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गो० जीवकाण्डे तदेकभागासंख्यातबहुभागमात्रंगळसंख्यातगुणहीनंगळसंख्यातलोकमानंगळप्पुवु = a । ८।८।८
९।९।९।९।९।२ मतमल्लिये लेश्याषट्कस्थानंगळु मनुष्यदेवायुद्धयबंधकारणंगळसंख्यातगुणहीनंगळ तदेकभागासंख्यातलोकभक्तैकभागंगळप्पुरिदमसंख्यातलोकमात्रंगळप्पुवु ।।८।८।१ मतमल्लिये
९।९।९।९।९।२ कृष्णलेश्याज्जितशेषलेश्यापंचकस्थानंगळु देवायुबंधकारणंगलुमसंख्यातगुणही नंगळुमसंख्यातलोकमानंगळप्पुवु = ।।८।८ मवं नोडलल्लिये कृष्णनीललेश्याद्वयरहितलेश्याचतुष्टय
९।९।९।९।२ स्थानंगळ्केवलं देवायुबंधकारणंगळसंख्यातगुणहीनंगळ संख्यातलोकमानंगळप्पु = ।।८।८
९।९।९।९।३ ववं नोडलल्लिये कृष्णनीलकपोतलेश्यात्रयरहितशुभलेश्यात्रयस्थानंगोळु देवायुबंधकारणस्थानंगळु यथायोग्याऽसंख्यातलोकभक्तबहुभागमात्रंगळसंख्यातगुणहीनंगळसंख्यातलोकमानंगळप्पुवु = ३८८।८ तदेकभागंगळल्लिये शुभलेश्यात्रयस्थानंगळोळायुबंधरहितस्थानंगळसंख्यात
९।९।९।९।४।९ १० संख्यातबहुभागमात्राणि असंख्यातगुणहीनानि असंख्यातलोकमात्राणि ।। ८ । ८ । ८ पुनस्तत्रैव
९।९।९। ९ । ९ । २ षड्लेश्यास्थानानि मनुष्यदेवायुर्बन्धकारणानि असंख्यातगुणहीनानि तदेकभागासंख्यातलोकभक्तकभागत्वादसंख्यातलोकमात्राणि
।८।८।१ पुनस्तत्रैव कृष्णलेश्यावजितशेषपञ्चलेश्यास्थानानि देवायबन्ध
९।९।९।९।९।२ कारणानि असंख्यातगुणहीनानि असंख्यातलोकमात्राणि = ।८।८। एभ्यस्तत्रव कृष्णनीलरहित
९।९।९।९।२ चतुर्लेश्यास्थानानि केवलदेवायुर्बन्धकारणानि असंख्यातगुणहीनानि असंख्यातलोकमात्राणि = ।। ८ । ८ ।
९।९।९।९।३ १५ एभ्यस्तत्रैव कृष्णनोलकपोतलेश्यारहितशेषशुभलेश्यात्रयस्थानेषु देवायुर्बन्धकारणानि यथायोग्यासंख्यातलोकबहभागमात्राणि असंख्यातगुणहीनानि असंख्यातलोकमात्राणि । ।८।८।८। तदेकभागगत
९।९।९।९।४।९
छह लेश्या सम्बन्धी स्थान नरकायुको छोड़ शेष तीन आयुके बन्धके कारण हैं। यह पूर्वमें शेष रहे एक भागमें असंख्यात लोकसे भाग देकर बहुभाग मात्र है,अतः पूर्वसे असंख्यातगुणे
हीन,किन्तु असंख्यात लोक मात्र हैं । पुनः वहाँ ही छह लेश्या सम्बन्धी स्थान मनुष्यायु और २. देवायुके बन्धके कारण हैं। यह उनसे असंख्यात गुणे हीन हैं, क्योंकि शेष रहे एक भागमें
असंख्यात लोकका भाग देनेपर एक भागमात्र है , तथापि असंख्यात लोक मात्र हैं । इनसे असंख्यात गुणे हीन वहाँ ही कृष्णलेश्याको छोड़ शेष पाँच लेश्या सम्बन्धी स्थान जो असंख्यात लोक मात्र हैं, देवायुके बन्धके कारण हैं । इनसे असंख्यातगुणे हीन वहाँ ही कृष्ण,
नीलके सिवाय चार लेश्या सम्बन्धी स्थान केवल देवायुबन्धके कारण हैं जो असंख्यात लोक २५ मात्र हैं । इनसे असंख्यातगुणे हीन वहाँ ही कृष्ण, नील, कपोत लेश्यासे रहित शेष तीन शुभ - लेश्या स्थानों में यथायोग्य असंख्यात लोकसे भाग देकर बहुभाग मात्र स्थान देवायुबन्धके
कारण हैं जो असंख्यात लोक मात्र हैं। शेष एक भाग मात्र तीन शुभ लेश्याओंके स्थान
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