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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ७८५ आवुवु केलवु जीवंगळगे कषायस्थानोदयंगळं योगप्रवृत्तियुमिल्लमा जीवंगळ कृष्णादिलेश्यारहितरप्पर । संसारविनिर्गताः अतुकारणदिदं पंचविधसंसारवाराशिविनिर्गत अनंतसुखाः अतींद्रियानंतसुखसंतृप्तरं सिद्धिपुरं संप्राप्ताः स्वात्मोपलब्धि लक्षणसिद्धियब परमं पोईल्पट्टरुं अलेश्यास्ते मंतव्याः अंतप्प जीवंगळु लेश्यारहिताऽयोगिकेवलिगळं सिद्धपरमेष्ठिगळुमोळरेंदु बगेयल्पडुवरु। ___इंतु भगवदर्हत्परमेश्वरचारुचरणारविदद्वंद्ववंदनानंदितपुण्यपुंजायमानश्रीमद्रायराजगुरुमंडलाचार्य्यमहावादवादीश्वररायवादिपितामहसकलविद्वज्जनचक्रवत्तिगळं श्रीमदभयसूरिसिद्धांतचक्रवत्ति श्रीपादपंकजरजोरंजितललाटपट्टं श्रीमत्केशवण्णविरचितगोम्मटसारकर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपि. कयोळ जीवकांडविंशतिप्ररूपणंगळोळु पंचदशं लेश्यामार्गणामहाधिकारं निगदितमायतु ॥ ये जीवाः कषायोदयस्थानयोगप्रवृत्त्यभावात् कृष्णादिलेश्यारहिताः तत एव पञ्चविधसंसारवाराशि- १० विनिर्गताः अतीन्द्रियानन्तसुखसंतृप्ताः स्वात्मोपलब्धिलक्षणं सिद्धिपुरं संप्राप्ताः ते अयोगकेवलिनः सिद्धाश्च अलेश्या जीवा इति ज्ञातव्याः ॥५५६।। इत्याचार्यश्रीनेमिचन्द्ररचितायां गोम्मटसारापरनामपञ्चसंग्रहवृत्तौ तत्त्वप्रदीपिकाख्यायां जीवकाण्डे विशतिप्ररूपणासु लेश्याप्ररूपणा नाम पञ्चदशोऽधिकारः ॥१५॥ २० जो जीव कषायोंके उदयस्थानसे युक्त योगोंकी प्रवृत्तिके अभावसे कृष्ण आदि लेझ्याओंसे रहित हैं और इसीसे पाँच प्रकारके संसार समुद्रसे निकल गये हैं, अतीन्द्रिय अनन्तसुखसे तृप्त हैं, तथा अपने आत्माकी उपलब्धि लक्षणवाले मुक्तिनगरको प्राप्त हो चुके हैं, वे अयोगकेवली और सिद्ध जीव लेश्यासे रहित जानना ॥५५६।। इस प्रकार आचार्य श्री नेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार अपर नाम पंचसंग्रहकी भगवान् अर्हन्त देव परमेश्वरके सुन्दर चरणकमलोंकी वन्दनासे प्राप्त पुण्यके पुंजस्वरूप राजगुरु मण्डलाचार्य महावादी श्री अभयनन्दी सिद्धान्त चक्रवर्तीके चरणकमलोंकी धूलिसे शोभित ललाटवाले श्री केशववर्णीके द्वारा रचित गोम्मटसार कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्व प्रदीपिकाकी अनुसारिणी संस्कृतटीका तथा उसकी अनुसारिणी पं. टोडरमलरचित सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामक भाषाटीकाकी अनुसारिणी हिन्दी भाषा टीकामें जीवकाण्डकी बीस प्ररूपणाओंमें से लेश्यामार्गणा प्ररूपणा नामक पन्द्रहवाँ अधिकार सम्पूर्ण हुआ ॥१५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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