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________________ ७७४ ३४३ गो. जीवकाण्डे त्रैराशिकसिद्धमक्कुमदेते दोडे सानत्कुमारमाहेंद्रकल्पजदेवर्कळ्गे तेजोलेश्योत्कृष्टांशं संभविसुगुमप्पुरिदमवर्गळगे विहारं मेगच्युतकल्पपर्यंतमक्कुं केळगे तृतीयपृथ्वीपर्यंतमक्कुमदु कारणमागि अष्टरज्जूत्सेधमुं एकरज्जुप्रतरमुमक्कु =८= मंतागुत्तं विरलं तृतीयपृथ्विय पटल रहिताधस्तनसहस्रयोजनदिदं किंचिदूनाष्टरज्जूत्सेधमक्कु प्र३१४ फ श १ । इ = ८ - लब्धं ५ किंचिदूनाष्टचतुर्दशभागमक्कुम दरिवुदु । भवनत्रयसंभूतमितेयक्कुमेके दोडे : ___भवणतियाण विहारो णिरयति सोहम्मजुगळ पेरंतं । उवरिमदेवपयोगेणच्चुदकप्पोत्ति णिद्दिट्ठो।" एंदितु पेळल्पटुदप्पुरिदं भवनत्रयसंजातग्र्गल्लं केळगे तृतीयपृथ्वीपयंत मेगे सौधर्मयुगलपय्यंत स्वैरविहारमक्कुं। मेगणदेवप्रयोगदिदमच्युतकल्पपर्यंत विहारमक्कुं। मारणसमुद्घात१० पददोळु तेजोलेश्यगे किंचिदूननवचतुर्दशभागक्षेत्र स्पर्शमक्कुमेके दोडे तेजोलेश्याजीवंगळु भवन त्रयसंभूतर्मेण सौधर्मेशानसानत्कुमारमाहेंद्रकल्पजर्मेण तृतीयपृथ्वीयोळिईवर्गळ्गे ईषत्प्राग्भाराष्टमउपर्यधोऽच्युतान्ततृतीयपृथ्व्यन्तं विहारसंभवात् । पृथ्वीपटलरहिताधस्तनयोजनानामपनयनात् प्र=१४ ३४३ फ श १ इ= ८-इति त्रैराशिकलब्धस्य च तत्प्रमाणत्वात् । अथवा भवनत्रयस्य उपर्यधः स्वरं सौधर्मद्वयतृतीय पृथ्व्यन्तं देवप्रयोगेन अच्युतान्तं च विहारसद्भावात् तावान् संभवति । मारणान्तिकसमुद्घाते तेजोलेश्यायाः किंचिदूननवचतुर्दशभागः भवनत्रयसौधर्मचतुष्कजानां तृतीयपृथिव्यां स्थित्वा अष्टमपृथ्वीसंबन्धिवादरपर्याप्तपृथ्वीकायेषु उत्पत्तु मुक्ततत्समुद्घातदण्डानां संभवति । ९-तैजसाहारकसमुद्घाते संख्यातबनाङ्गुलानि ६ १ केवलिसमुद्धा तेजोलेश्याका विहारवत्स्वस्थान, वेदना समदघात, कषाय समदघात और वैक्रियिक समदघातमें स्पर्श कुछ कम चौदह भागमें आठ भाग है। सो कैसे हैं, यह बतलाते हैंसानत्कुमार-माहेन्द्र स्वर्गके उत्कृष्ट तेजोलेश्यावाले देव ऊपर सोलहवें अच्युत स्वर्ग पर्यन्त गमन करते हैं और नीचे तीसरी नरक पृथ्वीपर्यन्त गमन करते हैं। अच्युतस्वर्गसे तीसरा नरक आठ राजू हैं। इससे चौदह भागमें-से आठ भाग कहे हैं। तथा तीसरी पृथ्वीकी मोटाईमें जहाँ नरकपटल नहीं है,उस हजार योजनको कम करनेसे कुछ कम कहा है। जो चौदह घनरूप राजूकी एक शलाका हो,तो आठ घनरूप राजूकी कितनी शलाका होगी ऐसा त्रैराशिक करनेपर आठ बटे चौदह आता है। अथवा भवनत्रिकदेव स्वयं तो ऊपर सौधर्म ऐशान स्वर्ग पर्यन्त और नीचे तीसरे नरक पर्यन्त गमन करते हैं। दूसरे देव द्वारा ले जानेपर सोलहवें स्वर्गपर्यन्त विहार करते हैं । इससे भी पूर्वोक्त प्रमाण स्पर्श है। तेजोलेश्याका स्पर्श मारणान्तिक समुद्घातमें चौदह भागमें से कुछ कम नौ भाग प्रमाण होता है। वह इस प्रकार है-भवनत्रिकदेव अथवा सौधर्मादि चार स्वर्गोंके वासी देव तीसरे नरक गये। वहाँ ही मारणान्तिक समुद्घात किया, और ऊपर आठवीं पृथ्वीमें बादर पृथ्वीकायमें उत्पन्न होनेके लिए वहाँ तक प्रदेशोंका विस्तार किया। उस आठवीं पृथ्वीसे तीसरा नरक नौ राजू है तथा पूर्ववत् तीसरी पृथ्वीकी पटलरहित मोटाई कम करनेसे कुछ कम नौ २५ १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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