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________________ ७५२ गो० जीवकाण्डे राशियं गुणिसिदोडे तन्मारणांतिकसमुद्घातपददोळु क्षेत्रमक्कुं - प ५।१७३।४ मत्तं ११ प प प प ___ aaaa त्रिरज्वायतसंख्यातसूच्यंगुलविष्कंभोत्सेधद सनत्कुमारद्वयमं कुरुत्तु तिर्यग्जीवंगलिंदं मुक्तोपपाददंडक्षेत्रघनफदिदं संख्यातप्रतरांगुलहतत्रिरज्जुमात्रंगळिदं गुणिसिदोडे उपपाददोळ क्षेत्रमक्कु - पप।।३।४ । १ तैजससमुद्घातदोळं आहारकसमुद्घातदोलं-क्षेत्रंगळु तेजो११ प प प पप aaaaa लेश्यययोळं पेळ्दंते संख्यातघनांगुलगुणितसंख्यातजीवप्रमाणराशिगळप्पुवु ते १।६।१ । आहार १।६। १ । मत्तं शुक्ललेश्ययोळु-शुक्ललेश्याजीवराशियं पल्यासंख्यातप्रमितमं संख्यातदिदं संख्यातकभागगुणितरज्जुत्रयेण – ३ । ४ गुणिते तत्क्षेत्रं स्यात्- प प ७ । ३ । ४ पुनः उपपाददण्डराशी ११ व प प प प aaaa त्रिरज्ज्वायतसंख्यातसूच्यङ्गुलविष्कम्भोत्सेधस्य सनत्कुमारद्वयं प्रति तिर्यग्जीवमुक्तोपपाददण्डस्य घनफलेन संख्यातप्रतरामुलहतविरज्जुमात्रेण–३ । ४ १ गुणिते तत्तत्क्षेत्रं भवति-- प प - ३ । ४१ प प प पप aaaaa १० तैजसाहारकसमुद्घातयोः क्षेत्र तेजोलेश्यावत्संख्यातघनागुलगुणितसंख्यातजीवराशिर्भवति १६ १ । १६ १ पुनः शुक्ललेश्यायां तज्जीवराशिं पल्यासंख्यातभागं संख्यातेन भक्त्वा भक्त्वा बहुभागबहुभागं स्वस्थानस्वस्थाने प ४ विहारवत्स्वस्थाने प । ४ वेदनासमुद्घाते प ४ कषायसमुद्घाते च प ४ दत्वा शेषैकभागं ५ ५५ ०५५५५ है। उपपादमें तिथंच जीवोंके द्वारा सानत्कुमार-माहेन्द्र में उत्पन्न होने के लिए किया गया उपपादरूप दण्ड तीन राजू लम्बा और संख्यात सूच्यंगुल प्रमाण चौड़ा व ऊँचा है। इसका १५ घनक्षेत्रफल संख्यात प्रतरांगुलसे गुणित तीन राजू मात्र होता है। इससे उपपादवाले जीवोंके प्रमाणको गुणा करनेपर उपपाद सम्बन्धी क्षेत्रका प्रमाण होता है। तैजस और आहारक समुद्घातमें क्षेत्र जैसे तेजोलेश्याके कथनमें कहा है, वैसे ही यहाँ भी संख्यात घनांगुलसे गुणित संख्यात जीव राशि प्रमाण जानना। आगे शुक्ललेश्यामें क्षेत्र कहते हैं शुक्ललेश्यावाले जीवोंकी राशिमें पल्यके असंख्यातवें भागसे भाग देकर बहुभाग स्वस्थान२० स्वस्थानवाले जीव हैं,शेष एक भागमें पल्यके असंख्यातवें भागसे भाग देकर बहुभाग प्रमाण विहारवत्स्वस्थानमें जीव हैं। इस तरह शेष रहे एक-एक भागमें पल्यके असंख्यातवें भागसे भाग देकर बहुभाग प्रमाण जीव क्रमसे वेदना समुद्धात, कषाय समुद्घातमें जानना। १. म. कृष्ण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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