SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ७१९ पद्मलेश्योत्कृष्टांशदिदं मृतराद जीवंगळु सहस्रारमुपयांति सहस्रारकल्पोळ पुटुवरु खलु स्फुटमागि । पद्मलेश्याजघन्यांशदिदं मृतराद जीवंगळु सनत्कुमारं च माहेंद्रमुपयांति सनत्कुमार कल्पदोलं माहेंद्रकल्पदोलं पुटुवरु। मज्झिमअंसेण मुदा तम्ममं जांति तेउजेट्ठमुदा । साणक्कुमारमाहिदंतिमचक्किदसेदिम्मि ॥५२२॥ मध्यमांशेन मृताः तन्मध्यं यांति तेजोज्येष्ठमृताः सानत्कुमारमाहेंद्रांतिमचक्रंद्रकश्रेण्यां। पद्मलेश्यामध्यमांशदिदं मृतराद जीवंगळु तन्मध्यं यांति सहस्रारकल्पदिदं केळी सानुत्कुमारमाहेंद्रकल्पंगळिदं मेले यथासंभवरागि पुटुवरु । तेजोलेश्योत्कृष्टांशदिदं मृतराद जीवंगळु सानत्कुमारमाहेंद्रकल्पंगळ चरमपटलचक्रंद्रकप्रणिधिगतश्रेणीबद्धविमानंगळोळ्पुटुवरु। अवरंसमुदा सोहम्मीसाणादिमउडुम्मि सेढिम्मि । मज्झिम अंसेण मुदा विमलविमानादिबलभद्दे ।।५२३॥ अवरांशमृताः सौधम्र्मेशानादिभूतऋत्वींद्रके श्रेण्यां। मध्यमांशेन मृताः विमलविमानादिबलभद्रे। तेजोलेश्याजघन्यांशदिदं मृतराद जीवंगळु सौधर्मेशानकल्पंगळादिभूतऋत्वींद्रकदोळं श्रेणीबद्धदोळं पुटुवर। तेजोलेश्यामध्यमांशदिदं मृतराद जीवंगलु सौधर्मेशानकल्पद्वितीयपटल-.. दिद्रकं विमलविमानमदु मोदलागि सानत्कुमारमाहेंद्रकल्पंगळ द्विचरमपटलदिंद्रकं बलभद्रविमानमक्कु मल्लि पथ्यंतं पुटुवरु। पद्मलेश्योत्कृष्टांशेन मृता जीवाः सहनारकल्पमुपयान्ति खलु स्फुटम् । पद्मलेश्याजघन्यांशेन मृता जीवाः सानत्कुमारं माहेन्द्रं चोपयान्ति ॥५२१॥ पद्मलेश्यामध्यमांशेन मृता जीवाः सहस्रारकल्पादधः सानत्कुमारमाहेन्द्रद्वयादुपरि यथासंभवमुत्पद्यन्ते । तेजोलेश्योत्कृष्टांशेन मृता जीवाः सानत्कुमारमाहेन्द्रकल्पयोश्चरमपटलचक्रेन्द्रकप्रणिधिगतश्रेणीबद्धविमाने- षत्पद्यन्ते ॥५२२॥ तेजोलेश्याजघन्यांशेन मृता जीवाः सौधर्मशानकल्पयोरादिभूतऋत्विन्द्रके श्रेणीबद्धे चोत्पद्यन्ते । तेजोलेश्यामध्यमांशेन मृता जीवाः सौधर्मशानकल्पद्वितीयपटलस्येन्द्रकं विमलनामकमादिं कृत्वा सानत्कुमारमाहेन्द्र द्विचरमपटलस्येन्द्रकं बलभद्रनामकं तत्पर्यन्तम् उत्पद्यन्ते ॥५२३॥ पद्मलेश्याके उत्कृष्ट अंशसे मरे जीव सहस्रारकल्पमें उत्पन्न होते हैं। पद्मलेश्याके जघन्य अंशसे मरे जीव सानत्कुमार-माहेन्द्र स्वर्गोंमें उत्पन्न होते हैं ।।५२१॥ पद्मलेश्याके मध्यम अंशसे मरे जीव सहस्रारकल्पसे नीचे और सानत्कुमार-माहेन्द्रसे ऊपर यथासम्भव उत्पन्न होते हैं। तेजोलेश्याके उत्कृष्ट अंशसे मरे जीव सानत्कुमारमाहेन्द्र कल्पके अन्तिम पटल चक्रेन्द्रक सम्बन्धी श्रेणीबद्ध विमानोंमें उत्पन्न होते हैं ॥५२२॥ तेजोलेश्याके जघन्य अंशसे मरे जीव सौधर्म- ऐशान कल्पके प्रथम ऋतु नामक इन्द्रकके श्रेणिबद्ध विमानों में उत्पन्न होते हैं। तेजोलेडयाके मध्यम अंशसे मरे जीव सौधर्मऐशान कल्पके द्वितीय पटलके विमल नामक इन्द्रकसे लेकर सानत्कुमार-माहेन्द्रके द्विचरम पटलके बलभद्र नामक इन्द्रक पर्यन्त उत्पन्न होते हैं ॥५२३।। पालेश्याक २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy