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गो. जीवकाण्डे स्थापनामंगलमेतत् कृत्रिमाकृत्रिमा' जिनबिंबा। पुनः सूर्यपाध्यायसाधूनां देहाः खलु द्रव्यमंगलं स्यात् ॥
"गुणपरिणदासणं परिणिक्कमणं केवलस्स णाणस्स।
उप्पत्तो इय पहुडी बहुभेयं खेत्तमंगलयं ॥१५॥ गुणपरिणतासनं गुणपरिणतस्थानं परिनिःक्रमणं केवलज्ञानोत्पत्तिस्थानमिति प्रभृति क्षेत्रमंगलं बहुभेदं ॥
'ऐदस्स उदाहरणं पावाणयरुज्जयंतचंपादी।
*आउट्ठहत्थ पहुडि प्पणवीसब्भहि य पणसय घणूणि ॥१६॥
एतस्य क्षेत्रमंगलस्योदाहरणं पावानगय्यूजयंतचम्पादोन्यर्द्धचतुर्थहस्तप्रभृति पञ्चविंश१० 'त्युत्तरपञ्चशतधनुःपर्यन्तान्याकाशप्रदेशस्थानानि । तेषां शरीरावष्टब्धाकाशप्रदेशप्रमाणानीत्यर्थः ।।
'देहावट्टिदकेवलणाणावद्वद्धगयणदेसो वा।
सेढोघणमेत्तअप्पपएसजुदा लोगपूरणा पुण्णा' ॥१७॥ देहावस्थितकेवलज्ञानावष्टब्धगगनप्रदेशो वा जगच्छेणिघनमात्रात्मप्रदेशयुताः लोकपूरणा
पूर्णा वा ॥
"विस्साणं लोगाणं होदि पदेसा वि मंगलं खेत्त।
जस्सि" केवलणाणादि मंगलाणि परिणमंति' ॥१८॥ अतो विश्वेषां लोकानां प्रदेशा अपि मंगलं क्षेत्रं भवति । यस्मिन्काले केवलज्ञानादिमंगलानि परिणमंति॥
परिणिक्कमणं केवलणाणुब्भवणिन्वुदिप्पवेसादि। पावमलगालणादो पण्णत्तं कालमंगलं एदं ॥१९॥
नुःपर्यन्तकेवलिशरीरावष्टब्धाकाशः केवलिसमुद्धातावष्टब्धाकाशो वा, कालमंगलं यदा परिनिःक्रमणादिकल्याणान्याष्टाह्निकादिजिनादिमहोत्सवा वर्तन्ते स कालः । भावमंगलं मंगलपर्यायोपलक्षितजीवद्रव्यमानं । तदिदमुक्त
जिन स्थानोंमें तपस्या आदिके द्वारा गुण प्राप्त किये हों ऐसे तपकल्याणकके स्थान केवल ज्ञानकी उत्पत्तिके स्थान आदि क्षेत्रमंगल हैं। इसके बहुत भेद हैं ॥१५॥ २५ इस क्षेत्र मंगलके उदाहरण पावानगरी, ऊर्जयन्त ( गिरनार पर्वत ), चम्पापुर आदि
हैं, तथा साढ़े तीन हाथसे लेकर पाँच सौ पच्चीस धनुष प्रमाण आकाश प्रदेशके स्थान हैं अर्थात् उन स्थानोंसे मुक्ति प्राप्त करनेवाले जीवोंके शरीरकी अवगाहनासे जितना आकाश प्रदेश रोका गया हो, उतना स्थान क्षेत्र मंगल है। अथवा केवलज्ञानसे व्याप्त आकाश प्रदेश क्षेत्रमंगल है। अथवा लोकपूरण समुद्घातके द्वारा पूरित जगत् श्रेणिके घन प्रमाण आत्माके प्रदेशोंसे व्याप्त समस्त लोक क्षेत्रमंगल है। इस प्रकार सब लोकोंके प्रदेश भी क्षेत्रमंगल होते हैं । और जिस काल में केवलज्ञान आदि मंगलरूप जीव परिणमन करता है, दीक्षा लेता है, मोक्ष गमन करता है, उसे काल मंगल कहा है ,क्योंकि वह पापरूपी मलको नष्ट करता है ।।१६-१९॥
१. म मजिन । २. ति. प. ११२१ । ३. ति. प. ११२२ । ४. क अउट्ठ पुत्य । ५. क पहुवोसक्खियं । ३५ ६. मद्युत्तर। ७. कवट्ठदं । ८. म प्रदेशा। ९. मयुता पूर्णा लो। १०. ति. प. १०२४ ।
११. म सि काले के। १२. म मगला । १३. म विश्वानां ।
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