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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ७९९ समस्तप्रकृतिस्थितिअनुभागप्रदेशबंधयोग्यंगळप्प स्थितिबंधाध्यवसायानुभागबंधाध्यवसाययोगस्थानंगळेनितोळवनितुं पृश्वियोल भावसंसारदोळतोळल्व जीवनिदमनुभविसल्पदृवु । इल्लि स्थितिबंधाध्यवसायजघन्य मोदल्गोंडुत्कृष्टपथ्यं तमंत अनुभागबंधाध्यवसायजघन्यस्थानमोदल्गोंडु. स्कृष्टस्थानपर्यंतं योगस्थानंगळ जघन्यं मोदलगोंडुत्कृष्टस्थानपय्यंत सर्वजघन्यस्थितिसंबंधि गळमोदलागि सर्वोत्कृष्टस्थितिपय्यंतं तत्तत्संबंधिगळं स्थापिसि अक्षसंचारक्रमदिदं भावसंसारदोळनुभविसल्पट्ट स्थितिबंधाध्यवसायादिगळ्मं साधिसुवुर्दे बुदत्थं । इल्लि एकपुद्गलपरिवर्तनकालमनंतमक्कुमदं नोडलु क्षेत्रपरिवर्तनकालमनंतगुणं अदं नोडलु कालपरिवर्तनवारंगळनंतगुणमदं नोडलु भवपरिवर्तनकालमनंतगुणमदं नोडलं भावपरिवर्तनकालमनंत गुणमक्कुमिल्लि संदृष्टिरचयिदु :-भाव । ख ख ख ख ख भव । ख ख ख ख काल।ख ख ख क्षेत्र । ख ख द्रव्य । ख ओर्व जीवंगे अतीतकालदोळु भावपरिवर्तनवारंगळु अनंतंगळ । ख। अवं नोडलु भवपरिवर्तनवारंगठनंतगुगंगळवं नोडलु कालपरिवर्तनवारंगळु अनंतगुणंगळवं नोडलु क्षेत्रपरिवर्तन- १५ वारंगळु अनंतगुणंगळवं नोडलु द्रव्यपरिवर्तनवारंगळनंतगुणंगळप्पुवु । संदृष्टि : सर्वप्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशबन्धयोग्यानि । स्थानान्यनुभूतानि भ्रमता भुवि भावसंसारे ॥ अत्र स्थितिबन्धाध्यवसायजघन्यात्तदुत्कृष्टपर्यन्तानि पुनः अनुभागबन्धाध्यवसायजघन्यात्तदुत्कृष्टपर्यन्तानि योगस्थानजघन्यात्तदुत्कृष्टपर्यन्तानि च सर्वजघन्यस्थितिसंबन्धीनि आदि कृत्वा सर्वोत्कृष्टस्थितिपर्यन्तं तत्तत्सबन्धी नि २० संस्थाप्य अक्षसंचारक्रमेण भावसंसारे अनुभूतस्थित्यादिस्थितिबन्धाध्यवसायादीन् साधयेदित्यर्थः । अत्रकपदगलपरावर्तनकालः अनन्तः। ततः क्षेत्रपरिवर्तनकालः अनन्तगुणः । अतः कालपरिवर्तनकालः अनन्तगुणः, ततो भवपरिवर्तनकालः अनन्तगुणः । ततो भावपरिवर्तनकालः अनन्तगुणः । संदृष्टिः भाव ख ख ख ख ख भव ख ख ख ख काल ख ख ख एकजीवस्य अतीतकाले भावपरिवर्तनवारा अनन्ताः । तेभ्यः भवपरिवर्तनवारा क्षेत्र ख ख अनन्तगुणाः । तेभ्यः क्षेत्रपरिवर्तनवारा अनन्तगणाः। तेभ्यः द्रव्यपरिवर्तनवारा अनन्तगुणाः । संदृष्टिः'भावसंसारमें भ्रमण करते हुए जीवने सब प्रकृतियोंके स्थितिबन्ध, अनुभागबन्ध और प्रदेशबन्धके योग्य स्थानों का अनुभव किया।' ३० सबसे जघन्य स्थितिसे लेकर उत्कृष्ट स्थिति पर्यन्त तत्सम्बन्धी स्थिति बन्धाध्यवसायस्थान, अनुभागबन्धाध्यवसायस्थान और योगस्थान जघन्यसे लेकर उत्कृष्ट पर्यन्त स्थापित करके जैसे पहले प्रमादोंमें अक्षसंचार कहा है, उसी क्रमसे भावसंसारमें अनुभूत स्थिति आदि सम्बन्धी स्थिति बन्धाध्यवसाय आदिको साधना चाहिए। यहाँ एक पुद्गलपरावर्तन काल सबसे थोड़ा अर्थात् अनन्त है। उससे क्षेत्र परिवर्तन ३५ काल अनन्त गुणा है । उससे कालपरिवर्तनका काल अनन्त गुणा है। उससे भवपरिवर्तनका काल अनन्त गुणा है। उससे भावपरिवर्तनकाल अनन्त गुणा है। इसीसे एक जीवके अतीत २५ द्रव्य ख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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