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संचयलोकविभक्तैखंडप्रमाणमेयक्कुमेदु निश्चयिसुवुदु स १२ - १६ ख इन्नु देशावधिविषय
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सर्व्वद्रव्य विकल्पंगळे निते दोडे पेदपं :
अंगुल असंखगुणिदा खेत्तवियप्पा य दव्वभेदा हु । खेत्तवियप्पा अवरुक्कस्सविसेसं हवे एत्थ ॥ ३९० ॥
अंगुला संख्यातगुणिताः क्षेत्रविकल्पाश्च द्रव्यभेदाः खलु । क्षेत्रविकल्पा अवरोत्कृष्टविशेषो
भवेदत्र ।
सूच्यंगुला संख्यातैक भाग गुणित क्षेत्र विकल्पंग देशावधिज्ञानविषय सर्व्वद्रव्य भेदंगळवु । खलु स्फुटमागि। अंतादोडा क्षेत्रविकल्पंगळतामनिते दोडे अत्र इल्लि अवधिविषयदोळ क्षेत्रविकल्पाः क्षेत्र विकल्पंग अवरोत्कृष्टविशेषो भवेत् । जघन्यदेशावधिज्ञानविषय सूक्ष्मनिगोदल ध्यपर्थ्यामक१० जघन्यावगाहप्रमितजघन्यक्षेत्रमनिद ६ । ८ । २२ नपततमं घनांगुलासंख्या
गो० जीवकाण्डे
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तैकभागमात्र ६ नुत्कृष्टदेशावधिज्ञानविषयक्षेत्रंलोकप्रमित मदरोळेदुळिदुवेनितोळवनि
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= ६ इवं सूच्यंगुला संख्यातदिदं गुणिसिलब्धराशियोळेकरूपं कूडुत्तिरलु देशावधिद्रव्य
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विकल्पं गळप्पुवु -
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प १९ । ८९ । ८ । २२ । ७९ १९८९
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स्यात् । --स १२ - १६ ख ३।८ || ३८९ ।। देशावधिद्रव्यविकल्पान् प्रमाणयति -
६ । २ एक दोडे देशावधि जघन्यद्रव्य विकल्पं मोदल्गोंडु ध्रवहारभक्त
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सूच्यङ्गुलासंख्यातैकभागगुणित देशावधिविषयसर्वक्षेत्र विकल्पाः खलु तद्विषयद्रव्यविकल्पा भवन्ति, तेच क्षेत्र विकल्पाः अत्र देशावधिविषये जवरे जघन्यक्षेत्र ६ तद्विषयोत्कृष्टक्षेत्र विशोधिते शेषमात्रा भवन्ति-६
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विषयभूत द्रव्यका प्रमाण है जो लोकसे भाजित नोकर्म औदारिक शरीरका संचय प्रमाण है । विशेषार्थ - यहाँ उत्कृष्ट भेदसे लेकर जघन्य भेद पर्यन्त रचना कही है, इससे प्रकार गुणाकारका प्रमाण कहा है। यदि जघन्यसे लेकर उत्कृष्ट भेदपर्यन्त रचनाकी जावे, तो क्रमसे ध्रुवहारका भाग देते जाइए । अन्तिम भेद में कार्मणवर्गणाको एक बार ध्रुवहारसे भाग देनेपर द्रव्यका प्रमाण आ जाता है ||३८८-३८९ ॥
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अब देशावधिके द्रव्यकी अपेक्षा विकल्प कहते हैं
देशावधिके विषयभूत क्षेत्रकी अपेक्षा जितने विकल्प हैं, उनको सूच्यंगुलके असंख्यातवें भागसे गुणा करनेपर देशावधिके विषयभूत द्रव्यकी अपेक्षा भेद होते हैं ।
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