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________________ ६७१ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका अवरं दव्वमुरालियसरीरणिज्जिण्णसमयबद्धं तु । चक्खंदियणिज्जिण्णं उक्कस्सं उजुमदिस्स हवे ॥४५१।। अवरं द्रव्यमौदारिकशरीरनिर्जीणंसमयप्रबद्धस्तु। चक्षुरिंद्रियनिर्जीणमुत्कृष्टं ऋजुमते भवेत् । ___ ऋजुमतिमनःपर्य्ययज्ञानक्क विषयमप्प जघन्यद्रव्यमौदारिकशरीरनिर्जीणसमयप्रबद्ध ५ मक्कुं। स . १६ ख । तु मत्त। उत्कृष्ट द्रव्यं चक्षुरिद्रियनिज्जीर्णद्रव्यमकुं । अदर प्रमाणमेनितेंदोडे त्रैराशिकदिदं साधिसल्पडुगं । आ त्रैराशिकविधानमनितेदोर्ड संख्यातघनांगुलप्रमितमौदारिकशरीरावगाहनप्रदेशंगळोळे. ल्लमेत्तलानुं सविस्रसोपचयौदारिकशरीरसमयप्रबद्धंगळोळेल्लमत्तलानुं सविस्रसीपचयौदारिकशरीरसमयप्रबद्धंगळेयिसुवागळु चक्षुरिंद्रियाभ्यंतरनिर्वृत्तिप्रदेशप्रचयमिनितरोळिनितु द्रव्यंगळे यिसु- 1. गुमें दितु त्रैराशिकम माडि प्र६।१।फ स . १६ ख इ६ प आद्यंतशदृशं त्रैराशिक मध्यम नाम फलं भवेत् एंदु बंद लब्धं चक्षुरिद्रियनिर्जीर्णद्रव्यमिदु ऋजुमतिमनःपर्ययक्कुत्कृष्ट द्रव्यमक्कुं स १६ ख ६ प ६।१५११५ तत्र ऋजुमतिमनःपर्ययः जघन्यद्रव्यं औदारिकशरीरनिर्जीर्णसमयप्रबद्धं जानाति स । १६ ख । तु-पुनः, उत्कृष्टद्रव्यं चक्षुरिन्द्रियनिर्जीणमात्र जानाति। तत्कियत् ? औदारिकशरीरावगाहने संख्यातघनाङ्गुले सविस्रसोपचयौदारिकशरीरसमयप्रबद्धो गलति तदा चक्षुरिन्द्रियाभ्यन्तरनिर्वृत्तिप्रदेशप्रचये कियदिति राशिकेन १५ प्र६१। फस १६ ख । इ६ प लब्धमात्र भवति-स०१६ ख । ६ । प ॥४५१॥ पप a a ऋजुमति मनःपर्यय औदारिक शरीरके निर्जीर्ण समय प्रबद्धरूप जघन्य द्रव्यको जानता है और उत्कृष्टद्रव्यके रूपमें चक्षु इन्द्रियके निर्जीर्णद्रव्यको जानता है। वह कितना है सो कहते हैं-औदारिक शरीरकी अवगाहना संख्यात घनांगुल है। उसके विस्रसोपचय सहित औदारिक शरीरके समय प्रबद्ध परमाणुओंकी निर्जरा होती है। तब चक्षु इन्द्रियकी अभ्यन्तर निवृतिके प्रदेश प्रवयमें कितनी निर्जरा हुई, ऐसा त्रैराशिक करनेपर जितना २० परिमाण आवे, उतने परमाणुओंके स्कन्धको ऋजुमति उत्कृष्ट रूपसे जानता है ॥४५१।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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