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________________ २ कर्णाटवृत्ति जोवतत्त्वप्रदीपिका ८३५ एकबंधनबद्धावल्यसंख्यातेकभागमात्रपुळ विगळोळिरुत्तिई क्षपितकर्मांशानंतानंतसूक्ष्मनिगोदंगळ सविनसोपचयत्रिशरीरसंचयमं कोळुत्तिरलक्कु सूक्ष्मनिगोद जस 3 3 ख ख १५- १६ ख १३२८४१।२१८-८२० gay- aa इदरोळेकरूपं कळेयुत्तिरलु तृतीयशून्यवर्गणेगळोळु उत्कृष्टवर्गणेयकुं :उ स ख ख १५ १६ ख १३ - ८ = ०८ २ ० इल्लिबोधनित दं बादरनिगोदोत्कृष्टतृतीयशून्यवर्ग वर्गणयोळु पुळविगळु श्रेण्यसंख्येयभागमात्रंगळु जघन्यसूक्ष्मनिगोदवर्गणेयोलु पुळविगळु आवल्यसंख्यातकभागमानंगळदुकारणमागियुत्कृष्टबादरनिगोदवर्गयि केळगे सूक्ष्मनिगोदजधन्यवर्गणेया- ५ गलेवेळकुमे दने दोडिदु दोषमल्तेके दोडे बादरनिगोदवर्गणेगळ निगोदशरोरंगळं नोडलु सूक्ष्मनिगोदवर्गणाशरीरंगळगे सूच्यंगुलासंख्यातकभागमात्रगुणकारोपलंभमप्पुरिदं । सूक्ष्मनिगोद जले स्थले आकाशे वा एकबन्धनबद्धावल्यसंख्यातकभागपुलविषु स्थितानां क्षपितकर्माशानन्तानन्तसूक्ष्मनिगोदानां सविस्रसोपचयत्रिशरीरसंचयः सूक्ष्मनिगोदजघन्यवर्गणा भवति । ज स aa ख ख १२-१६ ख १३- ८ २८० इयमेकरूपोना तृतीयशून्यवर्गणोत्कृष्टं भवति- १. aa तिय उ ० स ० ३ ख ख १२-१६ ख १३-८ = २८ । ननु बादरनिगोदवर्गणोत्कृष्ट पुलवयः सुण्णवग्गणा ९ : ०५ श्रेण्यसंख्येयभागः सूक्ष्मनिगोदवर्गणाजघन्ये तु आवल्यसंख्यातकभागः तेन तदधोऽनेन भाव्यम् इति, तन्न-बादरनिगोदवर्गणानिगोदशरीरेभ्यः सूक्ष्मनिगोदवर्गणाशरीराणां सूच्यङ्गुलासंख्यातकभागगुणकारोपलम्भात् । सूक्ष्मवह उत्कृष्ट बादरनिगोदवर्गणा है। उसमें एक परमाणु अधिक होनेपर तीसरी शून्यवर्गणाका जघन्य होता है। वह कैसे है सो कहते हैं-जल-थल अथवा आकाशमें एकबन्धनबद्ध १५ आवलीके असंख्यातवें भाग पुलवियोंमें क्षपितकांश अनन्तानन्त सूक्ष्म निगोद जीव रहते हैं, उनके विस्रसोपचय सहित औदारिक तैजस कार्मणशरीरका संचय सूक्ष्म निगोद जघन्य वर्गणा है। उसमें एक परमाणु हीन करनेपर तीसरी शून्यवर्गणाका उत्कृष्ट होता है। शंका-बादरनिगोदवर्गणाके उत्कृष्ट में पुलवियाँ श्रेणिके असंख्यातवें भाग कही हैं और सूक्ष्म निगोदवर्गणाके जघन्यमें आवलीके असंख्यातवें भाग कही हैं। अतः बादरनिगोद २० वर्गणासे पहले सूक्ष्म निगोदवर्गणा होनी चाहिए। क्योंकि पुलवियोंका प्रमाण बहुत होनेसे परमाणुओंका प्रमाण बहुत होना सम्भव है ? १. म चोदक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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