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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका लोगस्स असंखेज्जदिभागप्पहुडिं तु सव्वलोगोत्ति । अप्पपदेसविसप्पणसंहारे वावदो जीवो ॥५८४॥ लोकस्यासंख्येयभागप्रभृतिस्तु सर्वलोकपथ्यंतमात्मप्रदेशविसर्पणसंहारे व्यापतो जीवः ॥ सूक्ष्मनिगोदलब्ध्यपर्याप्तजघन्यावगाहं मोदल्गोंडु महामत्स्यावगाहपर्यंत प्रदेशोत्तरवृद्धिक्रमंगळप्पुवु ६ ६ ६०००६११११३ वेदनायुतंगे एकप्रदेशोत्तरवृद्धिक्रमदिदं जघन्यविदं मेले ५ qala नडदुत्कृष्टं त्रिगुणितमक्कुं ६ १११११३। मेले मत मारणांतिकसमुद्घातजघन्यं मोदगोंडु ६ १ १ १ १ १ ३ प्रदेशोत्तरक्रमदिदं नडेदुत्कृष्टस्वयंभूरमणसमुद्रबहिस्थितस्थंडिलक्षेत्रदोलिई महामत्स्यसंबंधि सप्तमपृथ्विय महारौरवनामश्रेणीबद्धरं कुरुत्तु मारणांतिकसमुद्घातदंडमुत्कृष्ठमक्कुं १५ । ४१ मी क्षेत्रक्क संदृष्टि :१२ स्वयं अधः सूक्ष्मनिगोदलब्ध्यपर्याप्तजघन्यात्मप्रदेशोत्तरेषु महामत्स्यपर्यन्तेषु तदुपरि प्रदेशोत्तरेषु वेदनासमुद्घातस्य १० त्रिगुणव्यासमहामत्स्यपर्यन्तेषु तदुपरि प्रदेशोत्तरेषु स्वयंभूरमणसमुद्रबाह्यस्थण्डिलक्षेत्रस्थितमहामत्स्येन सप्तमपृथ्वीमहारौरवनामाश्रेणीबद्ध प्रति मुक्तमारणान्तिकसमुद्घातस्य पञ्चशतयोजनतदधविष्कम्भोत्सेधकार्घषड्रज्ज्वायतप्रथमद्वितीयतृतीयचक्रोत्कृष्टपर्यन्तेषु तदुपरिलोकपूरणपर्यन्तेषु च अवगाहनविकल्पेषु आत्मप्रदेशविसर्पणसंहारे सूक्ष्म निगोदिया लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनासे लेकर एक-एक प्रदेश बढ़तेबढ़ते महामत्स्यपर्यन्त उत्कृष्ट अवगाहना होती है। उससे ऊपर एक-एक प्रदेश बढ़ते हुए वेदना १५ समुद्धातवाले का क्षेत्र महामत्स्यकी अवगाहनासे तीन गुणा लम्बा, चौड़ा होता है।पुनः एकएक प्रदेश बढ़ते हुए स्वयंभूरमण समुद्र के बाहर स्थण्डिलक्षेत्रमें रहनेवाला महामत्स्य सप्तम पृथ्वीके महारौरव नामक श्रेणीबद्ध बिलेकी ओर मारणान्तिक समुद्घात करता है,तब पांच सौ योजन चौड़ा, अढ़ाई सौ योजन ऊँचा तथा प्रथम मोड़ेमें एक राजू, दूसरेमें आधा राजू और तीसरेमें छह राजू लम्बा उत्कृष्टक्षेत्र होता है। उसके ऊपर केवलिसमुद्घातमें लोकपूरण २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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