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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ७२१ गळोळु चरमपटलद संप्रज्वलितेंद्रकविलिबदोछु जायते पुटुवरु । नीललेश्यामध्यमांशदोळु मृतराद जीवंगळु तृतीयपश्विमेघयनवपटलद संप्रज्वलितेंद्रकबिलदिदं लगे चतुर्थपृथ्वि अंजनेय पटलसप्तकंगळोळु पंचमपृथ्विअरिष्टेय पटलपंचकंगळोळु चतुर्थपटलद अंधेद्रकबिलदिलदिदं मेले मध्यदोळु यथायोग्यमागि जायंते पुटुवरु। वरकाओदंसमुदा संजलिदं जांति तदियणिरयस्स । सीमंतं अवरमुदा मज्झे मज्झेण जायते ॥५२६॥ उत्कृष्टकपोतांशमृताः संज्वलितं यांति तृतीयनरकस्य । सोमंतं अवरमृताः मध्ये मध्येन जायते ॥ ___ कपोतलेश्योत्कृष्टांगदिदं मृतराद जीवंगळु तृतीयपृथ्विमेघेय नवपटलंगळोळु द्विचरमाष्टमपटलद संज्वलितेंद्रकदोळपुटुवर । कलंबरुगलु चरमसंप्रज्वलितेंद्रकबिलदोळं पुटुवरेबो १० विशेषमरियल्पडुगुं। कापोतलेश्याजघन्यांशदिदं मृतराद जीवंगळु सोमंतं यांति घम्मे य प्रथमपटलद सीमंतेंद्रकबिलदोम्पुटुवरु। कापोतलेश्यामध्यमांशदिदं मृतराद जीवंगळु सोमंतेंद्रकदिद केळगण पन्नेरडु पटलंगळोळं मेघय द्विचरमसंज्वलितेंद्रकबिलविंद मेलण पटलंगळोळेळरोळ द्वितीयपृथ्विवंशेय पन्नोंदु पटलं. गळोळं यथायोग्यमागि पुटु वरु। इति विशेषो ज्ञातव्यः । नीललेश्याजेघन्यांशेन मृता जीवाः बालुकाप्रभानवपटलेषु चरमपटलस्य संप्रज्वलितेन्द्रके जायन्ते । नीललेश्यामध्यांशेन मृताः जीवाः तृतीयपृथ्वीनवमपटलस्य संप्रज्वलितेन्द्र कादधश्चतुर्थपृथ्वीपटलसप्तके पञ्चमपृथ्वीचतुर्थपटलस्यान्धेन्द्रकादुपरि यथायोग्यं जायन्ते ॥२५॥ कापोतलेश्योत्कृष्टांशेन मृता जीवाः तृतीयपृथ्वीनवपटलेषु द्विचरमाष्टमपटलस्य संज्वलितेन्द्र के उत्पद्यन्ते। केचित चरमसंप्रज्वलितेन्द्र केऽपीति विशेषोऽवगन्तव्यः । कापोतलेश्याजघन्यांशेन मृता जीवाः धर्माप्रथमपटलस्य . सीमन्तेन्द्रके उत्पद्यन्ते । कापोतलेश्यामध्यमांशेन मृता जीवाः सीमन्तेन्द्रकादधस्तनद्वादशपटलेषु मेघाया द्विचरमसंज्वलितेन्द्र कादुपरितनसप्तमपटलेषु द्वितीयपृथ्व्येकादशपटलेषु च यथायोग्यमुत्पद्यन्ते ।।५२६॥ होते हैं। नीललेश्याके मध्यम अंशसे मरे जीव तीसरी पृथ्वीके नौवें पटलके संप्रज्वलित इन्द्रक बिलेसे नीचे और चतुर्थ पृथ्वीके सातों पटलोंमें तथा पंचम पृथ्वीके चतुर्थ पटल सम्बन्धी आन्ध्रेन्द्रकसे ऊपर यथायोग्य उत्पन्न होते हैं ॥५२५॥ २५ कापोतलेश्याके उत्कृष्ट अंशसे मरे जीव तीसरी पृथ्वीके नौ पटलोंमें-से द्विचरम आठवें पटलके संज्वलित इन्द्रक विलमें उत्पन्न होते हैं। कोई-कोई अन्तिम संप्रज्वलित इन्द्रकमें भी उत्पन्न होते हैं, यह विशेष जानना । कापोतलेश्याके जघन्य अंशसे मरे जीव धर्मा नामक प्रथम पृथ्वोके प्रथम पटल सम्बन्धी सीमन्त इन्द्रकमें उत्पन्न होते हैं। कापोतलेश्याके मध्यम अंशसे मरे जीव सीमन्त इन्द्रकसे नीचेके बारह पटलोंमें मेघा नामक तीसरी पृथ्वीके ३० द्विचरम संज्वलित इन्द्रकसे ऊपरके सात पटलोंमें और दूसरी पृथ्वीके ग्यारह पटलोंमें यथायोग्य उत्पन्न होते हैं ।।५२६॥ १. म लेगलेलरोल । २. जघन्यांशेनापि मृता. । मु. । ३. ल. संप्रज्वं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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