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गो० जीवकाण्डे त्रिस्थानदोळु संख्यातगुणं चरमराश्यावल्यसंख्यातैकभागगुणमक्कुं। षष्ठराशिपल्यासंख्यात भागगुणमक्कुं सप्तमादिराशिगळु सर्वत्र संख्यातगुणक्रमंगळु ।
इंतु भगवदर्हत्परमेश्वर चारुचरणारविदद्वंद्ववंदनानंदित पुण्यपुंजायमान श्रीमद्रायराजगुरु, ललाटपट्टे श्रीमत्केशवण्ण विरचितमप्प गोम्मटसारकर्णाटकवृत्ति जीवतत्वप्रदीपिकयोळु जीवकांड५ विंशतिप्ररूपणंगळोळु दशमं वेदमार्गणाप्ररूपणाधिकारं लपितमारतुं ॥
एकादश-४ । ६५ = राशयः पञ्चापि संख्यातगुणितक्रमा भवन्ति ॥२८९-२८१॥ इति श्रीनेमिचन्द्रविरचितायां गोम्मटसारापरनामपञ्चसंग्रहवृत्तौ जीव-जीवतत्त्वप्रदीपिकाख्यायां
जीवकाण्डे विशतिप्ररूपणास वेदमार्गणाप्ररूपणो नाम दशमोऽधिकारः ॥१०॥
असंख्यातवें भाग गुणित है । इस छठी राशिसे ऊपर अर्थात् असंज्ञी पंचेन्द्रिय गर्भज नपुंसकवेदीसे लेकर ज्योतिषीदेव पर्यन्त सातवीं, आठवीं, नवमी, दसवीं और ग्यारहवीं राशि क्रमसे संख्यातगणी होती हैं ।।२८०-२८१।।
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इस प्रकार आचार्य नेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार अपर नाम पंधसंग्रहकी भगवान् अहंन्त देव परमेश्वरके सुन्दर चरणकमलोंकी वन्दनासे प्राप्त पुण्यके पंजस्वरूप राजगुरु मण्डलाचार्य महावादी श्री अभयनन्दी सिद्धान्त चक्रवर्तीके चरणकमलोंको धूलिसे शोमित ललाटवाले श्री केशववर्णीके द्वारा रचित गोम्मटसार कर्णाटवृत्ति जीवतत्व प्रदीपिकाकी अनुसारिणी संस्कृतटीका तथा उसकी अनुसारिणी पं. टोडरमलरचित सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामक भाषाटीकाकी अनुसारिणी हिन्दी भाषा टीकामें जीवकाण्डकी बीस प्ररूपणाओंमें-से वेदमार्गणा प्ररूपणा
नामक दसवाँ महा अधिकार सम्पूर्ण हुआ ॥१०॥
१. बदश सं।
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