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________________ ६९२ गो० जीवकाण्डे भावसाधनं दर्शनमरियल्पडुवुदु । अनंतरं चक्षुर्दर्शन अचक्षुदर्शनंगळ स्वरूपम पेन्दपं: चक्खूण जं पयासइ दिस्सइ तं चक्खुदंसणं वेंति । सेसिंदियप्पयासो णायवो सो अचक्खु त्ति ॥४८४।। चक्षुषा यत्प्रकाशते दृश्यते तच्चक्षुर्दर्शनं बुवंति । यः शेषेद्रियप्रकाशो ज्ञातव्यः सोऽचक्षुदर्शनमिति ॥ नयनंगळावुदोंदु प्रतिभासिसुतमिईपुदु काणल्पडुत्तिद्दपुदु तद्विषयप्रकाशनमे चक्षुर्दर्शनमें दितु गणधरदेवादिदिव्यज्ञानिगळु पेळ्वरु । शेषंद्रियंगळावुदोंदु तोरुत्तिईपुददु अचक्षुदर्शनमें दितु ज्ञातव्यमक्कुं। परमाणु आदियाई अंतिमखधंति मुत्तिदव्वाई। तं ओहिदसणं पुण जं पस्सइ ताइ पच्चक्खं ॥४८५।। परमाण्वादिकान्यंतिमस्कंधपथ्यंतानि मूर्तद्रव्याणि । तदवधिदर्शनं पुनर्यत्पश्यति तानि प्रत्यक्षं ॥ परमाणुवादियागि महास्कंधपयंतमप्प मूर्त्तद्रव्यंगळवनितनितुमनावुदोंदु दर्शनं मत १५ प्रत्यक्षमागि काण्गुमदवधिदर्शनमें बुदक्कुं। बहुविहबहुप्पयारा उज्जोवा परिमियम्मि खेत्तम्मि । लोगालोगबितिमिरो जो केवलदसणुज्जोओ ॥४८६।। बहुविधबहुप्रकारा उद्योताः परिमिते क्षेत्रे । लोकालोकवितिमिरो यः केवलदर्शनोद्योतः॥ सत्तावभासनं तद्दर्शनं भवति । पश्यति दृश्यते अनेन दर्शनमात्रं वा दर्शनम् ॥४८३॥ अथ चक्षुरचक्षुर्दर्शने २० लक्षयति चक्षुषोः-नयनयोः संबन्धि यत्सामान्यग्रहणं प्रकाशते पश्यति तद्वा दृश्यते जीवेनानेन कृत्वा तद्वा तद्विषयप्रकाशनमेव तद्वा चक्षुर्दर्शनमिति गणधरदेवादयो ब्रुवन्ति । यश्च शेषेन्द्रियप्रकाशः स अचक्षुर्दर्शनमिति ।।४८४॥ परमाणोरारभ्य महास्कन्धपर्यन्तं मूर्तद्रव्याणि पुनः यद्दर्शनं प्रत्यक्षं पश्यति तदवधिदर्शनं भवति ॥४८५।। २५ मात्र दर्शन है ॥४८३॥ अब चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शनके लक्षण कहते हैं दोनों नेत्र सम्बन्धी सामान्य ग्रहणको जो देखता है अथवा इस जीवके द्वारा देखा जाता है अथवा सामान्य मात्रका प्रकाशन दर्शन है, यह गणधरदेव आदि कहते हैं। शेष इन्द्रियोंका जो प्रकाश है, वह अचक्षु दर्शन है ॥४८४॥ परमाणुसे लेकर महास्कन्ध पर्यन्त सब मूर्तिक द्रव्योंको जो प्रत्यक्ष देखता है , वह अवधिदर्शन है ।।४८५।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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