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________________ ८३४ गो० जीवकाण्डे ण्यसंख्येयभागमात्र पुळविगळोळिरुतिई गुणितकम्मांशानंतानंतजीवंगळ सविनसोपचय त्रिशरीरसंचयमं कोळुत्तिरलक्कुं: उस ३२० ख ख १२-१६ख १३ 200a बादरनिगोद ९५ ज स ख ख १२-१६ ख १३८ प ९ ५प ई बादरनिगोदोत्कृष्टवर्गणेयोळेकरूपमनधिक माडुत्तिरलु तृतीयशून्यवर्गणेगळो जघन्यवर्गणेयक्कुं तृतीय शून्यः जस ३२ ० ० ख ख १२- १६ ख १३-= ४८ ९७५ ५ सूक्ष्मनिगोदजघन्यवर्गणेयावर्डयोलु संभविसुगुमे दोडे जलदोळु स्थलदोळमाकाशदोळमेणु कर्माशानन्तानन्तबादरनिगोदजीवानां सविस्रसोपचयत्रिशरीरसंचयः उत्कृष्टबादरनिगोदवर्गणा भवति उ ० स ३२ ख ख १२-१६ ख १३-=ala बादरणिगोदसरीर : ९ . ज ० स ख ख १२-१६ ख १३-aa८ प a a ९ 2 .५ प a इयमेकरूपाधिका तृतीयशून्यवर्गणाजघन्यं भवति -- ॥ -- तियसुण्णवग्गणा ज स ३२aaख ख १२-१६ ख १३-Bala ९ ०५ एक परमाणु हीन करनेपर उत्कृष्ट ध्रुव शून्यवर्गणा होती है। तथा इस जघन्यको जगत् श्रेणिके असंख्यातवें भागसे गुणा करनेपर उत्कृष्ट बादरनिगोदवर्गणा होती है। स्वयम्भू रमणद्वीपमें जो मूलक आदि सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतियोंके शरीर हैं, उनमें एक बन्धनबद्ध १० जगत्श्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण पुलवियोंमें रहनेवाले गुणितकर्माश अनन्तानन्त बादर निगोद जीवोंका जो विस्रसोपचय सहित औदारिक तैजस कार्मणशरीरका उत्कृष्ट संचय है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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