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________________ गो० जीवकाण्डे तदनंतरोपरितनप्रत्येकशरीरवर्गणे पेळल्पडुगुमदे तें दोडे ओर्व्व जीवन वोदु देहदोपचितकर्म्मनोकर्म्मस्कंधं प्रत्येकशरीरवर्गणेये बुद+कुमदर जघन्यवर्गणे यावजीवनोळक्कुमे दोडे आवनोव्वं क्षपितकम्मशलक्षर्णादिदं बंदु पूर्व कोटिवर्षायुर्मनुष्यजी बंगलोपुट्टि मनुष्यनागियंतमुहूर्त्ताधिकाऽष्टवर्षगळिदं मेले सम्यक्त्वमुमं संयममुमं युगपत्स्वीकरिसि सयोगकेवलियादोंडदेशोन५ पूर्व्वकोटियं औदारिक तैजसशरीरंगळ अस्थितिगणनेयोळ निर्ज्जरेयं माडि कार्म्मणशरीरक्कं गुणश्रेणिनिज्जैरेयं माडि चरमसमयभव्यसिद्धमप्प चरमसमयदयोगिकेवलिगे त्रिशरीरसंचयं नामगोत्रवेदनीयंगळ मेले आयुरौदारिकतैजसशरी रंगळिनधिकमाद त्रिशरीरसंचयं प्रत्येकशरीरजघन्यवयक्कं । तदुत्कृष्टवर्गणासंभव मावडेयोळे देडे नंदीश्वरद्वीपद अकृत्रिम महाचैत्यालयंगळ धूपघटंगळोळं स्वयंभूरमणद्वीपद कर्मभूमिप्रतिबद्धक्षेत्रदो नेगेवकाळिकच्चुगळोळं बादर ८३० उ २५६ ख १ ख १ ख १ ख ख ख o सुण्णव : ख १ ख १ ख १ ख १ ख १ ख १६ ख ख ख ख ज २५६ ख १ ख १ ख १ ख १ ख १ ख १ ख १ ख १ ख १ ख १६ ख ख ख ख ख ख १६ ख Jain Education International १६ ख १६ ख १० षोडशवर्गणा एवं सिद्धाः । तदनन्तरोपरितनप्रत्येकशरीरवर्गणा तु एकजीवस्य एकदेहोपचितकर्म नोकर्मस्कन्धः । तत्र कश्चिज्जीवः क्षपितकर्माशलक्षणः पूर्वकोटिवर्षायुः मनुष्यो भूत्वा अन्तर्मुहूर्ताधिकाष्टवर्षोपरि सम्यक्त्वसंयमी युगपत् स्वीकृत्य सयोगकेवली जातः देशोनपूर्वकोटिपर्यन्तमौदारिकतै ज सशरीरयोरवस्थितिगणनया निर्जरां कुर्वन् कार्मणशरीरस्य च गुणश्रेणिनिर्जरां कुर्वन् चरमसमयायोगिकेवली स्यात् । तस्यायुः औदारिकतैजसशरीराधिक नामगोत्रवेदनीयरूप त्रिशरीरसंचयः तज्जघन्यं भवति । नन्दीश्वरद्वीपस्य अकृत्रिम महाचैत्यालयानां १५ धूपघटेषु स्वयंभूरमणद्वीपसंभूतदवाग्निषु च बादरपर्याप्ततैजस्कायिका : एकबन्धनबद्धा असंख्यातावलिवर्गमात्राः उत्कृष्ट सान्तरनिरन्तरवर्गणा में एक परमाणु अधिक होनेपर उससे ऊपर की शून्यवर्गणाका जघन्य होता है। उसे अनन्तगुणित जीवराशिके प्रमाणसे गुणा करनेपर उसका उत्कृष्ट होता है । इस प्रकार सोलह वर्गणा सिद्ध हुई । उससे ऊपर प्रत्येक शरीर वर्गणा है । एक जीव के एक शरीरके विस्रसोपचय सहित कर्म-नोकर्मके स्कन्धको प्रत्येक शरीरवर्गणा २० कहते हैं । शून्यवर्गणाके उत्कृष्टसे एक परमाणु अधिक जघन्य प्रत्येक शरीरवर्गणा होती है । जिसके कर्मके अंश क्षयरूप हुए हैं, ऐसा कोई क्षपितकर्माश जीव एक पूर्वकोटि वर्ष आयु लेकर मनुष्य जन्म धारण करके अन्तर्मुहूर्त अधिक आठ वर्षके ऊपर सम्यक्त्व और संयमको एक साथ स्वीकार करके सयोगकेवली हुआ । वह कुछ कम एक पूर्व कोटि पर्यन्त औदारिक शरीर और तैजसशरीरको अवस्थिति गणना के अनुसार निर्जरा करता हुआ और कार्मण२५ शरीरकी गुणश्रेणिनिर्जरा करता हुआ अयोगकेवलीके चरमसमयको प्राप्त हुआ । उसके आयुकर्म औदारिक और तैजस शरीर के साथ नाम गोत्र वेदनीय कर्मके परमाणुओं का समूह रूप जो तीन शरीरोंका स्कन्ध होता है, वह जघन्य प्रत्येक शरीरवर्गणा है। इस जघन्यको पल्यके असंख्यातवें भागसे गुणा करनेपर उत्कृष्ट प्रत्येक शरीर वर्गणा होती है । नन्दीश्वर द्वीपके अकृत्रिम महाचैत्यालयोंके धूपघटोंमें और स्वयम्भूरमणद्वीपमें उत्पन्न दावाग्निमें असंख्यात For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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