमाण हो, उतना देवगतिसम्बन्धी असंयतगुणस्थानका २० भागहार जानना । इस भागहारका भाग पल्यमें देनेसे जो प्रमाण आवे, उतने देवगतिमें असंयत गुणस्थानवर्ती जीव हैं। मिश्रमें दो बार असंख्यातरूप और सासादनमें दो बार
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