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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका पोक्कध्रुवहारगुणकारमोदु तदनंतराधस्तनविकल्पदोळेरडु ध्रुवहारगुणकारंगळप्पुवी क्रमदिदमिळिदिळिदु देशावधिजघन्यद्रव्यपथ्यंतमविच्छिन्नरूपदिनेकाोकोत्तरक्रमदिदं पोक्क ध्र वहारगुणकारंगळु सर्वजघन्यदेशावधिज्ञानविषयद्रव्यविकल्पदलिल कार्मणवर्गणेगे पोक्क ध्रुवहारगुणकारंगळेनितप्पुर्व दोडे देशावधिद्रव्यसनविकल्पसंख्ययोळु -६ । २ द्विरूपहीनमात्रंगळप्पुवु संदृष्टिव अवनितुमं परस्परसंवर्ग माडिदोडे गुण्यरूपकार्मणवर्गणेय गुणकारप्रमाण- १ aa vdoo to ००० व ९९९९ व ६।२९ aa मक्कुमी कार्मणवर्गणागुणकारदनंतैकभागं ध्र वहारप्रमाणमें बुदर्थमा गुण्यरूपकार्मणवर्गणेयुममी कार्मणवर्गणागुणकारमुमं गुणिसुत्तिरलु जघन्यदेशावधिज्ञानविषयवदि पेळल्पट्ट नोकौदारिका ध्र वहारसंवर्गमात्रः स्यात् । कुतः ? तद्र्व्यरचनायामस्यांव त्रिचरमविकल्पादेकाद्यकोत्तरक्रमेण अधोऽधो गत्वा प्रथमविकल्पे कार्मणवर्गणायाः तावतां ध्र वहाराणां व ९ ब ५९। व ९९९। व ९९९९। loo ० ० ० ०१- २ वक-६। २९ पa a गुणकारत्वेन सद्भावात् । गुण्यगुणकारे गुणिते प्रागुक्तो लोकविभक्तैकखण्डमात्रनोकमौदारिकसंचय एव १० अन्तिम भेदका विषय कार्मणवर्गणामें एक बार ध्रुवहारका भाग देनेसे जो प्रमाण आवे, उतना है। उसके नीचे द्विचरम भेदका विषय कार्मणवर्गणा प्रमाण है। उनके नीचे त्रिचरम भेदका विषय कामणवर्गणाको एक बार ध्रुवहारसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतना है। उसके नीचे चतुर्थ चरम भेदका विषय दो बार ध्रुवहारसे कार्मणवर्गणाको गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतना है । इस प्रकार एक बार अधिक ध्रुवहारसे कार्मणवर्गणाको गुणा करते-करते १५ दो कम देशावधिके द्रव्यभेद प्रमाण ध्रुवहारोंको परस्परमें गुणा करनेसे जो गुणाकार का प्रमाण हुआ, उससे कार्मणवर्गणाको गुणा करनेपर जो प्रमाण होता है, वही जघन्य देशावधिज्ञानके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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