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________________ ८४१ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका आ गुणकारंगळिदं तंतम्म जघन्यवर्गणेयं गुणिसिदोडे तंतम्मुत्कृष्टवर्गणेगळप्पुबुदर्थमवरोळ शून्यवर्गणेयोल सूच्यंगुलासंख्यातगुणकारमैते दोडे :-सूक्ष्मनिगोदजघन्यवर्गणेयोळळळ सूच्यंगुलासंख्यातं तद्वर्गणयोळेकरूपहीनमागि शून्यवर्गणोत्कृष्टवर्गणेयादुदप्पुदरिना गुणकारं तज्जघन्यदोळिल्लप्पुरदं सूक्ष्मनिगोदवर्गणेयोल पल्यासंख्यातगुणकारमें तें वोडे गुणितकमांशजीवप्रतिबद्धसमयप्रतिबद्धमुत्कृष्टयोगाजितमप्पुरिदं पल्यच्छेदासंख्यातेकभागं गुणकारमप्पुरिंद। ५ ____इंतु त्रयोविंशतिवर्गणेगळेकश्रेण्याश्रितंगळु पेळल्पटुविन्नु नानाश्रेणियनायिसि पेळल्पटुपुवदेते दोड:-परमाणुवर्गणे मोदल्गोंडु सांतरनिरंतरवर्गणोत्कृष्टवर्गणावसानमाद वर्गणेगळ सदृशधनिकवर्गणेगळु अनंतपुद्गलवर्गमूलमात्रंगळागुत्तलं मेले मेले विशेषहीनंगळप्पुवल्लि प्रतिभागहारं सिद्धानंतैकभागमक्कुं। प्रत्येकदेहजघन्यसदृशधनिकंगळु वर्तमानकालदो क्षपितकाशलक्षदिदं बंदयोगिचरमसमयदोळु नाल्केयप्पुवु । ४। वुत्कृष्टवग्गंणेगळु वर्तमानकालदोळ १० एनितु संभविसुगुम दोडे स्वयंभूरमणद्वीपदकाळिकच्चु मोदलादवरोळु आवल्यसंख्यातेकभागमात्रंगळु संभविसुववु । बादरनिगोदजघन्यवर्गणेगळु वर्तमानकालदोळे नितु संभविसुगुमें दोड क्षीणकषायचरमसमयदोळु नाल्केयप्पुवु । तदुत्कृष्टवर्गणेगळु महामत्स्यादिगळोळु आवल्य सति तदुत्कृष्टसंभवात् । सूक्ष्मनिगोदवर्गणायां पल्यासंख्यातगुणकारोऽपि तत्समयप्रबद्धानां गुणितकर्माशजीवप्रतिबद्धत्वात् । एवं त्रयोविंशतिवर्गणा एकश्रेण्याश्रिताः कथिताः। इदानीं नानाश्रेणीराश्रित्योच्यन्ते-तद्यथा- १५ परमाणुवर्गणातः सांतरनिरन्तरोत्कृष्टावसानवर्गणानां सदृशधनिकानि अनन्तपुद्गलवर्गमूलमात्राण्यपि उपर्युपरि विशेषहीनानि भवन्ति । तत्र प्रतिभागहारः सिद्धानन्तकभागः । प्रत्येकदेहजघन्यसदृशधनिकानि वर्तमानकाले क्षपितकौशलक्षणेनागत्य अयोगिचरमसमये चत्वारि । उत्कृष्टानि स्वयम्भरमणद्वीपस्य दावानलादिषु आवल्यसंख्यातकभागमात्राणि बादरनिगोदजघन्यानि वर्तमानकाले क्षीणकषायचरमसमये चत्वारि तदुत्कृष्टानि असंख्यातवाँ भाग और जगत्प्रतरका असंख्यातवाँ भाग होता है, यहाँ जो शून्यवर्गणामें २० सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग गुणाकार कहा है, उसका कारण यह है कि सूक्ष्म निगोदवर्गणाके जघन्यमें से एक घटानेपर शून्यवर्गणाका उत्कृष्ट होता है। सूक्ष्म निगोद वर्गणामें गुणाकार पल्यके असंख्यातवें भाग कहा है सो उसके समयप्रबद्ध गुणित कांश जीवसे सम्बद्ध होनेसे कहा है। इस प्रकार एक श्रेणि रूपसे तेईस वर्गणाएँ कहीं। अब नाना श्रेणियोंको लेकर कहते हैं अर्थात् जो ये वर्गणा कही हैं,वे लोकमें वर्तमान कोई एक कालमें कितनी-कितनी पायी जाती हैं, यह कहते हैं-परमाणुवर्गणासे लेकर सान्तनिरन्तरवर्गणा पर्यन्त पन्द्रह वर्गणाएँ समानधनवाली हैं। ये पुद्गल द्रव्यराशिके वर्गमूलको अनन्तसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतनी-उतनी लोकमें पायी जाती हैं, किन्तु आगे-आगे कुछ-कुछ कम होती जाती हैं। इनमें प्रति भागहार सिद्धराशिका अनन्तवाँ भाग है अर्थात् जितनी अणुवर्गणाएँ हैं, उनमें ३० सिद्धराशिके अनन्तवें भागसे भाग देनेपर जो प्रमाण आये, उतना अणवर्गणाके परिमाण में-से घटानेपर जो प्रमाण शेष है, उतनी संख्याताणुवर्गणा जगत्में होती हैं। इसी प्रकार आगे जानना। किन्तु सामान्यसे प्रत्येक पृथक्-पृथक् वर्गणाका प्रमाण अनन्त पुद्गल राशिका वर्गमूल मात्र है। प्रत्येक शरीरवर्गणाका जघन्य वर्तमानकालमें क्षपितकाशरूपसे आकर अयोगकेवलीके अन्त समयमें पाया जाता है,सो उत्कृष्टसे चार है। उत्कृष्ट प्रत्येक शरीरवर्गणा ३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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