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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ८३३ समयमन्नेवरमिल्लियावल्यसंख्यातेकभागमात्रपुळविगळोळु पृथक् पृथगसंख्यातलोकमात्रशरीरंगळिंदं समाकीणंगळोळु पल्यासंख्यातैकभागमृतजीवंगळ प्रमाणदिदं होनमागि स्थिताऽऽगुणित कमांशानंतानंतजीवंगळ अनंतानंतविलसोपचयसहितत्रिसरीरसंचयं सर्वजघन्यबादरनिगोदवर्गणेयक्कु वो बादरनिगोदजघन्यवर्गणेये एकपरमाणुविदं हीनमादुदादोडा उत्कृष्टध्रुवशून्यवर्गणेयक्कं उ = स ख ख १२-१६ ख १३ = ८५ बादरनिगोदोत्कृष्टवर्गणेयावेडयोळु संभवि- ५ ача ध्रुवशून्यवग्गंणा : ९८०५ जस ३२० ख ख १२ १६ ख ८ सुगुमेकदोडे कर्मभूमिप्रतिबद्धस्वयंभूरमणद्वीपद मूलकाविशरीरंगळोळेकबंधनबद्धंगळप्प जगच्छे. पमासंख्यातकभागगुणा म्रियन्ते । ततः संख्यातपल्यगुणितक्रमेण म्रियन्ते, यावत्क्षीणकषायचरमसमयस्तावत् । तत्रावल्यसंख्यातैकभागपुलविषु पृथक्पृथगसंख्यातलोकमात्रशरीराकीर्णेषु पल्यासंख्यातकभागमृतजीवप्रमाणेनोना गुणितकर्मीशानन्तानन्तजीवानामनन्तानन्तविस्रसोपचयसहितत्रिशरीरसंचयो जघन्यवादरनिगोदवर्गणा भवति इयमेवैकाणुना हीना सती उत्कृष्टध्रुवशून्यवर्गणा भवति १० उ . स ख ख १२-१६ ख १३- =०८ प aa धुवसुण्णा . ज ० स ३२ aa ख ख १२-१६ स्वयंभूरमणद्वीपस्य मूलकादिशरीरेष्वेकबन्धनबद्ध जगच्छ्रे ण्यसंख्येयभागमात्रपुलविषु स्थितानां गुणित इस प्रकार क्षीणकषाय गुणस्थानके प्रथम समयसे लेकर आवली पृथक्त्वकाल तक आवलीके असंख्यातवें भाग अधिक जीव प्रतिसमय क्रमसे तबतक मरते हैं,जबतक क्षीणकषाय गुणस्थानका काल आवलीके असंख्यातवें भाग मात्र शेष रहता है। उसके अनन्तर समयमें पल्यके असंख्यातवें भागसे गुणित जीव मरते हैं। उसके पश्चात् पूर्व-पूर्व समयमें मरे १५ जीवोंको संख्यात पल्यसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो, उतने-उतने जीव क्षीणकषाय गुणस्थानके अन्तिम समयपर्यन्त प्रति समय मरते हैं। सो अन्तके समयमें अलग-अलग असंख्यातलोक मात्र शरीरोंसे युक्त आवलीके असंख्यातवें भाग पुलदियों में जो गुणितकांश जीव सरे,उनसे हीन शेष जो अनन्तानन्त जीव गुणित काश रहे,उनके विस्रसोपचय सहित जो औदारिक, तैजस और कार्मण शरीरके परमाणुओंका स्कन्ध,वह जघन्य बादरनिगोदवर्गणा है। इसमें २० १०५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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