________________
६२८
गो० जीवकाण्डे अवरद्दव्वादुवरिमदव्ववियप्पाय होदि धुवहारो।
सिद्धाणंतिमभागो अभव्वसिद्धादणंतगुणो ॥३८४।। अवरद्रव्यादुपरितनद्रव्यविकल्पाय भवति ध्र वहारः। सिद्धानंतैकभागोऽभव्यसिद्धादनंतगुणः ॥
जघन्यदेशावधिज्ञानविषयद्यदिदं मेलणनंतरदेशावधिज्ञानविकल्पविषयद्रव्यविकल्पमं तरल्वेडि सिद्धानंतैकभागमुमभव्यसिद्धानंतगुणमुमप्प ध्र वभागहारमरियल्पडुगं।
धुवहारकम्मवग्गणगुणगारं कम्मवग्गणं गुणिदे।
समयपबद्धपमाणं जाणिज्जो ओहिविसयम्मि ॥३८५॥
ध्रुवहारकार्मणवर्गणागुणकारं कार्मणवर्गणां गुणिते। समयप्रबद्धप्रमाणं ज्ञातव्यमवधि१० विषये ॥
कार्मणवर्गणाया गणकाराः कोर्मणवर्गणागुणकाराः ध्रुवहाराश्चेते कार्मणवर्गणागुणकाराश्च ध्रुवहारकार्मणवर्गणागुणकारास्तान् । कार्मणवर्गणां च गुणितेऽवधिविषये समयप्रबद्धप्रमाणं भवतीति ज्ञातव्यं । गुण्यरूपदिनिई कार्मणवणगे गुणकाररूपदिनिर्द ध्रुवहारंगळं कार्मणवर्गणयुमं गुणिसुत्तिरलु अवधिविषयसमयप्रबद्धप्रमाणमक्कुमदु ज्ञातव्यमक्कुं।
जघन्यदेशावधिविषयद्रव्यात् उपरितनद्वितीयाद्यवधिज्ञानविकल्पविषयद्रव्याणि आनेतुं सिद्धानन्तकभागः, अभव्यसिद्धेभ्योऽनन्तगुणः ध्रुवभागहारः स्यात् ॥३८४॥
द्विरूपोनदेशावधिविकल्पमात्रध्रुवहाराद् गत्युत्पन्नेन कार्मणवर्गणागुणकारेण द्विरूपाधिकपरमावधिज्ञानविकल्पमात्रध्रुवहारसंवर्गसमुत्पन्नकार्मणवर्गणा गुणिता सती अवधिविषये समयप्रबद्धमात्रप्रमाणं स्यादिति
जघन्य देशावधि ज्ञानके विषयभूत द्रव्यसे ऊपर द्वितीय आदि अवधिज्ञानके भेदोंके २. विषयभूत द्रव्योंको लानेके लिए सिद्ध राशिका अनन्तवाँ भाग और अभव्य राशिसे अनन्तगुणा ध्रुवभागहार होता है।
विशेषार्थ--पूर्वपूर्व द्रव्यमें जिस भागहारका भाग देनेसे आगेके भेदके विषयभूत द्रव्यका प्रमाण आता है वह ध्रुव भागहार है । जैसे जघन्य देशावधिज्ञानके विषयभूत द्रव्यमें
भाग देनेसे जो प्रमाण आता है, वह उसके दूसरे भेदके विषयभूत द्रव्यका प्रमाण होता २५ है ॥३८४||
देशावधिज्ञानके विकल्पोंमें दो घटानेपर जितना प्रमाण रहे, उतनी जगह ध्रुवहारोंको स्थापित करके परस्परमें गुणा करनेपर जितना प्रमाण होता है,उतना कार्मण वगंणाका गुणकार होता है । और परमावधिज्ञानके विकल्पोंमें दो अधिक करनेपर जितना प्रमाण हो,
उतनी जगह ध्रुवहारोंको स्थापित करके परस्परमें गुणा करनेपर जितना प्रमाण हो,वह १० कार्मणवर्गणा होती है। कार्मणवर्गणाके गुणकारसे कार्मणवर्गणाको गुणा करनेपर जो प्रमाण
हो, वह अवधिज्ञानका विषय समयप्रबद्ध जानना। अर्थात् जो जघन्य देशावधिका विषय१. ध्रुवहारक्के संदृष्टि नवांकं तत्प्रमाणं मुंद पेळल्पडुगुमोग पेवुदेक दौड देशावधिय चरमद्रव्याविकल्पंगळं बिटु त्रिचरमदोळ्तोडगि प्रथमविकल्पपर्य्यतमेकादयेकोत्तरक्रमदिनिळिदिळिदु बंदु प्रथमविकल्पदोळ तावन्मात्रध्र वहारंगळि कार्मणवर्गणेयं गुणियिसिद लब्धप्रमाणसमानं प्रथमद्रव्यमबुदत्थं ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org