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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ५९७ अभय वारिषेण चिलातपुत्रा इत्येते दारुण महोपसर्गान्विजित्येंद्रादिकृतां पूजां लब्ध्वाऽनुत्तरविमानेखूषपन्नाः। एवं वृषभादितीर्थेष्वपि परमागमानुसारेण ज्ञातव्याः। प्रश्नस्य दूतवाक्यनष्टमुष्टिचितादिरूपस्यार्थः त्रिकालगोचरो धनधान्यादि लाभालाभसुखदुःखजीवितमरणजयपराजयादिरूपो व्याक्रियते व्याख्यायते यस्मिन् तत्प्रश्नव्याकरणं । अथवा शिष्यप्रश्नानुरूपतया आक्षेपणी विक्षेपणी संवेजनी निर्वेजनी चेति कथा चम्विधा । तत्र प्रयमानयोग करणानयोग चरणानयोगद्रव्यानयोगरूपपरमागम- ५ पदार्थानां तोथंकरादिवृत्तांतलोकसंस्थानदेशसकलयतिधर्मपंचास्तिकायादीनां परमताशंकारहितं कथनमाक्षेपणीकथा। प्रमाणनयात्मक युक्तियुक्तहेतुवादबलेन सर्वथैकांतादिपरसमयार्थनिराकरणरूपा विक्षेपणीकथा। रत्नत्रयात्मकधर्मानुष्ठानफलभूततीर्थकराद्यैश्वर्यप्रभावतेजोवीर्यज्ञानसुखादिवर्णनाल्पा संवेदनीकथा । संसारशरीरभोगजनितदुःकर्मफलनारकादिदुःखदुःकुलविरूपांगदारिद्रयापमानदुःखादिवर्णनाद्वारेण वैराग्यकथनरूपा निāजनीकथा। एवंविधाः कथाः व्याक्रियते १० धन्य-सुनक्षत्र-कार्तिकेय-नन्द-नन्दन-शालिभद्र अभय-वारिषेण-चिलातपुत्रा इत्येते दारुणमहोपसर्गान् विजित्य इन्द्रादिकृतां पूजां लब्ध्वा अनुत्तर विमानेषूपपन्नाः । एवं वृषभादितीर्थेष्वपि परमागमानुसारेण ज्ञातव्याः । प्रश्नस्य-दूतवाक्यनष्टमुष्टिचिन्तादिरूपस्य अर्थः त्रिकालगोचरो धनधान्यादिलाभालाभसुखदुःखजीवितमरणजयपराजयादिरूपो व्याक्रियते व्याख्यायते यस्मिस्तत्प्रश्नव्याकरणम् । अथवा शिष्यप्रश्नानुरूपतया आक्षेपणी विक्षेपणी संवेजनी निर्वेजनी चेति कथा चतुर्विधा । तत्र प्रथमानुयोगकरणानुयोगचरणानुयोगद्रव्यानुयोगरूपपरमागम- १५ पदार्थानां तीर्थकरादिवृत्तान्तलोकसंस्थानदेशसकलयतिधर्मपञ्चास्तिकायादीनां परमताशङ्कारहितं कथनमाक्षेपणी कथा। प्रमाणनयात्मकयुक्तियुक्तहेतुत्वादिबलेन सर्वथैकान्तादि परसमयार्थनिराकरणरूपा विक्षेपणी कथा । रत्नत्रयात्मकधर्मानुष्ठानफलभूततीर्थकराद्यैश्वर्यप्रभावते जोवीर्यज्ञानसुखादिवर्णनारूपा संवेजनी कथा । संसारशरीरभोगरागजनितदुष्कर्मफलनारकादिदुःखदुष्कुलविरूपाङ्गदारिद्रयापमानदुःखादिवर्णनाद्वारेण वैराग्यकथनरूपा स्वामीके तीथ में ऋजुदास, धन्य, सुनक्षत्र, कार्तिकेय, नन्द, नन्दन, शालिभद्र, अभय, वारिपेण, २० चिलातपुत्र ये दारुण महा उपसर्गोंको जीतकर इन्द्रादिके द्वारा की गयी पूजाको प्राप्त करके अनुत्तर विमानमें उत्पन्न हए। इसी प्रकार ऋषभ आदि तीथकरोंके तीथ में भी परमागमके अनुसार जानना। प्रश्न अर्थात दतवाक्य, नष्ट, मुष्टि चिन्तादि विषयक प्रश्नका त्रिकाल गोचर अर्थ जो धनधान्य आदिकी लाभ-हानि, सुख-दुःख, जीवन-मरण, जय-पराजय आदिसे सम्बद्ध है,वह जिसमें व्याक्रियते अर्थात् उत्तरित किया गया हो, वह प्रश्नव्याकरण है। " अथवा शिष्योंके प्रश्नके अनुसार अवक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेजनी और निर्वजनी ये चार कथाएँ जिसमें वर्णित हों, वह प्रश्नव्याकरण है। तीर्थकर आदिके इतिवृत्तको कहनेवाले प्रथमानुयोग, लोकके आकार आदिका कथन करनेवाले करणानुयोग, देशचारित्र और सकलचारित्रको कहनेवाले चरणानुयोग तथा पंचास्तिकाय आदिका कथन करनेवाले द्रव्यानुयोग रूप परमागमके पदार्थोंका परमतकी आशंकाको दूर करते हुए कथनको आक्षेपणी कथा कहते हैं। प्रमाणनयात्मक युक्ति तथा हेतु आदिके बलसे सर्वथा एकान्त आदि अन्य मतोंका निराकरण करानेवाली कथाको विक्षेपणी कथा कहते हैं। रत्नत्रयात्मक धर्मका अनुष्ठान करनेके फलस्वरूप तीर्थकर आदिके ऐश्वर्य, प्रभाव, तेज, ज्ञान, सुख, वीय आदिका कथन करनेवाली संवेजनी कथा है। संसार शरीर और भोगोंसे राग करनेसे दुष्कर्मका बन्ध होता है और उसके फलस्वरूप नारक आदिका दुःख, दुष्कुलकी प्राप्ति, शरीरोंके अंगोंका विरूपपना, दारिद्रय, अपमान आदिके वर्णनके द्वारा वैराग्यका कथन करनेवाली निर्वजनी र १. अवक्षे-मु। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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