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________________ ६३२ संचयलोकविभक्तैखंडप्रमाणमेयक्कुमेदु निश्चयिसुवुदु स १२ - १६ ख इन्नु देशावधिविषय अ सर्व्वद्रव्य विकल्पंगळे निते दोडे पेदपं : अंगुल असंखगुणिदा खेत्तवियप्पा य दव्वभेदा हु । खेत्तवियप्पा अवरुक्कस्सविसेसं हवे एत्थ ॥ ३९० ॥ अंगुला संख्यातगुणिताः क्षेत्रविकल्पाश्च द्रव्यभेदाः खलु । क्षेत्रविकल्पा अवरोत्कृष्टविशेषो भवेदत्र । सूच्यंगुला संख्यातैक भाग गुणित क्षेत्र विकल्पंग देशावधिज्ञानविषय सर्व्वद्रव्य भेदंगळवु । खलु स्फुटमागि। अंतादोडा क्षेत्रविकल्पंगळतामनिते दोडे अत्र इल्लि अवधिविषयदोळ क्षेत्रविकल्पाः क्षेत्र विकल्पंग अवरोत्कृष्टविशेषो भवेत् । जघन्यदेशावधिज्ञानविषय सूक्ष्मनिगोदल ध्यपर्थ्यामक१० जघन्यावगाहप्रमितजघन्यक्षेत्रमनिद ६ । ८ । २२ नपततमं घनांगुलासंख्या गो० जीवकाण्डे प् a तैकभागमात्र ६ नुत्कृष्टदेशावधिज्ञानविषयक्षेत्रंलोकप्रमित मदरोळेदुळिदुवेनितोळवनि प a = ६ इवं सूच्यंगुला संख्यातदिदं गुणिसिलब्धराशियोळेकरूपं कूडुत्तिरलु देशावधिद्रव्य प a विकल्पं गळप्पुवु - 檢 მ प १९ । ८९ । ८ । २२ । ७९ १९८९ a a स्यात् । --स १२ - १६ ख ३।८ || ३८९ ।। देशावधिद्रव्यविकल्पान् प्रमाणयति - ६ । २ एक दोडे देशावधि जघन्यद्रव्य विकल्पं मोदल्गोंडु ध्रवहारभक्त प a १५ सूच्यङ्गुलासंख्यातैकभागगुणित देशावधिविषयसर्वक्षेत्र विकल्पाः खलु तद्विषयद्रव्यविकल्पा भवन्ति, तेच क्षेत्र विकल्पाः अत्र देशावधिविषये जवरे जघन्यक्षेत्र ६ तद्विषयोत्कृष्टक्षेत्र विशोधिते शेषमात्रा भवन्ति-६ प Jain Education International a विषयभूत द्रव्यका प्रमाण है जो लोकसे भाजित नोकर्म औदारिक शरीरका संचय प्रमाण है । विशेषार्थ - यहाँ उत्कृष्ट भेदसे लेकर जघन्य भेद पर्यन्त रचना कही है, इससे प्रकार गुणाकारका प्रमाण कहा है। यदि जघन्यसे लेकर उत्कृष्ट भेदपर्यन्त रचनाकी जावे, तो क्रमसे ध्रुवहारका भाग देते जाइए । अन्तिम भेद में कार्मणवर्गणाको एक बार ध्रुवहारसे भाग देनेपर द्रव्यका प्रमाण आ जाता है ||३८८-३८९ ॥ २० प a अब देशावधिके द्रव्यकी अपेक्षा विकल्प कहते हैं देशावधिके विषयभूत क्षेत्रकी अपेक्षा जितने विकल्प हैं, उनको सूच्यंगुलके असंख्यातवें भागसे गुणा करनेपर देशावधिके विषयभूत द्रव्यकी अपेक्षा भेद होते हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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