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गो० जीवकाण्डे
द्रव्य, ख ख ख ख ख क्षेत्र, ख ख ख ख काल, ख ख ख भव, ख ख
भाव, ख इल्लिगुपयोगियप्पा-वृत्तमिदु ।
"पंचविधे संसारे कर्मवशाज्जैनशितं मुक्तः ।
मार्गमपश्यन् प्राणी नानादुःखाकुले भ्रमति ॥ इंतु भगवदर्हत्परमेश्वरचारुचरणारविंदद्वंद्ववंदनानंदितपुण्यपुंजायमानश्रीमद्रायराजगुरुमंडला. ५ चाय॑महावादवादिपितामहसकलविद्वज्जनचक्रवत्ति श्रीमदभयसूरिसिद्धांतचक्रवत्तिश्रीपादपंकजरजो.
रंजितललाटपट्टे श्रीमत्केशवण्णविरचितमप्प गोम्मटसारकर्णाटकवृत्तिजीवतत्त्वप्रदीपिकयोळु जीवकांडविंशतिप्ररूपणेयो षोडशं भव्यमार्गणाधिकार व्याकृतमायतु ।
द्रव्य ख ख ख ख ख क्षेत्र ख ख ख ख काल ख ख ख भव ख ख
भाव ख अत्रोपयोगि आर्यावृत्तमाह
पञ्चविधे संसारे कर्मवशाज्जैनदर्शितं मुक्तेः ।
मार्गमपश्यन् प्राणी नानादुःखाकुले भ्रमति ॥ इत्याचार्यश्रीनेमिचन्द्रकृतायां गोम्मटसारपञ्चसंग्रहवृत्ती तत्त्वप्रदीपिकाख्यायां जीवकाण्डे
विंशतिप्ररूपणासु भव्यमार्गणाप्ररूपणानाम षोडशोऽधिकारः ॥१६॥ कालमें भावपरिवर्तन सबसे थोड़े हुए अर्थात् अनन्त बार हुए। उनसे भवपरिवर्तन अनन्त गुणी बार हुए।
___ उनसे कालपरिवर्तन अनन्तगुणी बार हुए। क्षेत्रपरिवर्तन उससे भी अनन्तगुणी वार हुए और द्रव्यपरिवर्तन उनसे अनन्त गुणी बार हुए । यहाँ उपयोगी आर्याछन्दका अभिप्राय कहते है-जिनमतके द्वारा दिखाये गये मुक्तिके मागेका श्रद्धान न करता हुआ प्राणी अनेक प्रकारके दुःखोंसे भरे पाँच प्रकारके संसारमें भ्रमण करता है। इस प्रकार आचार्य श्री नेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार अपर नाम पंचसंग्रहको भगवान् अर्हन्त देव परमेश्वरके सुन्दर चरणकमलोंको वन्दनासे प्राप्त पुण्यके पुंजस्वरूप राजगुरु मण्डलाचार्य महावादी .. श्री अभयनन्दी सिद्धान्तचक्रवर्तीके चरणकमलोकी धूलिसे शोमित ललाटवाले श्री केशववर्णीके द्वारा रचित गोम्मटसार कर्णाटवृत्ति जीवतरव प्रदीपिकाकी अनुसारिणी संस्कृतटीका तथा उसकी अनुसारिणी पं. टोडरमल रचित सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामक माषाटीकाकी अनुसारिणी हिन्दी भाषा टीकामें जीवकाण्टके अन्तर्गत . भव्य प्ररूपणाओंमें-से भब्यमार्गणा प्ररूपणा नामक सोलहवाँ
अधिकार सम्पूर्ण हुआ ॥१६॥
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