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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ५९९ अंतकृद्दशांगदो त्रयोविंशतिलक्षंगळुमष्टाविंशतिसहस्रपदंगळप्पुवु २३२८००० । अनुत्तरौपपादिकदशांग दो द्विनवतिलशंगळु चतुश्चत्वारिंशत्सहस्रपदंगळप्पुवु ९२४४०००। प्रश्नव्याकरणांगदोजु त्रिनवतिलसंगई षोडशसहस्रपदंगळवु ९३१६००० । विपाकसूत्रांगदोळु एककोटियुं चतुरशीतिलक्षपदंगापुत्रु १८४०००००। बापणनरनोनानं एयारंगे जुदी हु वादम्मि । कनजतजमाननम जनकनजयसीम बाहिरे वण्णा ॥३६॥ वा चतुः । प एक ण पंच । न शून्य । र द्वि । नो शून्य । ना शून्य । नं शून्यकादशांगे युतिः। खलु वादे क एक । न शून्ध । ज अष्ट । त षट् । ज अट । म पंव । ता षट् । न शन्य । न शन्याभ पच । ज अष्ट । न शुन्य । क एक। न शून्य। ज अष्ट । य एक। सि सप्त। मपंच बाह्ये वर्णाः पेरगे पेळल्पट्ट एकादशांगगळ पदसंख्यातिपनक्षरसंख्येयिदं वारणनरलोनानं नाल्कु १० कोटियुं पदिनैदुलक्षमुमेरडु सातिर पइंगळप्पुवु । ४.५०२००० खलु स्फुटमागि वादे दृष्टिवाददोळ कनजतजभतानन नरें ट्रकोटियुमरुपले लक्षम्मथ्व तारुसासिरदय पदंगळप्पूव १०८६८५६००५, जनकनजयसीम। मेंटुकोटियु मोंदुलक्षमु मेंटुसासिरद नूरेप्पत्तैयदुक्षरंगळु सामायिकादिचतुर्दशभेददोळंगबाह्यदोळप्पुत्रु ८०१०८१७५, दृष्टीनां त्रिषष्टयुत्तरत्रिशतसंख्यानां मिथ्यादर्शनानां वादोऽनुवादस्तन्निराकरणं च यस्मिन् क्रियते तदृष्टिवादं नाम द्वादशमंगं। अदेंतेदोर्ड कोत्कल । काण्ठे- १५ अन्तकृदृशाङगे त्रयोविंशतिलक्षाष्टाविंशतिसहस्राणि पदानि २३२८००० । अनुत्तरौपपादिकदशागे द्विनवतिलक्षचतुश्चत्वारिंशत्सहस्राणि पदानि ९२४४०००। प्रश्नव्याकरणानें त्रिनवतिलक्षषोडशसहस्राणि पदानि ९३१६००० । विपाकसूत्रागे एककोटिचतुरशीतिलक्षाणि पदानि १८४००००० ॥३५८-३५९॥ पूर्वोक्तकादशाङ्गपदसंख्यायुतिः अक्षरसंख्यया वापणनरनोनानं चतुःकोटिपञ्चदशलक्षद्विसहस्रप्रमिता भवति ४१५०२००० खलु स्फुटं । दृष्टिवादाङ्गे कनजतजमताननमं अष्टोत्तरशतकोट्यष्टषष्टिलक्षषट्पञ्चाश- २० त्सहस्रपञ्चपदानि भवन्ति १०८६८५६००५ । जनकनजयसीम अष्टकोट्येकलक्षाष्टसहस्रकशतपञ्चसप्तत्यक्षराणि सामायिकादिचतुर्दशभेदेऽङ्गबाह्यश्रुते भवन्ति ८०१०८१७५ । दृष्टोनां त्रिषष्ट्युत्तरत्रिशतसंख्यानां मिथ्यादर्शनानां वादः अनवादः तन्निराकरणं च यस्मिन् क्रियते तद् दृष्टिवाद नाम द्वादशमङ्गम् । तद्यथा कौत्कल हजार पद हैं। ज्ञातृकथांगमें पाँच लाख छप्पन हजार पद हैं। उपासकाध्ययनांगमें ग्यारह लाख सत्तर हजार पद हैं। अन्तकहशांगमें तेईस लाख अट्ठाईस हजार पद हैं। अनत्तरोप- २५ पादिक दशांगमें बानवे लाख चवालीस हजार पद हैं । प्रश्नव्याकरणमें तिरानबे लाख सोलह हजार पद हैं, विपाक सूत्र में एक कोटि चौरासी लाख पद हैं ॥३५८-३५९।। पूर्वोक्त ग्यारह अंगोंके पदोंका जोड़ अक्षरोंकी संख्यामें 'वापणनरनोनानं' अर्थात् चार कोटि, पन्द्रह लाख दो हजार प्रमाण होते हैं। पहले गतिमार्गणामें मनुष्योंकी संख्या अक्षरोंमें कही है। उसकी टीकामें स्पष्ट कर दिया है कि किस अक्षरसे कौन संख्या लेना । जैसे ३० यहाँ 'व' से चार, 'प' से एक, 'ण' से पाँच, 'न' से शून्य, 'र' से दो और तीन शून्य लेना क्योंकि 'व' य से चतुर्थ अक्षर है, 'र' दूसरा अक्षर है, 'ण' टवर्गका पाँचवाँ अक्षर है और 'प' पवर्गका प्रथम अक्षर है । दृष्टिवाद अंगमें 'कनजतजमताननम' अर्थात् एक सौ आठ कोटि, अड़सठ लाख, छप्पन हजार, पाँच पद हैं १०८६८५६००५ । 'जनकनजयसीम' आठ कोटि, एक लाख, आठ हजार,एक सौ पचहत्तर ८०१०८१७५ अक्षर सामायिक आदि ३५ चौदह भेदरूप अंगबाह्यमें होते हैं। तीन सौ तिरेसठ दृष्टि अर्थात् मिथ्यादर्शनोंका वाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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