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________________ गो. जीवकाण्डे त्रैराशिकं माडि प्र ४।५ - इ। २ बंदलब्ददोळ पर्यातकरं किंचिदूनं माडिदोडदु शक्तिगतचक्षु २ । ईर्शनिगळ संख्ययक्कु = । २- मिते व्यक्तिगतचक्षुर्दर्शनिगल्गं त्रैराशिकमं माळ्पागलोंदु विशेषमुंटदावुददोडे फलराशित्रसपर्याप्तराशियक्कु प्र -४ ५= इ।२। मी बंद लब्धं व्यक्ति गतचक्षुद्देर्शनिगळ संख्येयक्कु = ।२ अवधिदर्शनिगळ संख्येयवधिज्ञानिगळ प्रमाणमेनितनित ५ यक्कुं १३ केवलदर्शनिगळसंख्ये केवलज्ञानिगळसंख्येयनितनितेयक्कुं । ea कियत ? इति त्रैराशिके कृते प्र४ । फ। इ २ लब्धं पर्याप्तकसंख्यया किंचिदूनं शक्तिगतचक्षुर्दर्शनिसंख्या भवति = [ २ = द्वितीयत्रराशिके फलराशिःत्रसपर्याप्तकराशिःप्र४ाफ-1इ २ लब्धं व्यक्तिगतचक्षदर्शनिसंख्या ४। ४ भवति = २-अवधिदर्शनराशिरवधिज्ञानराशिवत प -१ केवलदर्शनिसंख्या केवलज्ञानिसंख्यावत aa ॥४८७।। mr पंचेन्द्रियका कितना परिमाण है, ऐसा त्रैराशिक करनेपर प्रमाण राशि चार, फलराशि १० त्रसजीवोंका प्रमाण, इच्छाराशि दो। सो इच्छाराशिको फलराशिसे गुणा करके प्रमाणराशि से भाग देनेपर जो प्रमाण आवे, उतने चौइन्द्रिय, पंचेन्द्रिय जीवराशि है। उसमें से पर्याप्त जीवोंके प्रमाणको घटानेपर जो प्रमाण आवे, उसमें-से कुछ घटानेपर, क्योंकि दोइन्द्रिय आदि क्रमसे घटते हुए शक्तिगत चक्षुदर्शनवालोंका प्रमाण जानना। इसी तरह सपर्याप्त जीवोंके णको चारस भाग देकर दास गुणा करनेपर जो प्रमाण आवे, उसमें से कुछ १५ कम करनेपर व्यक्तिरूप चक्षुदर्शनवालोंका प्रमाण होता है। अवधिदर्शनी जीवोंका प्रमाण अवधिज्ञानियोंके प्रमाणके समान जानना । और केवल दर्शनी जीवोंका प्रमाण केवलज्ञानी जीवोंके परिमाणके समान जानना ॥४८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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