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गो० जीवकाण्डे पेळल्पटुरिदमिंद्रियार्थसंबंधानंतरं दर्शनं पुटुगुमदु पेल्दी गाथासूत्रदोळनुक्तमु पूर्वाचार्यवचनानुसारदिदं व्याख्यानिसल्पटुदु ग्राह्यमक्कुं कैकोळल्पडुवुदें बुदत्यं । गृहीते अवग्रहदिदमिदु श्वेतमे दितु ज्ञातायंदोळु विशेषमप्प बलाकारूपक्कागलु पताकारूपक्कागलु यथावस्थितवस्तुविनाऽकांक्षे बलाकया भवितव्यमे दितु भवितव्यताप्रत्ययरूपमप्प बलायोळे संजायमानमोहे येब द्वितीयज्ञानमक्कुमथवा पताकारूपमप्प विषयमनवलंबिसि उत्पद्यमानमनया पताकया भवितव्यम दितु भवितव्यताप्रत्ययरूपं पताकयोळे संजायमानाकांक्षे ईहये ब द्वितीयज्ञानमक्कुमितींद्रियांतरविषयंगळोळं मनोविषयदोळमवग्रहगृहीतदोळु यथावस्थितमप्प विशेषदाकांक्षारूपमोह ये दितु निश्चितव्यमक्कुमेके दोडे मतिज्ञानावरणक्षयोपशमतारतम्यभेददिदमवग्रहेहाजानंगळगे भेदसंभवमुळ्ळुदरिदमी सम्यज्ञानप्रकरणदोळुबलाका वा पताका वा यदितु संशयमक्कु बलायोळु पताकया भवितव्यमे दितु विपर्यायक्कुमुमी मिथ्याज्ञानंगळ्गनवतारमें दरियल्पडुगुं। ज्ञानं छद्मस्थानां' इति श्रीनेमिचन्द्रसैद्धान्तचक्रवर्तिभिरपि प्रोक्तत्वात्, इन्द्रियार्थसंबन्धानन्तरं दर्शनमुत्पद्यते इत्येतस्मिन गाथासूत्रे अनुक्तमपि पूर्वाचार्यवचनानुसारेण व्याख्यानं ग्राह्यमित्यर्थः । गृहीते-अवग्रहेण इदं श्वेतमिति ज्ञाते अर्थविशेषस्य बलाकारूपस्य पताकारूपस्य वा यथावस्थितवस्तुन आकाङ्क्षा बलाकया
भवितव्यमिति भवितव्यताप्रत्ययरूपं बलाकायामेव संजायमानं ईहाख्यं द्वितीयं ज्ञानं भवेत् । अथवा पताकारूपं १५ विषयमालम्ब्य उत्पद्यमाना अनया पताकया भवितव्यमिति भवितव्यताप्रत्ययरूपा पताकायामेव संजायमाना
आकाङ्क्षा ईहेति द्वितीयं ज्ञानं भवेत् । एवं इन्द्रियान्तरविषयेषु मनोविषये च अवग्रहगृहीते यथावस्थितरूपविशेषस्य आकाङ्क्षारूपा ईहेति निश्चेतव्यम् । मतिज्ञानावरणक्षयोपशमस्य तारतम्यभेदेन अवग्रहहाज्ञानयोर्भेदसंभवात् । अस्मिन सम्यग्ज्ञानप्रकरणे बलाका वा पताका इति संशयस्य, बलाकायां पताकया भवितव्यमिति विपर्ययस्य च मिथ्याज्ञानस्यानवतारात् ॥३०८॥
२० अनन्तर अर्थके आकारादिको लिये हुए जो सविकल्प ज्ञान होता है, वह अवग्रह है। श्री
नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्तीने भी कहा है कि छद्मस्थोंके दर्शनपूर्वक ज्ञान होता है । यद्यपि इस गाथासूत्र में यह नहीं कहा है कि इन्द्रिय और अर्थका सम्बन्ध होनेके अनन्तर दर्शन उत्पन्न होता है। फिर भी पूर्वाचार्योंके वचनके अनुसार व्याख्यान करना चाहिए । 'गृहीते'
अर्थात् अवग्रहके द्वारा 'यह श्वेत है', ऐसा जाननेपर बलाकारूप या पताकारूप यथावस्थित · २५ अर्थको जाननेकी आकांक्षा यह बलाका-बगुलोंकी पंक्ति होना चाहिए, इस प्रकार बगुलोंकी
पंक्तिमें ही जो भवितव्यतारूप ज्ञान होता है, वह ईहा है। अथवा पताकारूप विषयका आलम्बन लेकर अर्थात् यदि अवग्रहसे जानी हुई श्वेत वस्तु पताका प्रतीत हो, तो यह पताका होनी चाहिए, इस प्रकार जो पताकामें ही भवितव्यता प्रत्ययरूप आकांक्षा होती है, वह दूसरा ईहा ज्ञान है। इस प्रकार अन्य इन्द्रियोंके विषयमें और मनके विषयमें अवग्रहसे गृहीत वस्तुमें यथावस्थित विशेषकी आकांक्षारूप ज्ञान ईहा है, यह निश्चय करना चाहिए । मतिज्ञानावरणके क्षयोपशमकी हीनाधिकताके भेदसे अवग्रह और ईहा ज्ञानमें भेद होता है। इस सम्यग्ज्ञानके प्रकरणमें 'यह बलाका है या पताका' इस संशयको तथा बलाकामें यह पताका होनी चाहिए, इस विपरीत मिथ्याज्ञानको स्थान नहीं है ॥३०८।।
१. ब तार इति ज्ञातव्यम् ।
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