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________________ ८४४ गो० जीवकाण्डे मेणु त्रयं मेणु उत्कृष्टदिदमावल्यसंख्यातैकभागमात्रंगळु सदृशधनिकंगळु संभविसुवितवस्थितक्रमदिदमनंतवर्गणगळु सलुत्तं विरलु बळिकमावुदो दनंतवर्गणेयदरोळु वर्गणेगळु कथंचिदुंदु कथंचिदिल्ल एत्तलानुमुंटक्कुमप्पोडागळु एक मेणु द्वयं मेणु त्रयं मेणुत्कृष्टदिदमावल्यसंख्यातकभागमात्रंगळु सदृशधनिकंगळु घटियिसुगुमंतु घटिसुदो दं विशेषमुंटावुदे दोर्ड पूर्ववर्गणेगळं ५ नोडलिवेकवर्गायदं विशेषाधिकंगळप्पुवु ८ मत्तमी विधानदिदमेयनंतवर्गणगळु नडववु । मत्तावुदो दनंतरोपरितनवर्गणेगळोळधस्तनाधस्तनवर्गणेगळं नोडळेकैकवर्गणेगळिदं विशेषाधिकंगळप्पवितु। ई विधानदिदं नडसल्पडुवुदन्नवरं यवमध्यमन्नेवरं मत्ता यवमध्यवर्गणेगळु क्वचिदस्ति क्वचिन्नास्ति यद्यस्ति तदा एक मेणु द्वयं मेणु त्रयं मेणु उत्कृष्टदिदमावल्यसंख्यातकभागमात्रंगळप्पुवंतागुत्तखें पूर्वोक्तक्रम१० दिदमनंतराधस्तन सदृशधनिकवर्गणेगळं नोडलेकवर्गयिदं विशेषाधिकंगळप्पुवु मत्तमिवुमनंत वर्गणेगळवस्थितक्रमदिदं नडेववु । बळिक्क अल्लिदं मेले यावुदो दनंतरवर्गणेयदु स्यादस्ति स्यान्नास्ति यद्यस्ति तदा एक मेणु द्वयं मेणु त्रयं मेणुत्कृष्टदिंदमावल्यसंख्यातेकभागमात्रंगळप्पु क्रमेण अनन्तरवर्गणा अतीत्य अनन्तरवर्गणाद्रव्यं कथञ्चिदस्ति कथञ्चिन्नास्ति यद्यस्ति तदा एक वा द्वयं वा त्रयं उत्कृष्टेन आवल्यसंख्यातकभागः । अयं पूर्वस्मादेकरूपाधिक:- २ एवमनन्तवर्गणा अतीत्य अनन्तरोपरितन वर्गणासु अधस्तनाधस्तनवर्गणाभ्यः एकैकाधिका भवन्ति । एवं यावत् यवमध्यं तावन्नेतव्यम् । यवमध्यवर्गणासदृशधनिकद्रव्यं क्वचिदस्ति क्वचिन्नास्ति यद्यस्ति तदा एक वा द्वयं वा त्रयं वा उत्कृष्टेन आवल्यसंख्यातेकभागः । अयं ततोऽप्येकरूपाधिकः । एवमनन्तवर्गणा अतीत्य अनन्तरवर्गणाद्रव्यं स्यादस्ति स्यान्नास्ति, यद्यस्ति तदा एक वा द्वयं वा त्रयं वा उत्कृष्टेन आवल्यसंख्यातकभागः । अयं पूर्वस्मादेकरूपहीनः । एवं यावदुत्कृष्टा प्रत्येकवर्गणा तावन्नेयम् । तदुत्कृष्टमपि स्यादस्ति स्यान्नास्ति यद्यस्ति तदा एक वा द्वयं वा त्रयं वा उत्कृष्टेन २० वगणासे एक परमाणु अधिक जो प्रत्येक वर्गणा है, वह लोकमें होती भी है और नहीं भी होती। यदि है, तब एक या दो या तीन या उत्कृष्टसे आवलीके असंख्यातवें भाग होती है । इसी क्रमसे एक-एक परमाणु बढ़ाते-बढ़ाते अनन्त वर्गणा बीतनेपर उससे एक परमाणु अधिक अनन्तरवर्गणा कथंचित् है, कथंचित् नहीं है। यदि है , तब एक या दो या तीन उत्कृष्टसे आवलीके असंख्यातवें भाग होती है। पहलेसे इसका प्रमाण एक अधिक है। २५ इस प्रकार अनन्त वर्गणा बीतनेपर अनन्तरकी ऊपरकी वर्गणाओंमें नीचे-नीचेकी वर्गणासे एक-एक अधिक परमाणु होता है। इस प्रकार जबतक यवमध्य आये, तब तक ले जाना चाहिए। यवमध्यमें जितने परमाणुओंके स्कन्धरूप प्रत्येक वर्गणा होती है, उतने-उतने परमाणुओंके स्कन्धरूप प्रत्येक वर्गणा लोकमें होती भी हैं या नहीं भी होती ? यदि हैं,तो एक या दो या तीन उत्कृष्टसे आवलीके असंख्यातवें भाग प्रमाण होती हैं। यह उससे भी , एक अधिक है। ऐसे अनन्त वर्गणा बीतनेपर अनन्तर जो वर्गणा है , वह कथंचित् है, . कथंचित् नहीं है। यदि है ,तो एक,दो या तीन या उत्कृष्टसे आवलीके असंख्यातवें भाग है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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