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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ७७५ पृथ्वीय बादरपर्याप्नपृथ्वीकायंगळोळु पुट्टल्लेडि मुक्तमारणांतिकसमुद्घातदंडमनुळ्ळरोळु किंचिदूननवचतुर्दश भागं स्पर्शसंभवमप्पुरिदं तैजससमुद्घातदोळं आहारकसमुद्घातदोळं तेजोलेश्येगे स्पर्श प्रत्येकं संख्यातघनांगुलप्रमितमक्कुं। केवलिसमुद्घातं तेजोलेश्येयोळसंभवमप्पुदरिनापददोलिल्ल । उपपादपवदोळु तेजोलेश्यगे प्रथमपदं स्पर्श किंचिदूनद्वय चतुर्दशभागमक्कुमेकदोडे तेजोलेश्येय उपपादपरिणतजीवंर्गाळदं सानत्कुमारमाहेंद्रकल्पपर्यंत क्षेत्र स्पृष्टमपुदंतागुत्तं त्रिरज्जूत्सेधमदक्के ५ किंचिदूनत्रिचतुर्दशभागमाग द्वयर्द्धचतुर्दशभागप्ररूपणमाचाऱ्यांतराभिप्रायदिदं मादुदवर्गळ पक्षदोळु सौधम्मैशानकल्पद्वदिद मेग संख्यातयोजनंळिदं पोगि सानत्कुमारमाहेंद्रकल्पप्रारंभमागि द्वयर्द्धरज्जूदयदोळ परिसमाप्तियक्कुमा चरमदोळ तेजोलेश्याजीवंगळु एनिल्लवे एंदोडिल्ल, तत्कल्पद्वयाधस्तनविमानंगळोळे तेजोलेश्यासंभवमें बुपदेशमवर्गळ पक्षदोळप्पुरिदं, अथवा चित्रावनियोलिई तिर्यग्मनुष्यरुगलिगे ईशानपर्यंतमुपपादसंभवदिदं। च शब्ददिदं तेजोलेश्योत्कृष्टमृत- १. रुगळिगे सनत्कुमारमाहेंद्रांतिमचक्रंद्रकप्रणिधियोळुमुपपादमें दाक्कै लंबर पेळ्वरवर्गळभिप्रायदिदं ययासंभवमागि इवु ३- संभवितुगुमैदरिद ३-२ दनियममक्कुं॥ १४२ तोऽत्र न संभवति । उपपादपदे किचिदूनद्वयर्धचतुर्दशभागः । ननु तेजोलेश्यतत्पदपरिणतैः सानत्कुमारमाहेन्द्रान्तं क्षेत्रे स्पृष्टे विरज्जूत्सेधात् किंचिदूनत्रिचतुर्दशभागः कथं नोच्यते सौधर्मद्वयादुपरि संख्यातयोजनानि गत्वा सानत्कुमारद्वयप्रारम्भो द्वयर्धरज्जूदये परिसमाप्तिः तच्चरमे च तेजोलेश्या नास्तीति केषांचिदुपदेशाश्रयणात् १५ चित्रास्थिततिर्यग्मनुष्याणां ईशानपर्यन्तमुपपादसंभवाद्वा। चशब्दात्तेजोलेश्योत्कृष्टांशभूतानां सनत्कुमारमाहेन्द्रान्तिमचक्रेन्द्रकप्रणिधावुपपादं वदतां अभिप्रायेण यथासंभवं तस्यापि संभवादनियमः ।।५४७॥ बटे चौदह स्पर्श होता है। तैजस समुद्घात और आहारक समुद्घातमें संख्यात धनांगुल प्रमाण स्पर्श है । तेजोलेश्यामें केवलि समुद्घात नहीं होता। उपपाद स्थानमें चौदह राजूमेंसे डेढ़ राजूसे कुछ कम स्पर्श होता है। शंका-तेजोलेश्यावाले जीव उपपाद करते हुए सानत्कुमार-माहेन्द्र के अन्त तक क्षेत्रका स्पर्श करते हैं और सानत्कुमार माहेन्द्र के अन्त तक तीन राजूकी ऊँचाई है, अतः चौदह राजूमें-से कुछ कम तीन राजू स्पर्श क्यों नहीं कहा? समाधान-सौधर्म-ऐशान स्वगसे ऊपर संख्यात योजन जाकर सानत्कुमार-माहेन्द्र स्वर्गोंके प्रारम्भमें डेढ़ राजूकी ऊँचाई समाप्त होती है। उसके आगे डेढ़ राजू जानेपर । सानत्कुमार-माहेन्द्रका अन्तिम पटल है। उसमें तेजोलेश्या नहीं है,ऐसा किन्हीं आचार्योंका ' उपदेश है। उसीके अनुसार उक्त कथन किया है। अथवा चित्रा पृथ्वीपर स्थित तियंच और मनुष्योंका उपपाद ऐशान स्वर्ग पर्यन्त होता है। इससे किंचित् न्यून डेढ़ राजू मात्र स्पर्श कहा है। गाथामें आये 'च' शब्दसे तेजोलेश्याके उत्कृष्ट अंशसे मरे हुओंका उपपाद सानत्कुमार-माहेन्द्र के अन्तिम चक्रनामा इन्द्रकके श्रेणीबद्ध विमानोंमें होता है,ऐसा कहनेवाले आचार्योंके अभिप्रायसे यथासम्भव तीन भाग भी स्पर्श सम्भव होनेसे कोई नियम नहीं है ।।५४७॥ १. म योलार्केलबर् । २. म रिदुवदनि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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