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________________ ६८२ गो० जीवकाण्डे प्रमत्ताप्रमत्तरोळु संज्वलनकषायंगळ्गे सर्वघातिस्पर्द्ध कंगळुदयाभावलक्षणक्षय, उदयनिषेकद उपरितननिषेकंगळुदयाभावलक्षणमुपशममुमितु चारित्रमोहनीयक्षयोपशममुं बादरसंज्वलनदेशघातिस्पर्द्धकक्के संयमाविरोदिंदमुदयदोळं सामायिकछेदोपस्थापनसंयमंगळप्पुवुमा गुण स्थानद्वयदोळे परिहारशुद्धिसंयममुमक्कुं। सूक्ष्मकृष्टिकरणानिवृत्तिपय॑तं बादरसंज्वलनोददिदम५ पूर्वानिवृत्तिकरणदोळं सामायिकच्छेदोपस्थापनसंयमंगळप्पुवु । सूक्ष्मकृष्टिरूपदिनिई संज्वलन लोभोदयदिद सूक्ष्मसांपरायसंयममक्कुं। चारित्रमोहनीयसोपशदिदमुं यथाख्यातसंयममक्कु। चारित्रमोहनीयनिरवशेषक्षदिदं यथाख्यातसंयम क्षीणकषायादिगुणस्थानत्रयदोळं नियदिदमक्कुमें दितु अहंदादिर्गाळद निरूपिसल्पटुदबुदर्थमीयर्थमने मुंदणगाथासूत्रद्वयदिदं विशदं माडिदपरु । बादरसंजलणुदए बादरसंजमतियं खु परिहारो। पमदिदरे सुहुमुदए सुहुमो संजमगुणो होदि ॥४६७।। बादरसंज्वलनोदये बादरसंयमत्रयं खलु परिहारः। प्रमत्तेतरयोः सूक्ष्मोदये सूक्ष्मः संयमगुणो भवति ॥ बादरसंज्वलनसंयमाविरोधिदेशघातिस्पर्द्धकोदयदोळु बादरंगळप्प सामायिकच्छेदोपस्थापनपरिहारविशुद्धिसंयमंगळेब संयमत्रयमक्कुमल्लि परिहारविशुद्धिसंयम प्रमत्ताप्रमतरोळेयकं १५ उळिवरडुमनिवृत्तिपयंतमप्पुवु । सूक्ष्मकृष्टिरूपसंज्वलनलोभोदयमागुत्तिरलु सूक्ष्मसांपरायसंयम प्रमत्तयोः संज्वलनकषायाणां सर्वघातिस्पर्धकानामुदयाभावलक्षणे क्षये उदयनिषेकादुपरितननिषेकाणां उदयाभावलक्षणे उपशमे बादरसंज्वलनदेशघातिस्पर्धकस्य संयमाविरोधेनोदये सति सामायिकछेदोपस्थापनपरिहारविशुद्धिसंयमाः भवन्ति, सूक्ष्मकृष्टिकरणानिवृत्तिपर्यन्तं बादरसंज्वलनोदयेनापूर्वानिवृत्तिकरणेऽपि सामायिकछेदो पस्थापनसंयमौ भवतः । सूक्ष्मकृष्टिगतसंज्वलनलोभोदयेन सूक्ष्मसांपरायसंयमः चारित्रमोहनीयसर्वोपशमेन उप२० शान्तकषाये निरवशेषक्षयेण क्षीणकषायादित्रये च यथाख्यातसंयमो भवतीत्यर्थः, इत्येतज्जिनरेवोद्दिष्टम ॥४६६॥ अमुमेवार्थ गाथाद्वयेनाह बादरसंज्वलनसंयमाविरोधिदेशघातिस्पधकोदये बादरं सामायिकछेदोपस्थापनपरिहारविशद्धिसंयमत्रयं भवति । तत्र परिहारविशुद्धिः प्रमत्ताप्रमत्तयोरेव, शेषद्वयं अनिवृत्तिपर्यन्तं भवति । सूक्ष्मकृष्टिगतसंज्वलनलोभोदये स्पष्टीकरण इस प्रकार है-प्रमत्त और अप्रमत्त गुणस्थानमें संज्वलन कषायोंके सर्वघाती २५ स्पर्धकोंके उदयका अभावरूप क्षय, तथा उदयरूप निषेकोंसे ऊपरके निषेकोंका उदयका अभावरूप उपशम तथा बादर संज्वलनके देशघाती स्पर्द्धकोंका संयमका विरोध न करते हुए उदय होनेपर सामायिक, छेदोपस्थापना और परिहारविशुद्धि संयम होते हैं। किन्तु सूक्ष्मकृष्टि करनेरूप अनिवृत्तिकरण गुणस्थान पर्यन्त बादर संज्वलन कषायका उदय होनेसे अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणमें भी सामायिक और छेदोपस्थापना संयम होते हैं। सूक्ष्मकृष्टिको प्राप्त संज्वलन लोभका उदय होनेसे सूक्ष्म सम्पराय संयम होता है । सम्पूर्ण चारित्रमोहका उपशम होनेपर उपशान्तकषायमें और क्षय होनेपर क्षीणकषाय, सयोगकेवली और अयोगकेवली गुणस्थानोंमें यथाख्यातसंयम होता है ।।४६६।। ___ इसी अर्थको दो गाथाओंसे कहते हैं बादर संज्वलन कषायके देशघाती स्पर्धकोंका, जो संयमके विरोधी नहीं हैं, उदय ३५ होते हुए सामायिक, छेदोपस्थापना और परिहारविशुद्धि ये तीन संयम होते हैं। इनमें से परिहारविशुद्धि तो प्रमत्त और अप्रमत्त गुणस्थानमें ही होता है । शेष दोनों अनिवृत्तिकरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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