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________________ ७८४ गो० जीवकाण्डे __भावदिदमारु लेश्यगळु मौदयिकंगळेयप्पुवुवेक दोर्ड कषायोदयावष्टंभसंभूतयोगप्रवृत्ति लक्षणंगळप्पुरिदं । तु मत्ते अल्पबहुत्वमुं मुन्नं संख्याधिकारदोळपेळ्द द्रव्यप्रमाणदोळे सिद्धमक्कुमेके दोडा द्रव्यप्रमाणदोळु सर्वतः स्तोकंगळु शुक्ललेश्याजी वंगळसंख्यातंगळु । । । अवं नोडल्प मलेश्याजीवंगळुमसंख्यातगुणितंगळप्पु ० ३ ववं नोडल्केतेजोलेश्याजोवंगळ संख्यातगुणितंगळप्पु ५ ० ० १ ववं नोडल्कपोतलेश्याजोवंगळनंतानंतगुणितंगळु १३- वयं नोडलु नीललेश्याजीवंगळप्पु १३ - ववं नोडलु कृष्णलेश्याजीवंगळ्साधिकंगळप्पु १३ - वेदितु सिद्धंगाळतारुं लेश्य गळ्पदि नारुमधिकारंगळिदं वणितंगळप्पुवु। अनंतरं लेश्यारहितजीवंगळं पेळ्दपं : किण्हादिलेस्सरहिया संसारविणिग्गया अणंतसुहा । सिद्धिपुरं संपत्ता अलेस्सिया ते मुणेदव्वा ।।५५६॥ कृष्णादिलेश्यारहिताः संसारविनिर्गताः अनंतसुखाः । सिद्धिपुरं संप्राप्ता अलेश्यास्ते मंतव्याः ॥ भावेन षडपि लेश्याः औदयिका एव भवन्ति । कुतः ? कषायोदयावष्टम्भसंभूतयोगप्रवृत्तेरेव तल्लक्षणत्वात् । तु-पुनः, तासामल्पबहुत्वं पूर्वसंख्याधिकारे द्रव्यप्रमाणे एव सिन्दम् । तथाहि-शुक्ललेश्याजीवाः सर्वतः १५ स्तोका अप्यसंख्याताः । तेभ्यः पद्मलेश्या असंख्यातगुणाः । तेभ्यस्तेजोलेश्याः संख्यातगुणाः | तेभ्यः कपोतलेश्या अनन्तानन्तगुणाः १३-तेभ्य नीललेश्याः साधिकाः १३ । तेभ्यः कृष्णलेश्याः साधिकाः १३- । इति षडपि लेश्याः षोडशाधिकारणिता भवन्ति ॥५५५॥ अथालेश्यजीवानाह३ अन्तराधिकार समाप्त हुआ । अब भाव और अल्पबहुत्व अधिकार कहते हैं भावसे छहों लेश्या औदयिक ही होती हैं, क्योंकि कषायके उदयसे संयुक्त योगकी २० प्रवृत्ति ही लेश्याका लक्षण है । उनका अल्पबहुत्व तो पहले संख्या अधिकारमें जो द्रव्यप्रमाण कहा है, उसीसे ही सिद्ध है, जो इस प्रकार है-शुक्ललेश्यावाले जीव सबसे थोड़े होनेपर भी असंख्यात हैं। उनसे पद्मलेश्यावाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे तेजोलेश्यावाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे कपोतलेश्यावाले जीव अनन्तानन्तगुणे हैं। उनसे नील लेश्यावाले जीव कुछ अधिक हैं। उनसे कृष्णलेश्या वाले जीव कुछ अधिक हैं । इस २५ प्रकार सोलह अधिकारोंसे छहों लेश्याका वर्णन किया ॥५५५।। अब लेश्यारहित जीवोंको कहते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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