________________
७५३
a५
कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका भागिसि भागिसि बहुभागबहुभागंगळं स्वस्थानस्वस्थानदोळं ५४ विहारवत् स्वस्थानदोळं ५४ वेदनासमुद्घातदोळं ५४ कषायसमुद्घातदोळ ५४ कोट्टु शेषैकभागमं
५५५
- ५५५५ वैक्रियिकसमुद्घातदोळीवुदु प १ बळिक्कमी पंचराशिगळोळ प्रथमराशियं तृतीयराशियं
०५५५५ चतुर्थराशियुमं यथासंख्यमागि त्रिहस्तोत्सेध तद्दशमभागमुखव्यासदिदं "व्यासत्रिगुणः परिधियांसचतुर्थाहतस्तु क्षेत्रफलम् । क्षेत्रफलं वेदगुणं खातफलं भवति सर्वत्र ।" एंदी ५ सूत्राभिप्रायदिदं ह।३।३। ह ३ । ह ३ जनितदेवावगाहनप्रमाणवृंदांगुलसंख्यातेकभागदिदं
१०। १०।४ । मत्तं नवार्द्धघनांगुलसंख्यातभागदिदं मत्तं तावन्मादिदं गुणिसिदोडे यथाक्रमदि स्वस्थानपरस्थानवेदनासमुद्घातकषायसमुद्घातक्षेत्रंगळप्पुवु । स्व = स्व = ५४।६ वेद प४।६।९ कषाय- ५४।६।९ मत्तं विहारक्त्स्वस्थानद्वितीयपदजीवराशियसंख्यात
०५५५५१।२ योजनागामसूच्यंगुलसंख्यातभागविष्कंभोत्सेध २ १ २ १ क्षेत्रघनफलं संख्यातघनांगुलंगळिदं गुणिसि
यो
०५५५१२
वैक्रियिकसमुद्घाते दद्यात्-प १ पत्र प्रथमराशौ त्रिहस्तोत्सेधतद्दशमभागमुखव्यासैकदेवावगाहनस्य
५५५५ वासो तिगुणो परिहोत्याद्यानीत ह ३ । ३ ह । ३ ह ३ घनफलेन धनाङ्गुलसंख्यातकभागेन ६ पुनस्तृतीयराशी
१०।१०। ४। नवार्धधनामुलसंख्यातभागेन ६ । ९ पुनश्चतुर्थराशौ तावतैव च ६ । ९ गुणिते सति क्रमेण
।२ स्वस्थानस्वस्थानवेदनासमुद्घातक्षेत्राणि भवन्ति -स्व - ५।४। ६ वेद =प ४ । ६ । ९ कषा
३ ५।
५५५।२ = प ४ ६।९ पुनः द्वितीयराशी संख्यातयोजनायामसूच्यङ् गुलसंख्यातभागविष्कम्भोत्सेध-२१ । २१
।२
यो १
१५
शेष एक भाग प्रमाण जीव वैक्रियिक समुद्घातमें जानना। शुक्ललेश्यावाले देवोंकी मुख्यता होनेसे एक देवकी अवगाहना तीन हाथ ऊँची और उसके दसवें भाग मखकी 'वासो तिगुणो परिही' इत्यादि सूत्रके अनुसार क्षेत्रफल घनांगुलका संख्यातवाँ भाग होता है। इससे स्वस्थानस्वस्थानवाले जीवोंके प्रमाणको गुणा करनेपर स्वस्थानस्वस्थान सम्बन्धो क्षेत्रका परिमाण होता है। एक जीवका मूलशरीरकी अवगाहनासे साढ़े चार गुणा क्षेत्र वेदना तथा कषाय समुद्घातमें होता है। इस साढ़े चार गुणा घनांगुलके संख्यातवें भागसे वेदना और कषाय समुद्घातवाले जीवोंके प्रमाणको गुणा करनेपर वेदना और कषाय समुद्घातमें क्षेत्र होता है। एक देवके विहार करते हुए अपने मूलशरीरसे बाहर निकल उत्तर विक्रियासे उत्पन्न हुए शरीर पर्यन्त आत्माके प्रदेश संख्यात योजन लम्बे और सूच्यंगुलके संख्यातवें भाग चौड़ा व ऊँचा क्षेत्र रोकते हैं। इसका घनरूप क्षेत्रफल संख्यात धनांगुल होता है। इससे विहारवत्स्वस्थान जीवोंके प्रमाणको गुणा करनेपर २५
९५ Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org