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________________ ६२९ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका विशेषदिदं ध्र वहारप्रमाणमं पेळ्दपं: मणदव्वबग्गणाण वियप्पाणंतिमसमं खु धवहारो। अवरुक्कस्सविसेसा रूवहिया तबियप्पा हु ॥३८६॥ मनोद्रव्यवर्गणानां विकल्पानामनंतैकभागसमः स्फुटं ध्र वहारः । अवरोत्कृष्टविशेषाः रूपाधिकास्तद्विकल्पाः खलु ॥ ध्रुवहारप्रमाणमरियल्पडुगुमदते दोडे मनोद्रव्यवर्गणगळ विकल्पंगळिनितोळवनि ज १ ख ख तदनंतैकभागदोडन ज १ समानमक्कुं। खलु स्फुटमागि। अंतादोडा मनोद्रव्यवर्गणाविकल्पंगळतामेनितप्पुर्वेदोडे पेळल्पडुगुं । अवरोत्कृष्टविशेषाः रूपाधिकास्तद्विकल्पाः खलु जघन्यमनोद्रव्यवर्गणेयनुत्कृष्टमनोद्रव्यवर्गणयोळकळेदुळिद शेषदोळेकरूपं कूडुत्तिरला मनोद्रव्यवार्गणाविकल्पंगळप्पुवु । आदी । ज । अन्ते ज ख सुद्धे ज १ वढिहिदे ज १ रूवसंजुदे ठाणा १० ख ख ख १ ‘ज ई स्थानविकल्पंगळनंतैकभागदोडने ज_समानं ध्र वहारप्रमाणमक्कुम बुदर्थमंतादोडा धयोत्कृष्टमनोद्रव्यवर्गणेगळ प्रमाणमेनित दोडे पेळ्दपं : अवरं होदि अणंतं अणंतभागेण अहियमुक्कस्सं । इंदि मणभेदाणंतिमभागो दवम्मि धुवहारो ॥३८७॥ अवरो भवत्यनंतोऽनंतभागेनाधिक उत्कृष्ट, इति मनोभेदानामनंतैकभागो द्रव्ये ध्रुवहारः॥ १५ ज्ञातव्यम् ।।३८५।। विशेषेण ध्रुवहारप्रमाणमाह मनोद्रध्यवर्गणाया यावन्तो विकल्पास्तेषामनन्तकभागेन समं संख्यया समानं खलु ध्र वहारप्रमाणं ख ख स्यात् । ते च विकल्पाः कति ? मनोवर्गणाजघन्यं ज तदुत्कृष्टे ज ख विशोध्य शेषे ज रूपाधिकीकृते एतावन्तः ख ज खलु स्युः ॥३८६॥ ते जघन्योत्कृष्ट प्रमाणयति भूत द्रव्य कहा था, उसे ही यहां समयप्रबद्धके रूपमें स्थापित किया है। इसमें ही ध्रुवहारका २० भाग दे-देकर आगेके विकल्पोंके विषयभूत द्रव्य लायेंगे ॥३८५।। __ सामान्य रूपसे ध्रुवहारका प्रमाण सिद्धराशिके अनन्तवें भाग कहा। अब विशेष रूपसे ध्रुवहारका प्रमाण कहते हैं ___मनोद्रव्यवर्गणाके जितने भेद हैं उनके अनन्त भागकी संख्याके बराबर ध्रुवहारका प्रमाण है। मनोवर्गणाके जघन्यको मनोवर्गणाके उत्कृष्टमें-से घटाकर जो प्रमाण शेष रहे २५ उसमें एक जोड़नेपर मनोवर्गणाके भेदोंका प्रमाण होता है ॥३८६।। आगे मनोवर्गणाके जघन्य और उत्कृष्ट भेदका प्रमाण कहते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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