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गो. जोवकाण्डे नाल्कु बारियुमंते इंतेन्नवर धनांगुलासंख्येयभागप्रमिताकाशप्रदेशंगळु अनितु वारंगळं नल्लिये जनिसि मत्तमेकैकप्रदेशाधिकभावदिदं सर्वलोकमुं तनगे जन्मक्षेत्रभावमग्दिसल्पटुदक्कुमेन्नवरमनितुकालमेल्लं कूडि परक्षेत्रपरिवर्तनमक्कुमिल्लिगुपयोगियप्प श्लोकं :
सर्वत्र जगत्क्षेत्रे प्रदेशो न ह्यस्ति जंतुनाऽक्षुण्णः। ___ अवगाहनानि बहुशो बंभ्रमता क्षेत्रसंसारे ॥ क्षेत्रसंसारदोळ बंभ्रमिसुवंतप्प जीवनिदं जगच्छेणिवनप्रमितजगत्क्षेत्रदो स्वशरीरावगाहरूपदिद मुट्टल्पडद प्रदेशमिल्ल । अवगाहना बहुवार कै कोठल्पडदुवुमिल्लि। कालपरिवर्तन पेठल्पडुगुं । उत्सप्पिणिय प्रथमसमयदोळु पुट्टिदावनानुमोर्व जीवं स्वायुः परिसमाप्तियोछु
मृतनागि मत्तमा जोवने द्वितीयोत्सप्पिणिय द्वितोयसमयदोन्पुट्टिस्वायुःक्षयवदिदं मृतनागि आ १० जीवने मत्तमा तृतीयोत्सप्पिणिय तृतीयसमयदो पुट्टि मृतनागि मतमा चतुोत्सप्पिणिय चतुर्य
समयदोळ्पुट्टिदनितु क्रमदिंद मुसप्पिणियसमाप्तमक्कुमंते अवसप्पिणियुं समाप्तमादुदक्कुमितु जन्मनैरंतयं पेळल्पटुदु । मरणक्कमत नैरंतव्यं कैकोठल्पडुगुमिदेल्लमं कूडि कालपरिवर्तनमक्कं। अवगाहनेन द्विवार तथा त्रिवार तथा चतुर्वारं एवं यावत् घनाङ्गलासंख्येयभागः तावद्वारं तत्रैवोत्पन्नः, पुनः
एकैकप्रदेशाधिकभावेन सर्वलोकं स्वस्वजन्मक्षेत्रभाव नयति । तदेतत्सर्व परक्षेत्रपरिवर्तनं भवति । अत्रोप१५ योग्यार्यावृत्तं
सर्वत्र जगत्क्षेत्रे देशो न ह्यस्ति जन्तुनाऽक्षुण्णः ।
अवगाहनानि बहुशो बंभ्रमता क्षेत्रसंसारे ॥ क्षेत्रसंसारे बम्भ्रमता जीवेन जगच्छ्रेणिधनप्रमितजगत्क्षेत्रे स्वशरीरावगाहनरूपेणास्पृष्टप्रदेशो नास्ति । अवगाहनानि बहुवारं यानि न स्वीकृतानि तानि न सन्ति ।
कालपरिवर्तनमुच्यते-कश्चिज्जीवः उत्सर्पिणीप्रथमसमये जातः स्वायुःपरिसमाप्तौ मृतः, पुद्वितीयोसर्पिणीद्वितीयसमये जातः स्वायुःपरिसमाप्त्या मृतः । पुनः तृतीयोसर्पिणीतृतीयसमये जातः तथा मृतः, पुनः चतुर्थोत्सर्पिणीचतुर्थसमये जातः । अनेन क्रमेण उत्सर्पिणी समाप्नोति तथैवावसर्पिणीमपि समाप्नोति एवं है । यह सब परक्षेत्र परिवर्तन है। इस विषयमें उपयोगी आर्याच्छन्दका अभिप्राय इस प्रकार
है-क्षेत्र संसारमें भ्रमण करते हुए इस जीवने बहुत-सी अवगाहनाओंके द्वारा समस्त जगत्२५ के क्षेत्रको अपना जन्मस्थान बनाया, कोई क्षेत्र उत्पन्न होनेसे शेष नहीं रहा। ऐसी कोई अवगाहना नहीं रही जो अनेक बार धारण नहीं की।
कालपरिवर्तन कहते हैं-कोई जीव उत्सर्पिणी कालके प्रथम समयमें उत्पन्न हुआ और अपनी आयु समाप्त होनेपर मर गया। पुनः दूसरी उत्सपिणीके दूसरे समयमें उत्पन्न हुआ और अपनी आयु समाप्त होनेसे मर गया। पुनः तीसरी उत्सर्पिणीके तीसरे समयमें ३० उत्पन्न हुआ और उसी प्रकार आयु समाप्त होनेपर मरा। पुनः चतुर्थ उत्सर्पिणीके चतुर्थ
समयमें उत्पन्न हुआ। इसी क्रमसे उत्सर्पिणीके सब समयोंमें उत्पन्न होकर उत्सर्पिणीको समाप्त करता है तथा इसी क्रमसे अवसर्पिणी कालके सब समयोंमें उत्पन्न होकर अवसर्पिणी समाप्त करता है। इस प्रकार निरन्तर जन्म लेनेका कथन किया। इसी प्रकार क्रमसे उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी कालके सब समयोंमें मरण भी करना चाहिए। यह सब काल
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