SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ = कर्णावृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका इंदिय पहुडणं खीणकसायंतणंतरासीणं । जोगो अचक्खुदंसणजीवाणं होदि परिमाणं ||४८८|| एकेंद्रिप्रभृतीनां क्षीणकषायांताऽनंताराशीनां योगो चक्षुद्दर्शनजीवानां भवति परिमाणं । एकेंद्रियप्रभृति क्षीणकषायांताऽनंतानंतजी बंगलयोगं अचक्षुर्द्दर्शनजीवंगळ प्रमाण मक्कुं ॥ १३ ॥ शक्तिचक्षु | व्यक्तिचक्षु | अचक्षु अवधिदर्शन | केवलदर्शन ४ २– ४ २ ४ ५ a प a a a Jain Education International ७ ३ इंतु भगवदर्हत्परमेश्वरचारुचरणारविंदद्वंद्व वंदनानंदित पुण्य पुंजायमानश्रीमद्रायराजगुरु मंडलामहावादवादीश्वररायवादिपितामह सकल विद्वज्जनचक्रवत्तिश्रीमदभयसूरि सिद्धांतचक्रवत्ति श्रीपाद पंकजरजोरंजित ललाटपट्टं श्रीमत्केशवण्णविरचित गोम्मटसारकर्णाटवृत्ति जीवतत्वप्रदीपिपिकेयो जीवकांsविंशतिप्ररूपणंगळोळ चतुर्द्दशं दर्शनमार्गणाधिकारं निगदितमास्तु । ६९५ एकेन्द्रियप्रभृतिक्षीणकषायान्तानन्तानन्तजीवानां योगः अचक्षुर्दर्शनजीवप्रमाणं भवति १३ ।।४८८ ।। एकेन्द्रिय से लेकर क्षीणकषाय गुणस्थान पर्यन्त अनन्त जीवोंका जो योग है, उतना १० अचक्षुदर्शनी जीवोंका प्रमाण है ||४८८|| इस प्रकार सिद्धान्त चक्रवर्ती आचार्य नेमिचन्द्र रचित गोम्मटसार अपर नाम पंचसंग्रहकी केशववर्णी रचित कर्नाटक वृत्ति अनुसारिणी हिन्दी टीका में जीवकाण्डके अन्तर्गत दर्शन मार्गणा प्ररूपणा नामक चौदहवाँ अधिकार समाप्त हुआ ॥ १४ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy