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________________ ८६८ गो० जीवकाण्डे जेहावरबहुमज्झिम ओगाहणगा दु चारि अहेव । जुगवं हवंति खवगा उवसमगा अद्धमेदेसि ॥६३२॥ ज्येष्ठावरबहुमध्यमावगाहनकाः द्विचतुरष्टव। युगपद्भवंति क्षपकाः उपशमकाः अर्द्धमेतेषां।। बोधितबुद्धरु क्षपकरेकसमयदोळु युगपन्नूरेंटु उपशमकरु तदर्द्धमप्परु १०८ पुवेदिगळ ५ क्षपकरु नूरे टुपशमकरु तदर्द्धमप्परु । १०८ स्वर्गदिदं बंद क्षपका युगपन्नूरे टुपशमकरु तदद्धं ५४ इ३,२६, ७२८ । ल के ८, ९८, ५०२ । तथा प्र स ८ । फ के १७६ । इ ३,२६, ७२८ । ल के ८, ९८, २२ २ । २।२ ५०२ । इदमेकपक्षान्तरम् ॥६२९॥ अथैकसमये युगपत्संभवती क्षपकोपशमकविशेषसंख्यां गाथात्रयेणाह युगपदुत्कृष्टेन एकसमये बोधितबुद्धाः पुंवेदिनः स्वर्गच्युताश्च प्रत्येक क्षपकाः अष्टोत्तरशतम् उपशमआठ लाख अट्ठानबे हजार पाँच सौ दो आता है। नीचे इन छह राशियों को अंकित किया १० जाता है प्रमाणराशि फलराशि लब्धराशि केवली २२ इच्छाराशि केवली ८९८५०२ काल छह मास ८ समय काल ४०८४१४ छह मास आठ समय ८ समय २२ १५ काल समय काल समय छह मास ८ समय ४०८४१४ छहमास ३२६७२८ आठ समय केवली समय केवली ३२६७२८ ८९८५०२ समय केवली समय केवली ४४ ३२६७२८ का आधा ८९८५०२ समय केवली समय केवली ३२६७२८ का चौथाई ८९८५०२ समय केवली समय केवली ३२६७२८ का ८९८५०२ आठवाँ भाग आगे एक समयमें एक साथ होनेवाली क्षपकों और उपशमकोंकी विशेष संख्या तीन गाथाओंसे कहते हैं एक साथ उत्कृष्ट से एक समयमें बोधित बुद्ध क्षपक, पुरुषवेदी क्षपक, और स्वर्गसे च्युत होकर मनुष्य जन्म लेकर क्षपकश्रेणी चढ़नेवाले प्रत्येक एक सौ आठ, एक सौ आठ ८८ २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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