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________________ ८६७ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका 'इंतिदोंदु पक्षांतरमरियल्पडुगु । अनंतरनेक समयदोळु युगपत्संभविसुव क्षपकर विशेषसंख्येयुमनुपशमकर विशेषसंख्ययुमं गाथात्रयदिदं पेब्दपरु । होंति खवा इगिसमये बोहियबुद्धा य पुरिसवेदा य । उक्कस्सेणठुत्तरसयप्पमा सग्गदो य चदा ॥६३०॥ भवंति क्षपकाः एकस्मिन्समये बोधितबुद्धाश्च पुरुषवेदाश्च । उत्कृष्टेनाष्टोत्तरशतप्रमिताः ५ स्वर्गतश्च च्युताः॥ पत्तेयबुद्धतित्थयरिस्थिणqसयमणोहिणाणजुदा । दसछक्कवीसदसवीसट्ठावीसं जहाकमसो ॥६३१॥ प्रत्येकबुद्धतीत्थंकरस्त्रीनपुंसकमनोवधिज्ञानयुताः। दश षट्क विशति दश विशत्यष्टाविंशतिः यथाक्रमशः॥ २६, ७२८ ल । के ८, ९८, ५०२ । तथा प्र स ८। फ के ४४ । इ ३, २६, ७२८ ल । के ८, ९८, २२ ५०२ तथा प्रस८। फ के ४४ । इ३,२६,७२८ । ल के ८. ९८.५०२। तथा प्र स ८। फ के ८८ । आठ समयमें निरन्तर केवली उत्पन्न होनेका काल आठ समय है,तो पूर्वोक्त कालमें कितने समय हैं। ऐसा त्रैराशिक करनेपर प्रमाणराशि छह मास आठ समय, फलराशि आठ समय, इच्छाराशि छह मास आठ समयसे गुणित चालीस हजार आठ सौ इकतालीस । यहाँ १५ प्रमाणराशिके कालसे इच्छाराशिके कालका अपवर्तन करके फलराशिके आठ समयोंसे इच्छाराशि ४०८४१ को गुणा करनेपर तीन लाख छब्बीस हजार सात सौ अट्ठाईस समय होते हैं। ३-६ आठ समयोंमें विभिन्न आचार्योंके मतसे बाईस या चवालोस या अठासी या एक सौ छियत्तर जीव केवलज्ञानको उत्पन्न करते हैं,तो पूर्वोक्त तीन लाख छब्बीस हजार सात सौ अट्ठाईस समयोंमें अथवा उससे आधे अथवा चौथाई अथवा आठवे भाग समयोंमें कितने २० जीव केवलज्ञान उत्पन्न करते हैं,इस प्रकार चार त्रैराशिक करना । इन चारोंमें प्रमाणराशि आठ समय है। फलराशि २२, ४४, ८८ और १७६ पृथक्-पृथक् है। तथा इच्छाराशि तीन लाख छब्बीस हजार सात सौ अट्ठाईस , उसका आधा, उसका चौथाई और उसका आठवाँ भाग पृथक्-पृथक् है । सर्वत्र फलराशिसे इच्छाराशिको गुणा करके प्रमाणराशिसे भाग देनेपर लब्ध १. गुणितक्रमः समीचीनः प्रयोजनं वावबुध्यते । अदिंगळ मेले टुसमयदोळगे केवलज्ञानमं पडेव जीवंगळु २५ जघन्य ७२६ दिंदविप्पत्तेरडनुत्कृष्टदिने टु लक्षवु तोभत्तटु साविरदैनूररडु मध्यनानाभेदमदरोळु नात्तनाल्क ४४ भत्ते ८८ टु नूरिप्पत्ताब मूरु विकल्पमं जघन्यममं फलराशियं माडिदर मूरुमध्यमविकल्पद इच्छाराशिय हारवेत दोड इल्लिय फलराशियं इच्छाराशियं माडि अरुदिंगळ मेले टु समयंगळं फलराशियं माडि उत्कृष्टकेवलिसंख्येयं इच्छाराशियं माडलक्कं । बंद लब्ध १६३६४ यी राशियनेरडरि गुणिसियरडरि भागिसिदडे इंतक्कुं ३२६७२८ = इदु प्रतिपद =॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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