SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ६२३ देशावधिजघन्यज्ञानं द्रव्यतः द्रदिदं मध्यमयोगाज्जितमप्प नोकम्मौंदारिकसंचयमं द्वयर्द्धगुणहानिप्रमितसमयप्रबद्ध समूहरूपमं स्वयोग्यविनसोपचयपरमाणुसंयुक्तमं लोकदिदं भागिसल्पटुदं नियमदिदं तावन्मात्रमने जानाति प्रत्यक्षमागरिगुमरदं किरिदनरियदेबुदत्थं । जघन्ययोगाज्जितमप्प नोकम्मौदारिकसंचयक्कल्पत्वमनरिवदक्के सूक्ष्मत्वसंभवदिदं । तद्ग्रहणदोळु तद्ज्ञानक्के शक्तिअभावमप्युदरिदं । उत्कृष्टयोगाज्जितनोकम्मौंदारिकसंचयक्क स्थूलत्वमक्कं तद्ग्रहणदोळु प्रतिषेधरहितत्वदिदमदरिदं नियमदिदं मध्यमयोगाज्जितमप्प नोकम्मौदारिकसंचयद्रव्यनियम पेळल्पटुदु स । । १२-1 १६ ख सुहुमणिगोदअपज्जत्तयस्स जादस्स तदियसमयम्मि । अवरोगाहणमाणं जहण्णयं ओहिखेत्तं तु ।।३७८।। सूक्ष्मनिगोदापर्याप्तकस्य जातस्य तृतीयसमये । अवरावगाहनमानं जघन्यमवधिक्षेत्रं तु॥ १० सूक्ष्मनिगोदलब्ध्यपप्तिकन पुट्टिद तृतीयसमयदोळावुदोंदु पूर्वोक्तजघन्यावगाहनमानमदु तु मत्ते जघन्यदेशावधिज्ञानविषयमप्प क्षेत्रप्रमाणमक्कुं ६। ८ । २२ प१९। ८९।८।२२। १९ a a ... देशावधिजघन्यज्ञानं द्रव्यतः मध्यमयोगाजितं नोकौदारिकसंचयं द्वयर्धगुणहानिप्रमितसमयप्रबद्धसमूहरूपं स्वयोग्यविस्रसोप चयपरमाणुसंयुक्तं लोकेन विभक्तं नियमेन तावन्मात्रमेव जानाति-प्रत्यक्षतया अवबुध्यते न ततोऽल्पमित्यर्थः । जघन्ययोगाजितस्य नोकर्मीदारिकसंचयस्य अल्पत्वं ततोऽस्य सूक्ष्मत्वसंभवात् । तद्ग्रहणे १५ तज्ज्ञानस्य शक्त्यभावात् । उत्कृष्टयोगाजितनोकौदारिकसंचयस्य स्थूलत्वं भवति तद्ग्रहणे प्रतिषेधाभावात् । तेन नियमान्मध्यमयोगाजितनोकौंदारिकसंचयो द्रव्यनियमः कथितः । स । १२-१६ खं ॥३७७॥ सूक्ष्मनिगोदलब्ध्यपर्याप्तकस्य उत्पत्तितृतीयसमये यत्पूर्वोक्तजघन्यावगाहनं तत् तु-पुनः जघन्यदेशावधि मध्यम योगके द्वारा उपार्जित नोकर्म औदारिक शरीरके संचयको, जो डेढ़ गुण हानि प्रमाण समयबद्धोंका समूहरूप है और अपने योग्य विस्रसोपचयके परमाणुओंसे संयुक्त है उसमें लोकराशिसे भाग देनेपर जो एक भाग मात्र द्रव्य होता है, उसे जघन्य देशावधि जानता है। उससे कमको वह नहीं जानता। जघन्ययोगके द्वारा उपाजित नोकर्म औदारिक शरीरका संचय उससे अल्प होनेसे सूक्ष्म होता है। उसको जानने की शक्ति इस ज्ञानकी नहीं है। और उत्कृष्ट योगसे उपाजित नोकर्म औदारिकका संचय स्थूल होता है, उसको जाननेका निषेध नहीं है। तथा विस्रसोपचय रहित सूक्ष्म होता है, इसलिए उसको जाननेकी शक्ति १५ नहीं है । इस प्रकार उक्त संचयके घनलोकके प्रदेश प्रमाण खण्ड करके उनमें से एकखण्डरूप अतीन्द्रिय पुद्गल स्कन्धको सबसे जघन्य देशावधिज्ञान प्रत्यक्ष जानता है, इस प्रकार द्रव्यका नियम कहा है ॥३७७॥ सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्तकके उत्पत्तिके तीसरे समयमें जो जघन्य अवगाहनाका प्रमाण पहले कहा है,वह जघन्य देशावधि ज्ञानके विषयभूत क्षेत्रका प्रमाण होता है। इतने ३० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy