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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ६४७ कार्मणवर्गणयनोम्, ध्रुवहारदिदं भागिसिदोडे देशावधिज्ञानदुत्कृष्टद्रव्यमक्कुं व तदुत्कृष्ट क्षेत्रं मत्ते लोकदोळेनुं कोरतेयिल्लदे संपूर्णलोकमात्रमक्कं । पल्ल समऊणकाले भावेण असंखलोगमेत्ता हु । • दव्वस्स य पज्जाया बरदेसोहिस्स विसया हु ॥४११॥ __पल्यं समयोनं काले भावेन असंख्य लोकमात्राः खलु। द्रव्यस्य च पर्यायाः वरदेशावधे- ५ विषयाः खलु ॥ कालदोळु देशावधिगुत्कृष्टं समयोनपल्यमात्रमकुं। प १ । भावदिदमसंख्यातलोकमात्रंगळु स्फुटमागि काल भाव शब्दद्वयवाच्यंगळुमा द्रव्यपायंगळु वरदेशावधिज्ञानक्के विषयंगळप्पुवु । स्फुटमागि।=an काले चउण्ह उड्ढी कालो भजिदव्व खेत्तउड्ढी य । उड्ढीए दव्वपज्जय भजिदव्वा खेत्तकाला हु॥४१२॥ काले चतुर्णां वृद्धिः कालो भजनीयः क्षेत्रवृद्धिश्च । द्रव्यपर्साययोवृद्धौ भक्तव्यौ क्षेत्रकालौ ॥ आवागळोम्र्मे कालवृद्धियक्कुमागळु द्रव्यक्षेत्रकालभावंगळ्नाल्कर वृद्धिगळक्कं क्षेत्रवृद्धियागुत्तं विरलु कालमोंदे भजनीयमक्कुं । द्रव्यभावंगळ वृद्धियोळु क्षेत्रकालद्वयवृद्धिगळु विकल्पनीयंगळप्पुबुदु युक्तियुक्तमेयक्कुं। कार्मणवर्गणा एकवारं ध्र वहारेण भक्ता देशावध्युत्कृष्टद्रव्यं भवति व तदुत्कृष्टक्षेत्र पुनः संपूर्णलोको भवति ॥४१०॥ काले देशावधैरुत्कृष्टं समयोनपल्यं भवति प-१ । भावेन पुनः असंख्यातलोकमात्र भवति। कालभावशब्दद्वयवाच्यास्ते द्रव्यस्य पर्याया वरदेशावधिज्ञानस्य स्फुट विषया भवन्ति ॥४११॥ यदा कालवृद्धिस्तदा द्रव्यादीनां चतुर्णा वृद्धयो भवन्ति । यदा क्षेत्रवृद्धिस्तदा कालवृद्धिः स्याद्वा न वेति भजनीया । यदा द्रव्यभाववृद्धी तदा क्षेत्रकालवृद्धी अपि भजनीये इत्येतत्सर्वं युक्तियुक्तमेव ।।४१२॥ अथ २० परमावधिज्ञानप्ररूपणमाह ___कार्मणवर्गणाको एक बार ध्र वहारसे भाजित करनेपर देशावधिका उत्कृष्ट द्रव्य होता है और उत्कृष्ट क्षेत्र सम्पूर्ण लोक है ॥४१०॥ देशावधिका उत्कृष्ट काल एक समयहीन पल्य है और भाव असंख्यात लोकप्रमाण है। काल और भावशब्दसे द्रव्यकी पर्याय उत्कृष्टदेशावधिज्ञानके विषय होती हैं। ऐसा जानना। २५ विशेषार्थ-एक समयहीन एक पल्य प्रमाण अतीतकालमें हुई और उतने ही प्रमाण आगामी कालमें होनेवाली द्रव्यकी पर्यायोंको उत्कृष्ट देशावधि जानता है। भावसे असंख्यात लोकप्रमाण पर्यायोंको जानता है ॥४११॥ अवधिज्ञानके विषयमें जब कालकी वृद्धि होती है।तब द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव चारोंकी वृद्धि होती है । जब क्षेत्रकी वृद्धि होती है, तब कालकी वृद्धि भजनीय है, हो या न हो। जब । द्रव्य और भावकी वृद्धि होती है, तब क्षेत्र और कालकी वृद्धि भजनीय है। यह सब युक्ति. युक्त ही है ॥४१२॥ १. स्वविषयस्कंधगतानंतवर्णादिविकल्पो भाव इति राजवात्तिके उक्तत्वात् द्रव्यस्य पर्याया एव कालभाव शब्दवाच्या भूतभावि पर्यायाणां वर्तमानपव्याणां च कालभावत्वख्यापनात इति-टिप्पण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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