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________________ १५ ६८४ गो. जीवकाण्डे मिगिलिनिल्लदुदं दुगम्यं दुःखेन महता कष्टेन गम्यं प्राप्यं एवंविधमप्प सामायिकम समद्वहन जीवः कैकोंडु नडसुवंतप्पासन्नभव्यजीवं सामायिकसंयमो भवति । सामायिकः संयमोऽस्यास्मिन्वा सामायिकसंयमः सामायिकसंयममनुकळ सामायिक संयमनबनक्कुं। छेत्तण य परियायं पोराणं जो ठवेइ अप्पाणं । पंचजमे धम्मे सो छेदोवद्वावगो जीवो ॥४७१॥ छित्वा च पर्यायं पुराणं यः स्थापयति आत्मानं । पंचयमे धर्मे स च्छेदोपस्थापको जीवः॥ छित्वा पुराणं पर्यायं सामायिकसंयतनागिर्दु बळिचि सावधव्यापारंगळगे संविद्धतप्पजीवं प्राक्तनसावधव्यापारपर्यायमं प्रायश्चित्तंगळिदं छित्वा च्छेदिसि यः आवनोवं आत्मानं तन्नं पंचयमे धर्मे व्रतधारणादिपंचप्रकारसंयमरूपधर्मदोलु स्थापयति नेलेगोलिसुगुं सः जीवः आ जीवं च्छेदोपस्थापकः च्छेदोपस्थापनासंयतनक्कुं । च्छेदेनोपस्थापनं च्छेदोपस्थापनं । प्रायश्चित्ताचरणेनोपस्थापनं च्छेदोपस्थापनं यस्य स च्छेदोपस्थापकः एंदितु निरुक्तिलक्षणसिद्धमक्कं । अथवा प्रायश्चितगळिदं ता माडिद दोषं पोगदोडे मुन्नं ता माडिद तपमनादोषक्कतक्कुदं च्छेदिसि किरियनागि तन्नं मत्ता निरवद्यसंयमदोळु स्थापिसुवातनुं च्छेदोपस्थापनसंयतनक्कु। स्वतपसि च्छेदे सति उपस्थापनं यस्यासौ च्छेदोपस्थापकः एंदितिल्लि अधिकरणव्युत्पत्तियक्कु। पंचसमिदो तिगुत्तो परिहरइ सदा वि जो हु सावजं । पंचेक्कजमो पुरिसो परिहारयसंजदो सो हु ॥४७२॥ पंचसमितस्त्रिगुप्तः परिहरति सदापि यः खलु सावा । पंचैकयमः पुरुषः परिहारसंयतः स खलु॥ सकलसावद्य निवृत्तिरूपं, अनुत्तरं-असदृशं, संपूर्ण, दुरवगम्यं-दुःखेन प्राप्यं तत्सामायिक समुद्वहन् जीवः २० सामायिकसंयमः-सामापिकसंयमसंयुक्तो भवति ॥४७०॥ ___सामायिकसंयतो भूत्वा प्रच्युत्य सावद्यव्यापारप्रतिपन्नो यो जीव: पुराणं-प्राक्तनं सावद्यव्यापारपर्यायं प्रायश्चित्तश्च्छित्वा आत्मानं व्रतधारणादिपञ्चप्रकारसंयमरूपधर्म स्थापयति स छेदोपस्थापनसंयतः स्यात् । छेदेन प्रायश्चित्ताचरणेन उपस्थापनं यस्य स छेदोपस्थापन इति निरुक्तः । अथवा प्रायश्चित्तेन स्वकृतदोषपरि हाराय पूर्वकृततपस्तदोषानुसारेण छित्वा आत्मानं तन्निरवद्यसंयमे स्थापयति स छेदोपस्थापकसंयतः, स्वतपसि २५ छेदे सति उपस्थापनं यस्य स छेदोपस्थापन इत्यधिकरणव्युत्पत्तेः ।।४७१॥ अर्थात् सामायिक संयम भेदरहित सकल पापोंसे निवृत्तिरूप है। यह अनुत्तर है अर्थात् इसके समान अन्य नहीं है, सम्पूर्ण है और दुरवगम्य है अर्थात् बड़े कष्टसे यह प्राप्त होता है। उस सामायिकको धारण करनेवाला जीव सामायिक संयमी होता है ॥४७०॥ . सामायिक संयमको धारण करने के पश्चात् उससे च्युत होकर सावध क्रियामें लगा जो जीव इस पुराने सावधव्यापाररूप पर्यायका प्रायश्चित्तके द्वारा छेदन करके अपनेको व्रतधारण आदि पाँच प्रकारके संयमरूप धर्ममें स्थापन करता है,वह छेदोपस्थापना संयमवाला होता है । छेद अर्थात् प्रायश्चित्त करने के द्वारा जिसका उपस्थापन होता है वह छेदोपस्थापन है ऐसी निरुक्ति है। अथवा प्रायश्चित्तके द्वारा अपने किये हुए दोषोंको दूर करनेके लिए पूर्वकृत तपको उसके दोषोंके अनुसार छेदन करके जो आत्माको निर्दोष संयममें स्थापित ३५ करता है, वह छेदोपस्थापक संयमी है। अपने तपका छेद होनेपर जिसका उपस्थापन होता है, वह छेदोपस्थापन है। इस प्रकार अधिकरणपरक व्युत्पत्ति है ।।४७१।। ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org -
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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