SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७०१ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका कषायगतोदयस्थानंगळु असंख्यातलोकमानंगळप्पुववरोळु संक्लेशस्थानंगळप्प अशुभलेश्यास्थानंगळु तद्योग्यासंख्यातलोकभक्तबहुभागंगळागुत्तलुमसंख्यातलोकमात्रंगळप्पुवु । तदेकभागमानं गळुमकुंडं शुभलेश्याविशुद्धिस्थानंगळुमसंख्यातलोकमात्रंगळप्पुवु । संक्ले। ॐ a। ८ विशु १। तिब्बतमा तिव्वतरा तिव्या असुहा सुहा तहा मंदा । मंदतरा मंदतमा छट्ठाणगया हु पत्तेयं ॥५००॥ तीव्रतमानि तीव्रतराणि तीवाण्यशुभानि शुभानि तथा मंदानि । मंदतराणि मंदतमानि षट्स्थानगतानि खलु प्रत्येकं। मुन्नं पळद असंख्यातलोकबहुभागमात्रंगळप्प अशुभलेश्या संक्लेशस्थानंगळु कृष्णनीलकपोतभेददिदं त्रिप्रकारं गळप्पुवल्लि कृष्णलेश्यातीव्रतमसंक्लेशस्थानंगळु सामान्याशुभसंक्लेश स्थानंगळ ८ निवं मत्तं तद्योग्यासंख्यातलोकदिदं खंडिसिवल्लि बहुभागमात्रस्थानं- १० गळप्पुवु =a । ८।८। नीललेश्यातीव्रतरसंक्लेशस्थानंगळु तदेकभागबहुभागमात्रंगळप्पुवु = 1 ८८। कपोतलेश्यातीवसंक्लेशस्थानंगळु तदेकभागमानंगळप्पुवु ।।८।१ मत्तं शुभलेश्याविशुद्धिस्थानंगळु मुंपेळ्द असंख्यातलोकभक्तकभागमात्रंगळोळ = १ तेजोलेश्या २ कषायगतोदयस्थानानि असंख्यातलोकमात्राणि भवन्ति । तेषु संक्लेशस्थानानि अशुभलेश्यास्थानानि तद्योग्यासंख्यातलोकभक्तबहभागमात्राण्यपि असंख्यातलोकमात्राण्येव । तदेकभागमात्राणि शुभलेश्याविशुद्धिस्था- १५ नान्यप्यसंख्यातलोकमात्राण्येव । संक्ले aa। ८ । विशु ७ = १॥४९९।। प्रागुक्तासंख्यातलोकबहभागमात्राणि अशुभलेश्यासंक्लेशस्थानानि कृष्णनीलकपोतभेदास्विविधानि । तत्र कृष्णलेश्यातीव्रतमसंक्लेशस्थानानि सामान्याशुभसंक्लेशस्थानेषु= 1८ तद्योग्यासंख्यातलोकभक्तेषु बहभाग मात्राणि। ८ । ८ । नीललेश्यातीव्रतरसंक्लेशस्थानानि तदेकभागबहुभागमात्राणि = 21 ८।८। कपोत ९।९।९ लेश्यातीव्रसंक्लेशस्थानानि तदेकभागमात्राणि : ।। ८ । १ पुनः शुभलेश्याविशुद्धिस्थानेषु पूर्वोक्तासंख्यात- २० कषायोंके अनुभागरूप उदय स्थान असंख्यात लोक मात्र होते हैं। उनमें यथायोग्य असंख्यात लोकसे भाग देनेपर बहुभाग प्रमाण संक्लेश स्थान हैं, वे भी असंख्यात लोक प्रमाण ही हैं। और शेष एक भाग प्रमाण विशुद्धिस्थान हैं, वे भी असंख्यात लोक मात्र हैं। संक्लेशस्थान तो अशुभ लेश्याओंके स्थान हैं और विशुद्धि स्थान शुभ लेश्याओंके स्थान हैं ॥४९९॥ पहले कहे असंख्यात लोकके बहुभाग मात्र अशुभ लेश्या सम्बन्धी स्थान कृष्ण, नील, कापोतके भेदसे तीन प्रकारके हैं। उन सामान्य अशुभ लेश्या सम्बन्धी स्थानोंमें यथायोग्य असंख्यातलोकसे भाग देनेपर बहुभाग प्रमाण कृष्णलेश्या सम्बन्धी तीव्रतम कषायरूप संक्लेश स्थान हैं। शेष रहे एक भागमें पुनः असंख्यात लोकसे भाग देनेपर बहुभाग मात्र २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy