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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
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तत्सर्वकालसंबंधिगळप्प शुद्धोपक्रमशलाकेगं २ १ १ भागिसल्पट्ट निजराशियप्प व्यंतरजीवराशियनपर्य्याप्तकाल लब्धशुद्धोपक्रमशलाकेर्गाळवं गुणिसुत्तिरलावुदों व लब्धं तत्प्रमाणं व्यंतरवैक्रियिकमिश्रकाययोगिजीवराशियक्कुं खलु स्फुटमागरिय
ल्पडुवुदु ।
तहि सेसदेवरयमिस्सजुदे सव्वमिस्सवे गुव्वं । सुरणियकायजोगा वेगुव्वियकायजोगा दु || २६९॥
तस्मिन् शेषदेवनारक मिश्रयुते सर्वमिश्रवैमूव्वं । सुरनारक काययोगिनो वैक्रियिककाययोगि
नस्तु ॥
तद्वयंतर वैक्रियिक मिश्रकाययोगिजीवराशियोळु शेषदेवक्कंळप्प भावनज्योतिष्कवैमानिकदेवळं नारक वैक्रियिकमिश्रकाययोगिगळं कूडुतिरलावुदों राशियक्कुमा राशि सर्व्ववैक्रियिकमिश्रकाय योगिजीव राशियक्कुं
शेषदेवनारकरोळनुपक्रमकालक्क १०
४ ।
=
४ । ६५ = ८१ । १० १
तत्सर्वकाल सम्बन्धिशुद्धोपक्रमशलाकाभिः २११ । भक्ते निजराशी व्यन्तरजीवराशी अपर्याप्तकाल - लब्धशुद्धोपक्रमशलाकाभिः २ १ गुणिते सति यल्लब्धं तत्प्रमाणो व्यन्तरवै क्रियिक मिश्र काययोगिजीवराशिर्भवति
a
a
२ १
a
०
६५ = । ८१ । १० । २११
==
२१
खलु स्फुटम् ॥२६८॥
= a
४ । ६५ = ८१ । १०
a
तद्व्यन्तरवैक्रियिकमिश्रकाययोगिजीवराशी शेषेदेवेषु भावनज्योतिष्कवैमानिकदेवेषु सप्तपृथ्वीनारकवैक्रियिक मिश्रकाययोगिषु च युतेषु यो राशिः सः सर्ववैक्रियिकमिश्रकाययोगिजीवराशिर्भवति ।
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इस प्रकार जघन्य स्थिति प्रमाण सर्वकाल सम्बन्धी शुद्ध उपक्रम शलाकाका परिमाण कुछ कम संख्यातगुणा संख्यातसे गुणित आवलीका असंख्यातवाँ भाग जो ऊपर कहा है, उसका भाग व्यन्तर देवोंके पूर्व कहे परिमाणमें देनेसे जो लब्ध आये, उसे अपर्याप्तकाल सम्बन्धी शुद्ध उपक्रम शलाकाके प्रमाण संख्यातगुणा आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणा करनेपर जो परिमाण आवे, उतना वैक्रियिक मिश्रकाययोगके धारक व्यन्तर देवोंका २०
प्रमाण जानना ।
विशेषार्थ – पहले जो व्यन्तर देवोंका परिमाण कहा था, उसके संख्यातवें भाग वैक्रियिक मिश्रकाययोगके धारक व्यन्तर देव होते हैं । संख्यात वर्षकी स्थितिवाले व्यन्तर अधिक जन्म लेते हैं, इसलिए उन्हीं की मुख्यतासे यहाँ कथन किया है || २६८||
१५
उस वैक्रियिक मिश्रकाय योगी व्यन्तर देवोंके परिमाणमें शेष देव भवनवासी, २५ ज्योतिषी, वैमानिकदेव तथा सात पृथिवियोंके नारकी वैक्रियिक मिश्रकाय योगियोंके परि
१. ब शेषभावन- ।
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