SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 357
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्वप्रदीपिका ८४३ मागि। ई त्रयोविंशतिवर्गणेगळोळ प्रत्येकवर्गणेयुं बादरनिगोदवर्गणयुं सूक्ष्मनिगोदवर्गणेयुमें 'बी मूलं वग्गणेगळु सचित्तवर्गणेगळवरोळु अयोगिचरमसमयदोळु प्रथमप्रत्येकशरीरवर्गणेयोळ जघन्यवरांणाद्रव्यं स्यादस्ति स्यान्नास्ति यद्यस्ति तदा एक मेणु द्वयं मेणु त्रयं मेणु उत्कृष्टदिदं चतुष्टयमक्कं द्वितीयवर्गणेयोळु द्रव्यं स्यादस्ति स्यान्नास्ति यद्यस्ति तदा एक वा द्वयं वा त्रयं वा उत्कृष्टेन चत्वारि भवंति इंतवस्थितक्रमदिंदमनंतवर्गणगळु सलुत्तंविरलु बळिक्कल्लि मेले ५ आवुदों दनंतरवर्गणया वर्गणयोळु द्रव्यंगळु स्यादस्ति स्यान्नास्ति यद्यस्ति तदा एक वा द्वयं वा त्रयं वा उत्कृष्टन पंच भवंति सदृशधनिकानि । इंतवस्थितक्रमदिदमनंतवर्गणेगळु सलुत्तं विरलु बळिक्कमावुदो दनंतरवर्गणयदरोळु वर्गणगळु कथंचिदुंदु कथंचिदिल्लि यत्तलानुमुंटक्कुमप्पोडा. गळु एक मेणु द्वयं मेणु त्रयं मेणु उत्कृष्टदिदं सदृशधनिकंगळु षड्जीवंगळप्पुवी क्रमदिदं सप्ताष्टसप्तषट्पंचचतुस्थिद्विसदृशधनिकवर्गणेगळु संभविसुववु । ई यभिप्रायव मध्यप्ररूपणे भव्यसिद्ध- १० प्रायोग्यस्थानंगळोळ गृहीतव्यमवकु-। मल्लिदं मेले यावुदोंदनंतरवर्गणेयदु संसारिजीवप्रायोग्यवर्गणयक्कुमदरोळु वर्गणगळु कथंचिढुंटु कथंचिदिल्ल एत्तलानुमुटक्कुमप्पोडागळु एक मेणु द्वयं खलु स्फुटम् । तासु प्रत्येकबादरनिगोदसूक्ष्मनिगोदवर्गणाः तिस्रः सचित्ताः । तत्र अयोगिचरमसमये प्रत्येकशरीरजघन्यं स्यादस्ति स्यानास्ति ? यद्यस्ति तदा एक वा द्वयं वा त्रयं वा उत्कृष्टेन चत्वारि । तथा तद्वितीयवर्गणाद्रव्यं स्यादस्ति स्यान्नास्ति । यद्यस्ति तदा एक वा द्वयं वा त्रयं वा उत्कृष्टेन चत्वारि इत्यवस्थितक्रमेणा- १५ नन्तवर्गणा अतीत्य अनन्तरवर्गणाद्रव्यं स्यादस्ति स्यान्नास्ति । यद्यस्ति तदा एक वा द्वयं वा त्रयं वा उत्कृष्टेन पञ्च इत्यवस्थितक्रमेण अनन्तवर्गणा अतीत्य अनन्तरवर्गणाद्रव्यं कथञ्चिदस्ति कथञ्चिन्नास्ति । यद्यस्ति तदा एक वा द्वयं वा त्रयं वा उत्कृष्टेन षट् अनेन क्रमेण सप्ताष्ट सप्तषट् पञ्चचतुस्त्रिद्विसदृशधनिकानि भवन्ति । इयं यवमध्यप्ररूपणा भव्यसिद्धप्रायोग्यस्थानेषु ग्राह्या। अनन्तरवर्गणा सा संसारिजीवप्रायोग्या तद् द्रव्यं कथञ्चिदस्ति कथञ्चिन्नास्ति यद्यस्ति तदा एक वा द्वयं वा त्रयं वा उत्कृष्टेन आवल्यसंख्यातेकभागः इत्यवस्थित- २० वर्गणाके भेद लिये हुए पुद्गल द्रव्योंका कथन किया है ।उनमें से प्रत्येक शरीर, बादरनिगोद और ये तीन वर्गणा.सचित्त हैं। उनका विशेष कहते हैं-उनमें-से अयोगकेवलीके अन्तिम समयमें पायी जानेवाली जघन्य प्रत्येक शरीरवर्गणा लोकमें होती भी है और नहीं भी होती। यदि होती हैं,तो एक या दो या तीन या उत्कृष्टसे चार तक होती हैं। उस जघन्य वर्गणासे एक परमाणु अधिक द्वितीय प्रत्येक शरीरवर्गणा होती भी है और नहीं भी होती। यदि होती २५ हैं,तो एक या दो या तीन या उत्कृष्ट से चार होती हैं । इसी अवस्थित क्रमसे एक-एक परमाणु बढ़ाते-बढ़ाते अनन्त वर्गणाओंके होनेपर उसके अनन्तर एक परमाणु अधिक वर्गणा लोकमें होती भी है और नहीं भी होती। यदि हैं,तब एक या दो या तीन या उत्कृष्टसे पाँच होती हैं। इसी अवस्थित क्रमसे एक-एक परमाणु बढ़ाते-बढ़ाते अनन्त वर्गणाएँ बीतनेपर पुनः एक परमाणु अधिक वर्गणा होती भी है और नहीं भी होती। यदि है,तब एक या दो या ३० तीन वा उत्कृष्ट से छह होती हैं। इसी क्रमसे अनन्तवर्गणा पर्यन्त उत्कृष्ट सात, आठ, सात, छह, पाँच, चार, तीन-दो वर्गणा लोकमें समान परमाणुओंके परिमाणको लिये हुए होती हैं। यह यवमध्यप्ररूपणा मोक्ष जानेवाले भव्य जीवोंके योग्य स्थानों में ग्रहण करनेके योग्य है । अब जो अनन्तरवर्गणा संसारी जीवोंके योग्य हैं , उसे कहते हैं। पूर्व में कही प्रत्येक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy