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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ४९७ लोकमात्रंगलुमसंख्यातगुणहीनंगळमप्पुवु = ०।८८।१.. मत्तमल्लिये पद्मशुक्ल ९।९।९।९।४।९. लेण्याद्वयस्थानंगळायुरबंधकारणंगळसंख्यातगुणहीनंगळसंख्यातलोकमानंगळप्पुवु । ८ ८ ९।९।९।९।५ मदतेंदोडे परगण शुभलेश्यात्रयस्थानंगळोळायुबंधरहितस्थानंगळोलु पोक्क भागहारक्कसंख्यातगुणहीनत्वमुंटप्पुरिदं असंख्यातगुणहीनत्वं सिद्धमक्कुं। ___ मतमवं नोडलल्लिये शुक्ललेश्यास्थानंगळोळायुरबंधकारणविशुद्धिपरिणामंगळसंख्यात- . लोकमानंगळसंख्यातगुणहीनंगळप्पुवु ३०।८।१ वेंतेंदोडे गुणकारभूतासंख्यातबहु ९।९।९।९।५ भागरहितत्वदिदं । मत्तमवं नोडलु जलरेखसमानशक्तिगतलेश्यास्थानंगळायुबंधशून्यंगळसंख्यातलोकमात्रंगळसंख्यातगुणहीनंगळप्पुवु = १ मते दोडे धूलोरेखासमानशक्तियुक्तस्थानंगळोळ केवलं चरमशुक्ललेश्यास्थानंगळोळ पोक्क पंचवारासंख्यातलोकभागहारंगळं नोडलु तद्गुणकारभूता- १० संख्यातबहुभागक्कसंख्यातगुणितत्वदिदमसंख्यातगुणहीनत्वं सिद्धमक्कुं । चतुश्चतुर्दशविंशतिपदंगळ्ग संदृष्टियिदु : शुभलेश्यात्रयस्थानेषु देवायुर्वन्धरहितानि असंख्यातलोकमात्राणि असंख्यातगुणहीनानि = ३ । ८। ८ । १ । ९।९।९।९।४।९ पुनस्तत्रव पद्मशुक्ललेश्याद्वयस्थानानि आयुर्बन्धाकारणानि असंख्यातगुणहीनानि असंख्यातलाकमात्राणि 20 । ८।८। कुतः प्राक्तनशुभलेश्यात्रयस्थानेषु आयुर्बन्धरहितस्थानेषु प्रविष्टभागहारस्य असंख्यात- १५ ९।९।९।९।५ गुणहोनत्वात् । पुनस्तेभ्यस्तत्रैव शुक्ललेश्यास्थानेषु आयुर्बन्धाकारणविशुद्धिपरिणामस्थानानि असंख्यातलोकमात्राणि असंख्यातगुणहीनानि = । ८ । १ कथं ? इति चेत् गुणकारभतासंख्यातबहुभागरहितत्वात् । ९।९।९।९। ५ पुनस्तेभ्यो जलरेखासमानशक्तिगतशुक्ललेश्यास्थानानि आयुर्बन्धशून्यानि असंख्यातलोकमात्राणि असंख्यातगुणहीनानि = ।१ । कथं ? धूलिरेखासमानशक्तियुक्तस्थानेषु केवलचरमशक्ललेश्यास्थाने प्रविष्टपञ्चवारा ९।९।९। संख्यातलोकभागहारेभ्यः तद्गुणकारभूतासंख्यातबहुभागस्य असंख्यातगुणितत्वात् । एवं चत्वारि पदानि, २० चतुर्दशपदानि, विंशतिः पदानि च प्रत्येकमसंख्यातगुणहीनक्रमाणि ज्ञातव्यानि ॥२९५॥ अथ श्रीमाधवचन्द्र आयुबन्धसे रहित हैं, वे असंख्यातगुणे हीन किन्तु असंख्यात लोकमात्र हैं। पुनः वहाँ ही पद्म और शुक्ल लेश्याके स्थान आयुबन्धके कारण नहीं हैं। वे पूर्वसे असंख्यातगुणे हीन, किन्तु असंख्यात लोक मात्र हैं। क्योंकि पहलेके तीन शुभ लेश्याओंके आयुबन्ध रहित स्थानों में प्रविष्ट भागहार असंख्यात गुणा हीन है । पुनः उनसे असंख्यातगुणे हीन वहाँ ही शुक्ल- २५ लेश्याके स्थानोंमें आयुबन्धके अकारण विशुद्धि परिणाम स्थान असंख्यात लोकमात्र हैं जो पूर्वसे असंख्यातगुणे हीन हैं। क्योंकि गुणकार असंख्यात बहुभागसे रहित है। पुनः उनसे जलरेखाके समान शक्तिगत शुक्ललेश्या स्थान जो आयुबन्धसे रहित हैं, असंख्यातगुणे हीन हैं,किन्तु असंख्यात लोक प्रमाण है । क्योंकि धूलिरेखाके समान शक्तिसे युक्त स्थानोंमें केवल अन्तिम शुक्ललेश्याके स्थानमें प्रविष्ट पाँच बार असंख्यात लोक भागहारोंसे उसके गुणकार- ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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