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________________ ६९० गो०जीवकाण्डे संसारिराशिअविरतप्रमाणमक्कु :सामायिक | छेदोपस्थापन , परिहार | सूक्ष्म | यथाख्यात | देशसंय - | संय= ८९०९९१०३/८२०९९१०३ ६९९७ | ८९९९९७ प १३ - a ara २७ इंतु भगवदहत्परमेश्वरचारुचरणारविदद्वंद्ववंदनानंदित पुण्यपुंजायमानश्रीमद्रायराजगुरु मंडलाचार्य्यमहावादवादोश्वररायवादिपितामह सकलविद्वज्जनचक्रवत्ति श्रीमदभयसूरिसिद्धांत चक्रवत्तिश्रीपादपंकजरजोरंजितललाटपट्टं श्रीमत्केशवण्णविरचितमप्प गोम्मटसारकर्णाटवृत्तिजीव५ तत्वप्रदीपिकयोळु जीवकांडविंशतिप्ररूपणंगळोळ त्रयोदशं संयममार्गणाधिकारं निगदितमायतु ॥ अविरत्तानां प्रमाणं भवति । १३-॥४८१॥ इत्याचार्यश्रीनेमिचन्द्रविरचितायां गोम्मटसारापरनामपञ्चसंग्रहवृत्तौ तत्त्वप्रदीपिकाख्यायां जीवकाण्डे विंशतिप्ररूपणासु संयममार्गणाप्ररूपणा नाम त्रयोदशोऽधिकारः ॥१३॥ संसारी जीवोंकी राशिमें भाग देनेपर जो शेष रहे, उतना ही असंयमियोंका प्रमाण १. होता है ॥४८॥ इस प्रकार आचार्य श्री नेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार अपर नाम पंचसंग्रहको भगवान् अर्हन्त देव परमेश्वरके सुन्दर चरणकमलोंकी वन्दनासे प्राप्त पुण्यके पुंजस्वरूप राजगुरु मण्डलाचार्य महावादी श्री अभयनन्दी सिद्धान्त चक्रवर्तीके चरणकमलोंकी धूलिसे शोमित ललाटवाले श्री केशववर्णीके द्वारा रचित गोम्मटसार कर्णाटवृत्ति जीवतत्व प्रदीपिकाकी. अनुसारिणी संस्कृतटीका तथा उसकी अनुसारिणी पं. टोडरमल रचित सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामक भाषाटीकाकी अनुसारिणी हिन्दी भाषा टीकामें जीवकाण्डकी बीस प्ररूपणाओंमें-से संयममार्गणा प्ररूपणा नामक तेरहवाँ अधिकार सम्पूर्ण हुआ ॥१३॥ १. म प्रतौ संदृष्टिर्नास्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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