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________________ ८४२ गो० जीवकाण्डे संख्या तक भागमात्रंगळवु । सूक्ष्मनिगोदजघन्यवर्ग णेगळु सदृशधनिकंगळ जलदोळं स्थलदोळमाकाशदोळं मे आवल्यसंख्यातक भागमात्रंगळप्पुवु । उत्कृष्टवर्गणेगळु सूक्ष्मनिगोदसंबंधिगळ तु मत्ते वर्त्तमानकालदोळु महामत्स्यंगळोळावल्यसंख्यातैकभागमात्रंगळप्पुवु । ई मूरु सचित्तवर्गणेगळोळु जघन्यानुत्कृष्टवर्गणेगळु वर्त्तमानकालदोळ संख्यात लोकमात्रंगळप्पु वु । महास्कंधवर्गणेगळ ५ वर्त्तमानकालदो तु मत्ते एकमेयक्कुं । महास्कंधर्म बुदावुदे दोडे भवनंगळं विमानंगलुमष्टपृथ्विगळु मेरुगळं कुलशैलादिगळगे की भावमक्कुमदाव तेरदिदमसंख्यातयोजनंगळनंतरिसिद्दवक्कै - कत्वमे दोडे एक बंधन बद्धसूक्ष्मपुद्गलस्कंधंगळदं समवेतंगळगंतराभावमक्कुमरपुर्दारदं । मिस्सं पुण वहियं उवरिमं जहण्णं खु । इदि तेवीसवियप्पा पोग्गलदव्वा हु जिणादिट्ठा ॥ ६०१ ॥ अधस्तनोत्कृष्टा: पुना रूपाधिका उपरितनजघन्याः खलु । इति त्रयोविंशतिविकल्पाः पुद्गलद्रव्याणि खलु जिनदृष्टानि ॥ ई. त्रयोविंशतिवर्गणेगळोळु परमाणुवणेयुळियलुळिद द्वाविंशतिवरांणेगळ अधस्तनोस्कृष्टवर्गणेगळु रूपाधिकमादुवादोडे तत्तदुपरितनवर्गणेगळ जघन्यवर्गणेगळप्पूवु खलु नियमदिदम त्रयोविंशतिवर्गणाविकल्पंगळु पुद्गलद्रव्यंगळे दु जिनरुगळदं पेळल्पट्टुवु खलु स्फुट१५ महामत्स्यादिषु आवल्यसंख्यातैकभागः । सूक्ष्मनिगोदजघन्यानि वर्तमानकाले जले स्थले आकाशे वा आवल्यसंख्यातैकभागः । उत्कृष्टान्यपि महामत्स्येषु तदालापानि । अस्मिन् सचित्तवर्गणात्रये अजघन्यानुत्कृष्टानि वर्तमानकाले असंख्यातलोकमात्राणि भवन्ति । महास्कन्धवर्गणा वर्तमानकाले एका सा तु भवनविमानाष्टपृथ्वीमरुकुलशैलादीनामेकीभावरूपा । कथं संख्याता संख्यातयोजनान्तरितानामेकत्वं ? एकबन्धनबद्ध सूक्ष्मपुद्गलस्कन्धैः समवेतानामन्तराभावात् ॥ ६०० ॥ १० २० त्रयोविंशतिवर्गणासु अणुवर्गणातः शेषाणां अधस्तनवर्गणोत्कृष्टानि रूपाधिकानि भूत्वा तदुपरितनवर्गणानां जघन्यानि भवन्ति खलु नियमेन इति त्रयोविंशतिवर्गणाविकल्पानि पुद्गलद्रव्याणि जिनैरुक्तानि स्वयम्भूरमण द्वीप दावानल आदि में आवलीके असंख्यातवें भागमात्र पायी जाती है। बादरनिगोदवर्गणाका जघन्य वर्तमानकाल में क्षीणकषाय गुणस्थानके अन्तिम समय में चार पाया जाता है । उत्कृष्ट बादर निगोदवर्गणा महामत्स्य आदिमें आवलीके असंख्यातवें भाग प्रमाण २५ पायी जाती है । सूक्ष्म निगोदवर्गणाका जघन्य वर्तमानकाल में जल, स्थल अथवा आकाशमें आवलीके असंख्यातवें भाग पाया जाता है । उसका उत्कृष्ट भी महामत्स्योंमें आवलीके असंख्यातवें भाग पाया जाता है । प्रत्येक शरीर, बादरनिगोद और सूक्ष्मनिगोद इन तीन सचेतन वर्गणाओंमें अजघन्य और अनुत्कृष्ट अर्थात् मध्यमभेद वर्तमानकाल में असंख्यात लोकमात्र पाये जाते हैं। वर्तमानकाल में महास्कन्धवर्गणा एक है, वह भवनवासियोंके देवोंके विमान, आठ पृथिवियाँ, सुमेरु कुलाचल आदिका एक स्कन्धरूप है 1 शंका-उनमें तो संख्यात असंख्यात योजनका अन्तराल है, वे एक कैसे हैं ? भवन, ३० समाधान -- उनके मध्यमें जो सूक्ष्म पुद्गल स्कन्ध हैं, वे सब उक्त विमानादिके साथ एक बन्धनमें बद्ध होनेसे उनमें अन्तराल नहीं है ||६००|| तेईस वर्गणाओंमें-से अनुवर्गणाको छोड़कर शेष नीचेकी वर्गणाओंके उत्कृष्ट में एक ३५ अधिक करनेसे नियमसे ऊपरकी वर्गणाओंके जघन्य होते हैं । इस प्रकार जिनदेवने तेईस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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