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________________ ------- कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका पर्याप्ततेजस्कायिकजीवंगळेकबंधनबद्धंगळऽसंख्यातावलिवर्गप्रमितंगळवरोळु गुणितकम्मंशगळप्प जीवंगळु यदि सुष्ठु बहुकंगळप्पुवादोडमावल्यसंख्यातेकभागप्रमितंगळेयप्पुवुळिदवेल्लम गुणितकाशंगळेयप्पुवा गुणितकर्मीशंगळेकबंधनबद्धंगल बादरपर्याप्ततेजस्कायिकंगळ सविस्रसोपचयत्रिशरीरसंचयं औदारिकतैजसकार्मणशरीरसंचयं प्रत्येकवेहोत्कृष्टवर्गणयक्क :उस ३२ ख ख १३ १६ ख ८ ई प्रत्येकशरीरोत्कृष्टवर्गणेये रूपाधिकमादोर्ड ५ प्रत्येक शरीर जस ३ . ख १२ - १६ ख ३ ध्रुवशून्यवर्गणेगळोळु जधन्यवर्गणेयकुं। बादरनिगोदजघन्यवर्गणेयावेडयोळ्संभविसुगुमें दोडे ____ आवनोव्वं क्षपितकम्मशिलक्षदिदं बंदु पूर्वकोटिवर्षायुर्मनुष्यनागि पुट्टि गर्भाद्यष्टवर्षमंतर्मुहर्ताधिकंगळमेले सम्यक्त्वमुमं संयममुमं युगपत्कैकोंडु कर्मक्कुत्कृष्टगुणश्रेणिनिजरेयं देशोनपूर्वकोटिवषंबरं माडियंतर्मुहूर्तावशेषदोळु सिद्धितव्यनेंदितु क्षपकश्रेणियनेरिदोनुत्कृष्टकर्मनिजरेयं क्रियमाणं क्षीणकषायनादोनातंगे शरीरदोळु जघन्यदिदमुत्कृष्टदिदमुमेकबंधनबद्धंगळप्प १० तेषु गुणितकर्मांशाः सुष्ठु बहुत्वेऽपि आवल्यसंख्यातकभागमात्राः ८ तेषां सविस्रसोपचय त्रिशरीरसंचयस्तदुत्कृष्ट ।। - a भवति- उ स ३२ ख ख १२- १६ ख ८ इदमेव रूपाधिकं ध्रुवशून्यवर्गणाजघन्यं पत्तेयशरीर ००० - ज स ख ख १२- १६ ख ३ भवति । कश्चित् क्षपितकर्माशलक्षणो जीवः पूर्वकोटिवर्षायुः मनुष्यो भूत्वा अन्तर्मुहूर्ताधिकगर्भाधष्टवर्षोपरि सम्यक्त्वसंयमौ युगपत् स्वीकृत्य कर्मणामुत्कृष्टगुणश्रेणिनिर्जरां देशोनपूर्वकोटिवर्षपर्यन्तं कुर्वन् अन्तर्मुहूर्ते सिद्धितव्यमास्ते तदा क्षपकश्रेण्यारूढः उत्कृष्टकर्मनिर्जरां कुर्वन् क्षीणकषायो जातः, तच्छरीरे जघन्येन उत्कृष्टेन १५ आवलीके वर्ग प्रमाण बादर पर्याप्त तैजस्कायिक जीवोंके शरीरोंका एक स्कन्ध रूप हैं। उनमें गुणित कर्माश जीव बहुत अधिक होनेपर भी आवलीके असंख्यातवें भागमात्र हैं। उनका औदारिक-तैजस- कार्मणशरीरोंका विस्रसोपचयसहित उत्कृष्ट संचय उत्कृष्ट प्रत्येक शरीरवर्गणा है। उसमें एक परमाणु अधिक होनेपर जघन्य ध्रुवशून्यवर्गणा होती है। इस जघन्यको सब मिथ्यादृष्टि जीवोंके प्रमाणको असंख्यात लोकसे भाग देनेपर जो प्रमाण आवे, २० उससे गुणा करनेपर उत्कृष्ट भेद होता है। उससे एक परमाणु अधिक बादरनिगोद वगणा है। बादर निगोदिया जीवोंके विस्रसोपचय सहित कर्म-नोकर्म परमाणुओंके एक स्कन्धको बादरनिगोदवर्गणा कहते हैं। वह कहाँ पायी जाती है,यह कहते हैं-क्षपितकांश लक्षणवाला कोई जीव एक पूर्वकोटि वर्षकी आयुवाला मनुष्य हुआ। अन्तर्मुहूर्त अधिक आठ वर्षके ऊपर सम्यक्त्व और संयमको एक साथ धारण करके कुछ कम पूर्व कोटिवर्ष पर्यन्त कर्मोंकी २५ उत्कृष्ट गुणश्रेणि निर्जरा करते हुए जब सिद्ध पद प्राप्त करने में अन्तर्मुहूर्तकाल शेष रहा,तब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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